पूजा संपन्न होने के बाद क्यों 3 बार बोले जाते हैं ये चमत्कारी शब्द ?

punjabkesari.in Saturday, Mar 23, 2019 - 12:27 PM (IST)

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हिंदू धर्म में मंत्र उच्चारण का बहुत महत्व है बल्कि हिंदू धर्म के साथ-साथ इसे हमारी संस्कृति का भी हिस्सा माना जाता है। कहते हैं जहां हिंदू धर्म के सभी धार्मिक कार्यों में इसका प्रयोग करना अनिवार्य तभी पूजा सफल मानी जाती है। तो वहीं ये भी कहा जाता है कि मंत्रों के जाप से जीवन में नकारात्मकता का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा प्रभाव बढ़ता है। हमारे ग्रंथों में बताए गए 16 सस्कारों में मंत्रों का इस्तेमाल बहुत ज़रूरी माना जाता है। अक्सर आप में से बहुत से लोगों ने देखा होगा कि जब कोई पूजा या कोई धार्मिक कार्य आदि होता है तो उसके आखिर में तीन बार ‘शांति: शांति: शांति:’ कहकर पूजा आदि समाप्त किया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर ऐसा क्यों है। क्यों हिन्दू धर्म में किसी भी पवित्र मंत्रोच्चारण के बाद ‘शांति:’ शब्द को तीन बार दोहराया जाता है? आखिर इस इतना महत्व क्यों है? तो आइए यहां जानते हैं इसके पीछे का रहस्य।
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अगर हिंदू धर्म के शास्त्रों में किए गए उल्लेख की मानें तो जीवन में आने वाली समस्याएं मुख्य रूप से तीन स्त्रोतों से उत्पन्न होती हैं जो इस प्रकार हैं।

आधिदैविक स्त्रोत- इस स्त्रोत के कारण अदृश्य, दैवीय और प्राकृतिक घटनाएं घटती हैं जिनपर मनुष्य का नियंत्रण नहीं होता, जैसे– भूकंप, बाढ़, ज्वालामुखी आदि।

आधिभौतिक स्त्रोत- इस स्त्रोत से व्यक्ति के आस-पास अनहोनियां होती हैं; जैसे – दुर्घटनाएं, प्रदूषण, अपराध आदि।

आध्यात्मिक स्त्रोत- यह स्त्रोत मनुष्य शारीरिक और मानसिक समस्याओं का कारण बनता हैं; जैसे – रोग, क्रोध, निराशा, दुख आदि।
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कहा जाता है इन्हीं समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए शास्त्रों में धार्मिक अनुष्ठान के विधान बताए गए हैं। जिसके दौरान पुरोहित ‘त्रिवरम् सत्यमं’ पर अमल करते हैं। बता दें कि इसका अर्थ होता है कि तीन बार कहने से कोई भी बात सत्य हो जाती है। यही कारण है कि बात पर खास ज़ोर डालने के लिए उसे तीन बार दोहराया जाता है।

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मंत्र के बाद ‘शांति:’ शब्द का तीन बार उच्चारण करने के पीछे का मुख्य उद्देश्य यही होता है कि हम ईश्वर से सच्चे मन से प्रार्थना करते हैं कि किसी खास काम का उत्तरदायित्व निभाते समय या हमारे रोज़मर्रा के कामकाज के दौरान हमारे जीवन में इन तीन तरीकों की बाधाएं उत्पन्न न हों।इतना ही नहीं,  इन तीन उच्चारणों के दौरान विभिन्न तरह से और अलग-अलग लोगों को संबोधित किया जाता है।
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पहली बार उच्च स्वर में शांति शब्द का उच्चारण करते समय दैवीय शक्ति को संबोधित किया जाता है।

दूसरी बार कुछ धीमे स्वर में आस-पास के वातावरण और व्यक्तियों को संबोधित किया जाता है।

तीसरी बार बिल्कुल धीमे स्वर में स्वयं को संबोधित किया जाता है।
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Jyoti

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