दशहरे पर क्यों होती है शमी के पेड़ की पूजा, क्या है इसका महत्व?

Thursday, Oct 15, 2020 - 05:02 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
17 से 25 अक्टूबर तक नवरात्रि पर्व की धूम रहेगी, जिसके बाद श्री राम की विजय का प्रतीक कहा जाने वाला त्यौहार दशहरा मनाया जाएगा। बता दें प्रत्येक वर्ष दशहरा अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। हालांकि इस बार नवमी तिथि के समाप्त होते 25 को ही दशमी तिथि लग जाएगी। जिसके साथ दशहरा मनाया जाएगा। यूं तो इस दिन से जुड़ी बहुत सी मान्यताएं हैं, परंतु सबसे अधिक जो प्रचलित हैं वो है श्री राम और रावण से जुड़ी। कहा जाता है इस दिन को श्री राम द्वारा रावण का वध करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। जिस कारण इस दिन श्री राम की पूजा की जाने का अधिक महत्व है। तो वहीं कुछ धार्मिक मान्यताएं ये भी हैं कि रावण से युद्ध करने से पहले श्री राम ने देवी दुर्गा से विजय का आशीर्वाद पाने के लिए पूरे नौ दिन तक उनकी पूजा की थी। मगर इसके अलावा एक और मान्यता जो देश के कई कोनों में प्रचलित हैं, जो दशहरा से जुड़ी हुई है। दरअसल कुछ मान्यताओं के अनुसार दशहरे के दिन शमी के पेड़ की पूजा का विधान है। जी हां, जहां एक तरफ़ इस दिन लंका के राजा जिसे लंकापति भी कहा जाता था, का पुतला फूंका जाने की परंपरा अधिक परंपरा है तो दूसरी ओर इस दिन पावन तिथि के दिन मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षक का संहार किया था, जिस कारण इस विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है, तथा इस दिन शस्त्रों की पूजा आदि का भी विधान है तो वहीं इस दिन शमी के वृक्ष को पूजना भी अत्यंत लाभकारी माना जाता है। मगर क्यों, इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं तो चलिए आपको इसी के बारे में बताते हैं। 

संस्कृत में अग्नि को शमी गर्भ के नाम से जाना जाता है। ऐसी कथाएं प्रचलित हैं कि महाभारत काल में पांडवों ने शमी के पेड़ के ऊपर अपने अस्त्र-शस्त्र छिपाए थे। जिसके बाद ही उन्होंने कौरवों से जीत की प्राप्ति हुई थी। विजयादशमी के दिन प्रदोषकाल में शमी वृक्ष का पूजन अति आवश्यक माना जाता है। कहा जाता है शमी की पूजा विजय काल में करना फलदायी होती है। 

यहां जानें कैसे करें इसकी पूजा, तथा किस मंत्र का जाप करते हुए इनकी परिक्रमा करनी चाहिए- 
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन शमी वृक्ष की पत्तियों को तोड़कर उन्हें घर के पूजा घर में रखें। 

लाल कपड़े में अक्षत, एक सुपारी के साथ इन पत्तियों को बांधकर, इसके बाद इस पोटली को गुरु या बुजुर्ग से प्राप्त करें और प्रभु राम की परिक्रमा करें।

ज्योतिष बताते हैं कि इस दिन प्रदोषकाल में शमी वृक्ष के समीप जाकर उसे प्रणाम करके हाथ जोड़कर निम्न मंत्र से प्रार्थना करनी चाहिए-

'शमी शम्यते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी।।
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता।।'

इन सबके अलावा विजयदशमी के शुभ अवसर पर नीलकंठ के दर्शन शुभ होते हैं। साथ ही साथ इस दिन अशमंतक अर्थात कचनार का वृक्ष लगाना भी अत्यंत लाभकारी माना जाता है। कहते हैं इसकी नियमित पूजा से परिवार में सुख-शांति आती है। तो वहीं इस दिन अपराजिता की पूजा का भी अधिक महत्व है। इससे जुड़े संदर्भ के अनुसार जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी हो उसे अपराजिता की पत्तियों को हल्दी से रंगे, दूर्वा और सरसों को मिलाकर एक डोरा बना कर उसे अपने दाहिने हाथ में बांधना चाहिए।  

 

Jyoti

Advertising