वास्तु गुरू कुलदीप सलूजा: श्रीलंका के शासक रहेंगे व्यसनों के दास !

Wednesday, Jul 27, 2022 - 10:04 AM (IST)

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Vastu dosh in Sri Lanka: श्रीलंका दक्षिण एशिया में हिन्द महासागर के उत्तरी भाग में स्थित एक द्वीपीय देश है। इस द्वीप राष्ट्र की भूमि केन्द्रीय पहाड़ों तथा तटीय मैदानों से मिलकर बनी है। भारत के दक्षिण में स्थित इस देश की दूरी भारत से मात्र 31 किलोमीटर है। इसका नाम सीलोन था, जिसे 1972 में बदलकर लंका तथा 1978 में इसके आगे सम्मान सूचक शब्द श्री जोड़कर श्रीलंका कर दिया गया।

श्रीलंका का पिछले 5000 वर्ष का लिखित इतिहास उपलब्ध है। श्रीलंका में राजनैतिक और आर्थिक संकट सदियों से चले आ रहे हैं। प्राचीन काल से ही श्रीलंका पर शाही सिंहल वंश का शासन रहा है परन्तु समय-समय पर दक्षिण भारतीय राजाओं द्वारा भी श्रीलंका पर आक्रमण होता रहा है।

सोलहवीं सदी में यूरोपीयन देशों ने श्रीलंका में अपना व्यापार स्थापित किया। श्रीलंका चाय, रबड़, चीनी, कॉफी, दालचीनी सहित अन्य मसालों का निर्यातक बन गया। सबसे पहले पुर्तगाल ने कोलम्बो के पास अपना दुर्ग बनाया। धीरे-धीरे पुर्तगालियों ने अपना प्रभुत्व आसपास के इलाकों में स्थापित लिया। इससे श्रीलंका के निवासियों में उनके प्रति घृणा उत्पन्न हो गई। श्रीलंका के लोगों ने डच लोगों से मदद की अपील की। सन् 1630 में डचों ने पुर्तगालियों पर हमला बोला और उन्हें मार गिराया। इसके बाद डच लोगों ने श्रीलंका पर बहुत ज्यादा कर लगा दिये। सन् 1660 तक अंग्रेजों का ध्यान भी श्रीलंका पर गया। नीदरलैंड पर फ्रांस के अधिकार होने के बाद अंग्रेजों को डर हुआ कि श्रीलंका के डच इलाकों पर फ्रांसिसी अधिकार हो जाएगा। तदुपरांत उन्होंने डच इलाकों पर अधिकार करना आरंभ कर दिया। 1800 ईस्वी के आते-आते तटीय इलाकों पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। 1818 तक अंतिम राज्य कैंडी के राजा ने भी आत्मसमर्पण कर दिया और इस तरह सम्पूर्ण श्रीलंका पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 4 फरवरी 1948 को श्रीलंका को यूनाइटेड किंगडम से पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त हुई।

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इसके बाद 1983 में श्रीलंका में बहुसंख्यक सिंहला और अल्पसंख्यक तमिलां के बीच गृहयुद्ध आरंभ हो गया। मुख्यतः यह श्रीलंकाई सरकार और अलगाववादी गुट लिट्टे के बीच लड़ा जाने वाला युद्ध था। लिट्टे अलग राज्य की मांग कर रहे थे। 30 महीनों के सैन्य अभियान के बाद मई 2009 में श्रीलंकाई सरकार ने लिट्टे को परास्त कर दिया। लगभग 25 वर्षों तक चले इस गृह युद्ध में दोनों ओर से बड़ी संख्या में लोग मारे गए।

यूं तो श्रीलंका में आर्थिक संकट हमेशा ही रहा है परन्तु पर्यटन उद्योग और चाय मसालों की बेहतरीन खेती ने उसको संभाले रखा है लेकिन 2019 में महिंदा राजपक्षे के सत्ता में आने के बाद कृषि और पर्यटन दोनों ही उद्योग तेजी से गर्त में जाने लगे। इसी के साथ कोरोना महामारी के कारण देश का पर्यटन उद्योग चौपट हो गया और विदेशी मुद्रा के स्रोत ठप हो गए। गौरतलब है कि श्रीलंका, जो चारों ओर से समुद्र से घिरा एक सुंदर देश है, इसकी पर्यटन से सबसे ज्यादा कमाई होती थी। लेकिन गर्त हो चुकी अर्थव्यवस्था इतनी जर्जर हो गई कि लगता है आने वाले कई वर्षों तक पर्यटक अब श्रीलंका में कम ही आयेंगे।

वर्तमान में श्रीलंका स्वतंत्रता मिलने के बाद से सबसे खराब आर्थिक स्थिति का सामना कर रहा है। देश में महंगाई के कारण बुनियादी चीज़ों की क़ीमतें आसमान छू रही हैं। ऐतिहासिक आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका में जारी प्रदर्शन ने जुलाई 2022 में जन विद्रोह का रूप ले लिया। लाखों प्रदर्शनकारियों ने राजधानी कोलंबो स्थित राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया और प्रधानमंत्री के व्यक्तिगत निवास को आग लगा दी। इस आंदोलन के चलते राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा और त्याग-पत्र देना पड़ा।

आइये, श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति का विश्लेषण करके देखते हैं कि श्रीलंका में सदियों से होने वाले राजनैतिक और आर्थिक संकट के पीछे क्या कारण हैं?

श्रीलंका के चारों ओर पानी है। इस देश के मध्य भाग से दक्षिण दिशा की तरफ ऊंचाई है और भूमि की ढलान पश्चिम वायव्य, पूर्व दिशा एवं आग्नेय कोण की तरफ है। पूर्व के साथ मिलकर ईशान कोण इतना दब गया है कि उत्तरी सीमा लगभग लुप्त सी हो गई है और पूर्व आग्नेय बढ़ गया है। वास्तुशास्त्र के अनुसार पूर्व आग्नेय के बढ़ाव के कारण हमेशा यहां गरीबी बनी रहेगी, विवाद होते रहेंगे और अशांति रहेगी। किन्तु श्रीलंका का विभाजन नहीं हो सकता क्योंकि इसके मध्य उत्तर, ईशान कोण एवं मध्य पूर्व में ऊंचाई नहीं है। इसी कारण लिट्टे का इतना लम्बा गृहयुद्ध असफल हुआ।

श्रीलंका में ईशान कोण दबा हुआ है भारतीय वास्तुशास्त्र के अनुसार यदि ईशान कोण कुंचित होता है तो ऐसे स्थान पर रहने वालों का धन-नष्ट होता है और उन्हें मानसिक व्यथा रहती है।

श्रीलंका में दक्षिण के साथ मिलकर नैऋत्य कोण में बढ़ाव है, ऐसे स्थानों पर रहने वाली जनता को स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं रहती हैं और अकाल मृत्यु का भय बना रहता है। वहीं दूसरी ओर पश्चिम के साथ मिलकर पश्चिम-नैऋत्य में बढ़ाव है। वास्तुशास्त्र के अनुसार इस दोष के कारण धन अधिक नष्ट होता है। इसके अतिरिक्त ऐसे स्थान का मालिक दुस्संगति और कुकर्मों के लिए बहुत पैसा खर्च करेगा, व्यसनों का दास बनेगा, जिद्दी बनेगा और समय-स्फूर्ति के अभाव में अधिक धन व्यर्थ करेगा जो कि यहां के सभी शासक आद-अनादि काल से करते आ रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे।

वास्तु गुरू कुलदीप सलूजा
thenebula2001@gmail.com

Niyati Bhandari

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