आखिर क्यों आज भी पहनी जाती है लकड़ी की पादुका?

punjabkesari.in Thursday, May 09, 2019 - 11:15 AM (IST)

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अक्सर आप लोगों ने मंदिरों के पुजारियों को लकड़ी पादुका जिसे आम भाषा में खड़ाऊ भी कहते हैं, उसे पहना देखा होगा। लेकिन क्या कभी ने ये सोचा है कि ये पुजारी लोग इसे क्यों पहनते हैं? इसका क्या फायदा हो सकता है? तो चलिए हम आपको आज इसके बारे में बताएंगे। 
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पुरातन समय में साधु-संत खड़ाऊ (लकड़ी की चप्पल) पहनते थे। पैरों में लकड़ी के खड़ाऊ पहनने के पीछे भी हमारे साधु-संतों की सोच पूर्णत: वैज्ञानिक थी और ये परंपरा आज भी प्रचलित है। गुरुत्वाकर्षण का जो सिद्धांत वैज्ञानिकों ने बाद में प्रतिपादित किया उसे हमारे ऋषि-मुनियों ने काफी पहले ही समझ लिया था। यजुर्वेद में कई जगह लकड़ी की पादुकाओं का भी उल्लेख मिलता है। चलिए जानते हैं इसके फायदे क्या हैं। 
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शरीर में प्रवाहित हो रही विद्युत तरंगे गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी द्वारा अवशोषित कर ली जाती है। इसी जैविक शक्ति को बचाने के लिए साधु-संतों ने पैरों में खड़ाऊ पहनने की प्रथा प्रारंभ की।

कहते हैं कि शरीर की विद्युत तंरगों का पृथ्वी की अवशोषण शक्ति के साथ संपर्क न हो सके इसलिए लकड़ी की चप्पल पहनी जाती है। 
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खड़ाऊ यानी लकड़ी की चप्पल पहनने से सबसे बड़ा लाभ है कि यह शरीर में रक्त संचार को सुचारू रूप से चलाता है।

ऐसा माना गया है कि खड़ाऊ पहनने से मानसिक और शारीरिक थकान दूर होती है। यह पैरों की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है और रीढ़ की हड्डी सीधी रखने में मदद मिलती है।


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