Kundli Tv- जानें, धार्मिक स्थान पर क्यों ढकते हैं सिर
Wednesday, Aug 29, 2018 - 04:31 PM (IST)
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धार्मिक स्थलों पर सिर पर कपड़ा रख कर ही दर्शन या इबादत की जाती है। यज्ञ, हवन, पूजा, शुभ कार्यों मेें सिर पर रूमाल या अन्य वस्त्र रखते हैं। यहां तक घर की स्त्रियां बड़े-बूढ़े बुजुर्ग, सास-ससुर से आशीर्वाद लेती हैं तो सिर को साड़ी के पल्लू या चुन्नी से ढंक कर लेती हैं, यह उनके सम्मान का सूचक होता है। बड़ों को आदर देने के लिए भी सिर ढंक कर रखा जाता हैं। कई जगह पर तो स्त्रियां नियमित रूप से सिर को ढंक कर ही रखती हैं।
आखिर क्या है इसका रहस्य?
मनुष्य के शरीर में ‘सिर’ अंग बड़ा संवेदनशील है। हमारे शरीर में 72,000 सूक्ष्म नाडिय़ां होती हैं। इनमें तीन मुख्य नाडिय़ां हैं, सुष्मना नाड़ी, पिंगला नाड़ी और इड़ा नाड़ी। सुष्मना नाड़ी, मध्य नाड़ी है जो रीढ़ की हड्डी के मूल से लेकर सिर के ऊपर तक जाती है। पिंगला नाड़ी सुष्मना नाड़ी के दाएं से जाती है। इड़ा नाड़ी बाएं से जाती है। जैसे तीन पवित्र नदियां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम प्रयाग में होता है उसी प्रकार तीन नाडिय़ों सुष्मना, पिंगला और इड़ा, का मूल संगम सिर के मूल में होता है, सिर के मूल में ब्रह्मारंध्र के ऊपर सूक्ष्म द्वार है जो एक हजार पंखुडिय़ों का कमल है उसे ही सहस्रार चक्र कहते हैं। इसी चक्र से पूर्ण शरीर चलता है, इसी में ही सम्पूर्ण शक्ति विराजमान होती है। इसी को आत्मा का स्थान सूत्रात्मा कहा गया है। इसी से ईश्वरीय शक्ति ग्रहण की जाती है।
ब्रह्मारंध्र, शरीर की सूक्ष्म ऊर्जाओं को ग्रहण करता है उसी ऊर्जा को पुन: ऊपर की ओर ले जाता है। ब्रह्मांड में अनगिनत ऊर्जा प्रति क्षण भ्रमण करती रहती है जब आप ध्यान अथवा उपासना करते हैं तो शरीर एक स्थान पर स्थिर अचल हो जाता है, उस अचल अवस्था के दौरान ब्रह्मांड में मौजूद बहुत सारी ऊर्जा, हमारे शरीर में सिर के माध्यम से प्रवेश करने लग जाती है। ब्रह्मांड की ऊर्जा तीव्रगामी और अत्यंत शक्तिशाली होती है। इन्हीं ऊर्जाओं से पृथ्वी के सभी तत्व चलायमान हैं। अगर किसी कुंभ घड़े में अधिक ऊंचाई से पानी डाला जाए तो वह कुंभ टूट कर बिखर जाता है उसी प्रकार उपासना, ध्यान और पूजा के समय शरीर कुंभ का रूप धरण कर लेता है। जब कुंभ रूपी शरीर में शक्तिशाली ऊर्जा सिर के ऊपर, ऊंचाई से गिरेगी तब सिर पर भयंकर प्रहार होगा, जिससे शरीर में नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। ब्रह्मांड में शुद्ध ऊर्जाओं के साथ-साथ अशुद्ध ऊर्जाओं का भी साम्राज्य है। यह अशुद्ध ऊर्जा शरीर में प्रवेश न करे इसलिए सिर पर सूती वस्त्र, कपड़ा ढंकते हैं, जैसे चाय देते समय उसको छाना जाता है ताकि साफ चाय पात्र में आ सके और अन्य साम्रगी छलनी में रह जाए इसी प्रकार सिर पर वस्त्र रखने से अशुद्ध ऊर्जा उस वस्त्र में अटक जाती हैं और शुद्ध ऊर्जा शरीर में प्रवेश कर जाती है।
ध्यान, उपासना के समय ब्रह्मारंध्र के माध्यम से शरीर में ऊर्जा जागृत होने लग जाती है। ऊर्जाओं का प्रभाव शक्तिशाली होता है जिसके प्रभाव से सिरदर्द, चक्कर आना, उल्टी आदि हो सकती है। इन्हीं अशुद्ध ऊर्जाओं के प्रभाव को रोकने के लिए सिर पर कपड़ा अथवा शिखा रखी जाती है। सिर पर कपड़ा ढंकने का अन्य कारण मन का इधर-उधर न भटकना भी है। पूजा के समय सिर पर वस्त्र होने से आंखें इधर-उधर नहीं भटकतीं। सिर के बालों में चुम्बकीय शक्ति होती है, जो ब्रह्मांड में चलित सकारात्मक और नकारात्मक शक्तियों को आसानी से ग्रहण कर सकती है। ब्रह्मारंध्र सिर के मध्य स्थित होने से ब्रह्मांड में जब भी मौसम परिवर्तन होगा तो उसका प्रभाव ब्रह्मारंध्र से होते हुए शरीर के अन्य अंगों पर पड़ता है। स्त्रियां अपने सिर पर वस्त्र ढंक कर रखती हैं जिसके कारण उनके सिर में नकारात्मक ऊर्जा ज्यादा प्रवेश नहीं करती।
इसके विपरीत पुरुष का सिर खुला हुआ होता है जिससे नकारात्मक ऊर्जा उनके शरीर में प्रवेश करती रहती है, इससे बालों के रोग गंजापन, डैंड्रफ, बाल झडऩा आदि पुरुषों में अधिक देखने को मिलते हैं, आपने स्वयं इसका प्रभाव देखा ही होगा कि पुरुष के सिर के बाल उडऩे लग जाते है, वे गंजे होने लगते हैं जबकि उनके सिर के पीछे के हिस्से में अक्सर बाल होते हैं क्योंकि नकरात्मक ऊर्जा उनके सिर के मध्य भाग से, शरीर में प्रवेश करती है इसलिए सिर के ठीक ऊपर के बाल टूट जाते हैं और धीरे-धीरे गंजे होने लगते हैं।
किसी व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत उसके परिवार के सदस्यों का मुंडन किया जाता है ताकि मृत व्यक्ति की नकारात्मक ऊर्जा सदस्यों के बालों को ग्रहण न करे चूंकि स्त्रियां अपने सिर को ढंक कर रखती हैं इसलिए वे नकारात्मक कीटाणु उनके बालों पर अपना अधिक प्रभाव नहीं दिखा पाते। नवजात बच्चे का भी मुंडन कराया जाता है ताकि गर्भ के दौरान उसके बालों में चिपके हुए अशुद्ध कीटाणु समाप्त हो जाएं।
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