सुबह उठते ही सबसे पहले करना चाहिए ये काम, मिलते हैं ढेरों फायदें

Wednesday, Jun 19, 2019 - 11:56 AM (IST)

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अगर हिंदू धर्म की नज़र से देखें तो धरती को माता का दर्ज़ा दिया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि शास्त्रों में पृथ्वी को मां कहा गया है। यही कारण है सनातन संस्कृति में सुबह उठते ही धरती को दाएं हाथ से स्पर्श कर माथे पर लगाने की परपंरा है। प्राचीन काल में महान ऋषि-मुनियों ने इस रीति को विधान बनाकर धार्मिक रूप इसलिए दिया ताकि मानव धरती माता के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट कर सकें और उन्हें सम्मान दे सकें। इसके अलावा कहा जाता है जो भी हम धरती में बोते हैं, ये उसे ही पल्लवित-पोषित करके हमें पुनः दे देती है। अन्न, जल, औषधियां, फल-फूल, वस्त्र एवं आश्रय आदि सब धरती की ही तो देन हैं। शास्त्रों के अनुसार इन्हीं सब कारणों से हम सब धरती माता के ऋणी हैं।

ज्योतिष शास्त्र में इन्हीं सभी बातों को ध्यान में रखते हुए कहा गया है कि हर व्यक्ति को सुबह उठकर धरती को प्रणाम करना चाहिए। इसमें इसके लिए एक मंत्र भी दिया गया है। कहते हैं यूं तो माता के समान पूज्यनीय होने से भूमि पर पैर रखना भी दोष का कारण माना जाता है। पर अब भूमि स्पर्श से तो कोई अछूता नहीं रह सकता। यही कारण है कि शास्त्रों में उस पर पैर रखने की विवशता के मद्देनज़र ज्योतिष शास्त्र में एक खास मंत्र दिया गया है जिसक द्वारा धरती माता से क्षमा प्रार्थना की गई है।

ये है मंत्र-
समुद्र-वसने देवि, पर्वत-स्तन-मंडिते।
विष्णु-पत्नि नमस्तुभ्यं, पाद-स्पर्शं क्षमस्व मे॥

अर्थात- इस मंत्र का अर्थ है, समुद्र रुपी वस्त्र धारण करने वाली पर्वत रुपी स्तनों से मंडित भगवान विष्णु की पत्नी हे माता पृथ्वी! मुझे पाद स्पर्श के लिए क्षमा करें।

जानें कब-कब और क्यों होती है धरती माता की पूजा-
किसी भी छोटे बबच्चे को नया वस्त्र पहनाने से पहले कपड़े को पहले धरती से स्पर्श करवाया जाता है। कहा जाता है यह सब धरती मां की मानसिक पूजा का ही एक रूप है।

किसी भी तरह की पूजा व अनुष्ठान आरम्भ करने से पहले उस जगह को धोकर, जल छिड़क कर, मांडना बनाकर मूर्ति, कलश,दीपक या पूजा की थाली रखी जाती है।

मकान-दुकान आदि के निर्माण कार्य में सर्वप्रथम भूमि पूजन ही किया जाता है और खास मंत्रों से मां भूमि की प्रार्थना की जाती है। इसके अलावा नींव में चांदी का सर्प रखा जाता है। ये मान्यता हिंदू धर्म से जुड़ी हुई है क्योंकि शास्त्रों के अनुसार हमारी पृथ्वी सर्प के फन पर टिकी हुई है।

किसानों को अपनी खेती से उत्तम फसल की प्राप्ति हो इसके लिए फसल बोने से पहले धरती पूजन किया जाता है।

नए घर में प्रवेश करने से पूर्व देहरी की पूजा अवश्य की जाती है। विवाह के समय भी नई बहू के द्वारा रोली, चावल, फल-मिठाई आदि से देहली की पूजा करवाई जाती है।

प्राचीन समय में घरों में गृहिणी सुबह उठते ही घर, मुख्य द्वार को झाड़-बुहार कर जल से धोकर चौक पूरती थीं। काफ़ी जगह आज भी हमारे बड़े-बुज़ुर्ग घर से बाहर जाते वक्त बड़ी ही श्रद्धा से धरती को स्पर्श कर प्रणाम करते हैं।

वास्तव में भूमि वंदना से जुड़े वैज्ञानिक कारण की ओर दृष्टि डाली जाए तो अनेक शोध बताते हैं कि जब हम कोई कम्बल या चादर ओढ़कर सोते हैं, तो हमारे शरीर का तापमान थोड़ा बढ़ जाता है, ऐसे में बिस्तर से नीचे एकदम पैर रख देने से शरीर में गर्मी-सर्दी का प्रवाह हो जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।

तो वहीं व्यवहारिक दृष्टि से भूमि वंदना इंसान को ज़मीन से जुड़े रहकर अहंकार से परे हटाकर सहनशील, धैर्यवान बनता है।

Jyoti

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