जिसका काम उसी को साजे और करे तो बुद्धु बाजे

Friday, Jul 28, 2017 - 02:23 PM (IST)

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक धुन के पक्के थे। उनकी एक और विशेषता उनकी विनोदप्रियता थी। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वह मनोविनोद करते हुए समस्या को सुलझा लेते थे। वह ‘केसरी’ नाम का मराठी दैनिक अखबार निकालते थे, जिसके तीखे तेवर से अंग्रेज सरकार परेशान रहती थी। वह छोटी-छोटी बातों को लेकर उन पर मुकद्दमा कर देती थी। एक बार हाईकोर्ट में उन पर एक मुकद्दमा चल रहा था। तिलक की ओर से एक सीनियर वकील पैरवी कर रहे थे। संयोगवश उस दिन उनको अदालत आने में विलम्ब हो गया। जब वह काफी देर तक नहीं आए तो वहां मौजूद एक युवा वकील अपने एक अन्य मित्र वकील को लेकर उनके समीप गया और बोला, ‘‘सर, लगता है  आपके वकील साहब को जरूरी काम आ गया है। तभी तो उन्हें आने में देर हो रही है। अगर आप कहें तो हम दोनों उनके स्थान पर आपकी सहायता करने के लिए तैयार हैं।’’ 


तिलक बोले, ‘‘अच्छा तो आप मेरे सीनियर वकील की जगह लेने के लिए बिल्कुल तैयार हैं।’’ 


युवा वकील बोले, ‘‘जी सर, आप हमें मौका तो दीजिए।’’ 


तिलक मुस्कुरा कर बोले, ‘‘मेरे वकील आपसे लगभग दोगुनी उम्र के होंगे।’’


युवा वकील बोला, ‘‘कोई बात नहीं सर। हम बहुत अच्छा काम करेंगे।’’


तिलक ने कहा, ‘‘बीस-बाइस वर्ष की किसी कन्या के लिए वर के स्थान पर क्या दस-बारह वर्ष के दो किशोर चल सकते हैं।’’ 


तिलक की बात सुनकर वहां उपस्थित सभी लोग हंस पड़े।

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