Kundli Tv- जानें, कौन थी ललिता, क्या था इसका कन्हैया से रिश्ता

Wednesday, Jun 20, 2018 - 01:47 PM (IST)

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मीराबाई श्री कृष्ण की एक एसी भक्त थी जिनका सब कुछ मुरली मनोहर को समर्पित था। यहां तक कि कृष्ण को ही वह अपना पति मानती थीं। भक्ति की ऐसी लगन बहुत कम अवस्था में देखने को मिलती है। बचपन से मीराबाई के मन में श्री कृष्ण की ऐसी छवि बसी थी कि किशोरावस्था से लेकर मृत्यु तक उन्होंने कान्हा को ही अपना सब कुछ माना। जोधपुर के रहने वाले राठौड़ रतनसिंह जी की इकलौती पुत्री मीराबाई का जन्म सोलहवीं शताब्दी में हुआ था। बचपन से ही वह कृष्ण-भक्ति में रम गई थीं।

कुछ मान्यता के अनुसार मीराबाई के बचपन की एक घटना की वजह से ही उनका कृष्ण-प्रेम अपनी अंतिम अवस्था तक पहुंचा था। इसके बार में कुछ एेसे कथा प्रचलित है कि एक दिन उनके पड़ोस में किसी बड़े आदमी के यहां बारात आई। सभी औरतें छत पर खड़ी होकर बारात देख रही थीं। मीरा भी बारात देखने लगी। बारात को देख कर मीरा ने अपनी माता से पूछा कि मेरा दूल्हा कौन है? 



इस पर उनकी माता जी ने कृष्ण की प्रतिमा की ओर इशारा किया और कहा कि यही तुम्हारा दूल्हा है। बस यह बात मीरा के बालमन में एक गांठ की तरह बंध गई। कुछ समय पश्चात मीराबाई की शादी महाराणा सांगा के पुत्र भोजराज से करवा दी गई। इस शादी को करने के लिए पहले तो मीराबाई ने मना कर दिया लेकिन जब उनके माता-पिता द्वारा उन पर जोर दिया जाने लगा तो वह फूट-फूट कर रोने लगीं। शादी के बाद विदाई के समय वे कृष्ण की वही प्रतीमा अपने साथ ले गईं, जिसे उनकी माता ने उनका दूल्हा बताया था।

  
मीरा रोज अपने घर के काम करने के पश्चात श्री कृष्ण के मंदिर चली जातीं और कृष्ण की पूजा करतीं, उनकी प्रतिमा के सामने गातीं और नृत्य करतीं। उनके ससुराल वाले  दुर्गा मां को अपनी कुल-देवी मानते थे। जब मीरा ने कुल-देवी की पूजा करने से मना कर दिया तो परिवार वालों ने उनकी श्रद्धा-भक्ति को मंजूरी नहीं दी। मीराबाई की ननद उदाबाई ने उन्हें बदनाम करने के लिए उनके खिलाफ एक साजिश रची। उसने राणा से कहा कि मीरा का किसी के साथ गुप्त प्रेम है और उसने मीरा को मंदिर में अपने प्रेमी से बात करते देखा है।

एक दिन राणा ने देखा कि मीरा अकेले ही बैठी श्री कृष्ण की प्रतीमा के सामने बातें कर रही थीं और मस्ती में गा रही थीं। राणा मीरा पर चिल्लाया, "मीरा, तुम जिस प्रेमी से अभी बातें कर रही हो, उसे मेरे सामने लाओ।"

मीरा ने जवाब दिया, "वह सामने ही हैं।मेरा स्वामी, नैनचोर है जिसने मेरा दिल चुराया है इतना कहकर वह समाधि में चली गईं। इस घटना से राणा कुंभा का दिल टूट गया, लेकिन फिर भी उसने एक अच्छे पति की भूमिका निभाई और मरते दम तक मीरा का साथ दिया।"

राणा के संबंधी मीरा को कई तरीकों से सताने लगे। श्री कृष्ण के प्रति मीरा की बहुत लगन थी लेकिन कभी-कभी मीरा के मन में प्रेमानंद इतना उमड़ पड़ता था कि वह  धार्मिक उत्सवों में नाचने-गाने लगती थीं। वे रात में चुपचाप चित्तौड़ के किले से निकल जाती थीं और नगर में चल रहे सत्संग में हिस्सा लेती थीं। मीरा का देवर विक्रमादित्य बहुत कठोर था। वह मीरा की भक्ति उनका आम लोगों के साथ घुलना-मिलना के बिल्कुल विरुद्ध किया। उसने कई बार मीरा को मारने की कोशिश भी की। एक बार उसने मीरा के पास फूलों की टोकरी में एक जहरीला सांप रखकर टोकरी भेजी और मीरा को संदेश भिजवाया कि टोकरी में फूलों के हार हैं। ध्यान से उठने के बाद जब मीरा ने टोकरी खोली तो उसमें से फूलों के हार के साथ श्री कृष्ण की एक सुंदर प्रतीमा निकली।

जब यातनाएं बरदाश्त से बाहर हो गईं, तो उन्होंने चित्तौड़ छोड़ दिया। वे पहले मेड़ता गईं, लेकिन जब उन्हें वहां भी संतोश नहीं मिला तो कुछ समय के बाद वह वृंदावन चली गई। मीरा का मानना था कि वह गोपी ललिता ही हैं, जिन्होने फिर से जन्म लिया है। ललिता कृष्ण के प्रेम में दीवानी थीं। मीरा ने अपनी तीर्थयात्रा जारी रखी, वे एक गांव से दूसरे गांव नाचती-गाती पूरे उत्तर भारत में घूमी। कहा जाता है कि मीरा ने अपने जीवन के कुछ अंतिम साल गुजरात के  द्वारका में गुजारे, वहां लोगों की भरी भीड़ के सामने मीरा बाई द्वारका धीश की प्रतीमा  में समा गईं।

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Jyoti

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