जब दुख के दिन आने होते हैं तो बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है: श्री कृष्ण विज
Wednesday, Mar 21, 2018 - 10:05 AM (IST)
जालंधर, (पांडे): श्री राम शरणम आश्रम 17 लिंक रोड द्वारा आयोजित 8 दिवसीय रामायण ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन पूज्य श्री कृष्ण विज जी ने स्वामी सत्यानन्द द्वारा रचित रामायण की चौपाइयों की व्याख्या करते हुए राजा दशरथ और कैकेयी का संवाद सुनाते हुए कहा कि जब मंथरा ने कैकेयी को राम के राज्य अभिषेक की बात बताई तथा कैकेयी को राजा दशरथ की तरफ से दिए गए 2 वर मांगने की याद दिलाई।
इस पर कैकयी ने श्री राम को 14 वर्षों का वनवास तथा भरत का राज्य अभिषेक की मांग करते हुए दिए वचनों को पूरा करने को कहा तो राजा दशरथ के पांवों तले से जमीन खिसक गई। राजा दशरथ ने कैकेयी से कहा-‘ हे! रानी तू जितना चाहे उतना धन दौलत ले ले लेकिन राम के लिए वनवास न मांग... ’ लेकिन रानी कैकेयी नहीं मानती। तब राजा दशरथ रानी कैकेयी के चरणों में गिर कर प्रार्थना करता है- ‘रानी राम को वन न भिजवा कर मेरी जान बचाओ ...।’ गुस्से में आकर रानी कैकेयी राजा दशरथ से कहती है - ‘मुझे कायरों वाली बात पसंद नहीं है अगर मेरे वचन पूरे नहीं कर सकते तो मुझे मना कर दो। मैं अभी जहर खाकर अपने आप को समाप्त कर लूं।’ गुस्से में रानी राजा दशरथ को कहती है - ‘अभी सुमन्त को बुलाओ और राम को वन भेजो और भरत का राज्य अभिषेक करो।’ कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए श्री कृष्ण जी ने कहा - ‘जब दुख के दिन आने होते हैं तो बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है।
अपने ही पराये लगते हैं, विश्वास खत्म हो जाता है।’ उन्होंने कहा कि जो कैकेयी राम को देखे बिना पानी नहीं पीती थी और राम को नयनों का तारा कहती थी वही कैकेयी राजा दशरथ से कह रही है कि राम को जब तक वन नहीं भेजोगे तब तक वह पानी नहीं पीएगी । इधर, राम राज महल में प्रवेश करते हैं तो राजा दशरथ की उदासी, निराशा देख कर घबरा जाते हैं कि आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ। राम उक्त दृश्य देख कर कैकेयी से कहते हैं कि मां अगर मुझ से कोई गलती हो गई है तो उसे पिता जी से कह कर क्षमा करवा दो।
श्री कृष्ण जी ने कहा कि इन्सान एक पाप को छुपाने के लिए पाप पर पाप करता चला जाता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य के दांत जब तक मुख में रहते हैं काफी अच्छे लगते हैं, बाल जब तक सिर पर रहते हैं अच्छे लगते हैं परंतु जब वह शरीर से गिर जाते हैं तब वह अशुभ हो जाते हैं। जब इन्सान अपने चरित्र से गिर जाता है तो समाज उसे अच्छा नहीं समझता। तब वह व्यक्ति मनहूस हो जाता है। इधर, राम जी वन जाने से पहले मां के पास आते हैं और वन में जाने की बात करते हैं तो मां कौशल्या बहुत दुखी होती है। आज की सभा में श्रीमती रेखा जी द्वारा रामायण की चौपाइयों का पाठ किया गया। राम नाम से पूरा पंडाल गूंज उठा। सर्वशक्ति मते परमात्मने श्री रामाय नम: से सभा को विश्राम दिया गया।