अजब-गजब: दीपावली की रात तांत्रिक देते हैं लक्ष्मी जी के वाहन उल्लू की बली

Friday, Nov 10, 2023 - 08:59 AM (IST)

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Night of diwali owl in india: दीपावली लक्ष्मी पूजन का त्यौहार होता है तथा प्राय: सभी देवी-देवताओं के लिए (जिस प्रकार) अलग-अलग वाहन नियत हैं, जैसे-मां दुर्गा का वाहन सिंह, गणेश जी का वाहन-चूहा, ठीक उसी प्रकार मां लक्ष्मी का वाहन उल्लू है। उल्लू के नाम से बच्चे, जवान, बूढ़े सभी लोग परिचित हैं। कोई भी उल्टा-सीधा कार्य करने पर उल्लू की उपाधि प्राय: सभी को कभी न कभी अवश्य ही मिलती है। प्राय: सभी उल्लू पक्षी शिकारी होते हैं। छोटे-छोटे जीव जैसे चिड़िया, कौवे, सांप, चमगादड़, छिपकलियां, चूहे, मेंढक, मछलियां व केकड़े इनका प्रिय भोजन हैं। इसी कारण उल्लू कृषि प्रधान देशों में फसल का रक्षक तथा किसानों का मित्र भी साबित होता है। कभी-कभी उल्लू सिर्फ चूहे खाकर जीवित रहते हैं। चूहों से अनेक संक्रामक रोग, जैसे प्लेग आदि फैलता है तथा इस प्रकार उल्लू छूत से फैलने वाले रोगों से मनुष्य का बचाव करते हैं। उल्लू रात में उड़ते समय जरा-सी भी आवाज नहीं करते। इनके पंखों का ऊपरी भाग सुनहरा बादामी व निचला भाग रेशम-सा सफेद होता है।



उल्लू का वर्णन हमारे प्राचीन धर्मग्रंथों में भी मिलता है। ऐसा माना जाता है कि भारत में यह पक्षी हजारों वर्ष पूर्व से पाया जाता है। तंत्रशास्त्र में उल्लू का सबसे अधिक उल्लेख मिलता है। तांत्रिक लोग अपनी अनोखी साधना में उल्लू का बलिदान देकर सिद्धि प्राप्त करते हैं। उल्लू के बलिदान का शुभ मुहूर्त दीपावली की रात में ही निकाला जाता है। कहते हैं कि ऐसी ही कई प्रकार की किंवदंतियों का वर्णन तंत्र-सिद्धि संबंधी बहुत से ग्रंथों में मिलता है। यद्यपि लक्ष्मी का सर्वप्रिय वाहन उल्लू है, परन्तु इसकी भद्दी सूरत एवं अनेक अप्रिय आचरणों के कारण लोग इससे घृणा करते हैं तथा किसी भी शुभ कार्य या मुहूर्त में इसको देखना अपशकुन माना जाता है।
इसका चेहरा गोल होता है, आंखें अगल-बगल में न होकर सामने होती हैं। चपटे चेहरे पर स्थित उल्लू की आंखें बड़ी डरावनी और बड़ी-बड़ी होती हैं। इन बड़ी आंखों की सहायता से ही ये अपना शिकार रात में आसानी से ढूंढ लेते हैं।

कुछ बिल्ली जैसे मुंह वाले होते हैं। ‘मच्छा उल्लू’ का मुंह मछली के समान होता है। उल्लू संसार भर में खासतौर से हिमालय की तराई में भी पाए जाते हैं। इन्हें झुंडों में रहना अधिक पसंद होता है। इनमें पहाड़ी उल्लू एवं लद्दाखी उल्लू नाम की प्रजातियां भी प्रसिद्ध हैं। प्राय: उल्लू अपने घोंसले खुद नहीं बनाते। इनके घोंसले टहनियों, घास-फूस और नरम वस्तुओं व पेड़ की कोटरोंं में बने होते हैं। वे वर्षों तक एक ही जगह रहते हैं। मादा उल्लू बारह महीने अंडे देती है, जो गोलाकार एवं सफेद होते हैं। यह नर से बड़ी होती है तथा एक बार में 6 से 7 अंडे देती है।



उल्लू प्राय: पूरी दुनिया में पाए जाते हैं। संसार में इसकी अनेक प्रजातियां पाई जाती हैं। हमारे देश में इसकी मुख्यत: दो प्रजातियां पाई जाती हैं- मुआ, जो पानी के करीब रहता है तथा घुग्घू, जो पुराने पेड़ों एवं खंडहरों में अधिक पाए जाते हैं। उत्तरी अमरीका में एक प्रकार का उल्लू पाया जाता है, जो सिर्फ 6 या 7 इंच ऊंचा होता है। जोर-जोर से चीखने वाला उल्लू भूरे या हल्के लाल रंग का होता है। ब्रिटेन में एक प्रकार का जंगली उल्लू पाया जाता है, जिसे टॉमी उल्लू कहते हैं।

पक्षियों में विशेषकर उल्लू की गर्दन बहुत ही लचकदार होती है। यह एक ही संधि या जोड़े से बनी होती है अत: ये इसे आसानी से इधर-उधर कहीं भी मोड़ या घुमा सकते हैं। इस प्रकार से गर्दन को मोड़ पाना किसी अन्य प्राणी के लिए संभव नहीं। जुझारू शिकारी उल्लू अन्य पक्षियों पर हमला कर उन्हें आखिरी दम तक नहीं छोड़ते।

यह शिकार प्रेमियों द्वारा अन्य पक्षियों का शिकार करने के लिए भी पाले जाते हैं। केवल मच्छलीखोर भूरे रंग के उल्लू ही चट्टानों के बीच बहने वाली नदियों, बीहड़ों और झीलों एवं नालों के आस-पास रहते हैं।

उल्लू मुख्यत: अपने आप में एक रात्रिचर पक्षी है। अत: ये अपना शिकार रात में ही खोजने निकलते हैं। दिन में ये घने जंगलों और पेड़ों की कोटरों (खोहों) या अंधेरे स्थानों में छिप कर रहना पसंद करते हैं। इसी कारण वीरान स्थानों के बारे में कहा जाता है कि अमुक स्थान इतना सुनसान है कि वहां उल्लू बोलते हैं।



उल्लू गणितज्ञ है या मूर्ख, यह फैसला तो मुश्किल है, परन्तु इतना निश्चित है कि उल्लू का अपमान करने से लक्ष्मी जी नाराज हो जाती हैं क्योंकि यह उनका वाहन जो है तथा बिना उल्लू के लक्ष्मी जी आती नहीं।  

 

Niyati Bhandari

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