क्या है इंसान के दुख का कारण?

Thursday, Oct 01, 2020 - 10:44 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
एक आदमी  सागर के किनारे टहल रहा था। एकाएक उसकी नजर चांदी की एक छड़ी पर पड़ी जो बहती-बहती किनारे आ लगी थी। वह खुश हुआ और झटपट छड़ी उठा ली। अब वह  छड़ी  लेकर  टहलने  लगा। धूप चढ़ी तो उसका मन सागर में नहाने को हुआ।

उसने सोचा, अगर छड़ी  को किनारे रखकर नहाऊंगा तो कोई ले जाएगा इसलिए वह छड़ी हाथ में ही पकड़ कर नहाने लगा। तभी एक ऊंची लहर आई और तेजी से छड़ी को बहाकर ले गई। वह अफसोस करने लगा और दुखी होकर तट पर आ बैठा।

उधर से एक संत आ रहे थे। उसे उदास देख पूछा, ‘‘इतने दुखी क्यों हो?’’ उसने बताया, ‘‘स्वामी जी नहाते हुए मेरी चांदी की छड़ी सागर में बह गई।’’

संत ने हैरानी जताई, ‘‘छड़ी लेकर नहा रहे थे?’’

वह  बोला,   ‘‘क्या  करता? किनारे रख कर नहाता तो कोई ले जा सकता था।’’

स्वामी जी ने पूछा, ‘‘...लेकिन चांदी की छड़ी लेकर नहाने क्यों आए थे?’’

आदमी ने बताया, ‘‘लेकर नहीं आया था,  वह  तो  यहीं पड़ी मिली थी।’’  

यह  सुनकर  स्वामी जी हंसने लगे और बोले, ‘‘जब वह तुम्हारी थी ही नहीं तो फिर दुख या उदासी कैसी?’’ 

Jyoti

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