Yatra: आईए करें, श्री राम यात्रा मार्ग के कुछ स्थलों का दर्शन

Sunday, Feb 21, 2021 - 10:47 AM (IST)

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What is the journey of Ram Lakshman and Sita: श्री राम के यात्रा स्थल अथवा मार्ग पुस्तकालयों में बैठ कर नहीं खोजे गए हैं बल्कि शहरों, ग्रामों, जंगलों, पहाड़ों में घूम-घूम कर वहां के निवासियों से मिले एकत्रित विश्वास का संग्रह है। प्राप्त लोक कथाओं तथा जनश्रुतियों में स्थानीय प्रभाव तथा काल के प्रभाव ने बहुत कुछ जोड़ दिया होगा अथवा बहुत से तथ्य रह गए होंगे।

Lord Ramas Route Journey According To Epic Ramayana: अनेकों कथाएं चलती-चलती लोप हो गई होंगी तो भी बीज तो बचा ही है। अब यह शोधार्थियों का दायित्व है कि ‘सार-सार को गहि लहे, थोथा देय उड़ाय।’ किन्तु यह कार्य पुस्तकालय में बैठकर नहीं ‘रमते राम’ बन कर ही किया जा सकता है।

Lord Rama had visited these places during Vanvas: इन स्थलों को जब मानचित्र पर अंकित करते हैं तो एक मार्ग जैसा बनता दिखाई देता है और यह मार्ग वाल्मीकि रामायण के वर्णन से मेल खाता है। श्री राम जी अयोध्या जी से सुतीक्ष्ण आश्रम तक लगभग सीधे ही गए थे। हां, चित्रकूट प्रवास में आसपास अवश्य घूमते रहे थे। सुतीक्ष्ण जी से भेंट के बाद वे दंडकारण्य में 10 वर्ष तक भ्रमण करते रहे। मुनियों के आश्रमों में गए जहां से उन्हें बहुत प्यार हो गया था। वहां दो-दो बार गए तथा पुन: सुतीक्ष्ण जी के आश्रम में आ गए। अत: उन 10 वर्षों का मार्ग बनना संभव ही नहीं लगता क्योंकि आश्रमों तथा सभी ऋषियों के नामों का वर्णन नहीं है।

Ram Ji Vanvas Me Kaha Kaha gaye tha Ramayan : महर्षि ने मार्ग का संकेत दिशा तथा पर्वतों के माध्यम से दिया है। मार्ग में आने वाले ये पर्वत भी छोटे तो हैं नहीं बल्कि बड़े भू भाग में फैले हुए हैं। फिर भी इन पर्वतों में मार्ग आभासित हो रहा है।

मार्ग में ऋषियों के अनेकों आश्रम मिले हैं। श्री राम इनमें से किसमें गए? किसी एक में गए अथवा सभी में गए? कुछ संकेत नहीं मिलता। पुराणों में वर्णन है कि श्री राम ने बहुत बार तीर्थ यात्राएं की थीं। अमुक स्थान पर श्री राम आए थे यह तो पता चलता है किन्तु वनवास यात्रा में आए या तीर्थ यात्रा में, यह पता लगाना कठिन है किन्तु इसका भी एक मार्ग निकलता है। पंचवटी के बाद जहां श्री राम के साथ सीता जी भी आईं वे स्थान तीर्थ यात्रा से संबंधित हैं। अन्य स्थलों पर हनुमान जी का साथ होना निश्चित रूप से तीर्थ यात्रा से संबंधित स्थल हैं।

अयोध्या जी से पंचवटी तक जहां भी श्री राम, लक्ष्मण जी तथा सीता जी हैं वे स्थल वनवास यात्रा से संबंधित हैं। पंचवटी के आगे जिन स्थलों पर केवल श्री राम, लक्ष्मण तथा कष्किंधा से आगे जहां भी राम, लक्ष्मण, सुग्रीव तथा हनुमान हैं वे सभी स्थल वनवास यात्रा से संबंधित हैं।

मार्ग में नदियों का महत्व
श्री राम वनवास मार्ग निर्धारण में नदियों का भी बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है। वाल्मीकि रामायण में तमसा (मंढाह), वेदश्रुति (विसुही), गोमती, स्पंदिका (सई), बालुकिनी (बकुलाही), वद्रथी (सकरनी), गंगा जी, यमुना जी, मंदाकिनी तथा तुंगभद्रा नदियों का नाम आया है।
श्री राम के वनवास मार्ग में आने वाली अन्य नदियां इस प्रकार हैं :
वाल्मीकि नदी, बाघिन, केन, तिहरी, गलको, शिल्परा, हिरण, मोढू, सोन, जुहिला, मबई, रापा, नेउर, बरनी, जोजाराम, बालम, देही, सरगी, चित्रोत्पला, इंद्रावती, कांगेर, सती, सलेरू, होल्दीहोल, माजरा, राम गंगा, कुंडलिनी, कपिला, प्रवरा, कादमा, दारना, पाराशरी, सम्पूर्णा, रामदरिया, घोड़, बोरी, भीमा, रामन हरि।

श्री राम यात्रा मार्ग के कुछ स्थल
रामघाट, नगहर, बलिया (उ.प्र.)

यह स्थान लखनेश्वर डीह से आधा कि.मी. दूर पुरानी सरयू जी के किनारे है। लोक मान्यता है कि कभी गंगा सरयू संगम यहीं था तथा संगम से पूर्व तीनों ने यहीं रात्रि विश्राम किया था। आज भी यहां से सरयू जी पार करते हैं।

लखनेश्वर डीह, बैजल (सरयू जी), बलिया (उ.प्र.)
लखनेश्वर, लक्ष्मणेश्वर का अपभ्रंश है तथा डीह का अर्थ है पुराना मिट्टी का टीला। लोक कथा के अनुसार सरयू के किनारे विश्वामित्र मुनि के साथ जाते समय लक्ष्मण जी ने यहां शिवलिंग की स्थापना की थी। कुछ सौ वर्ष पूर्व निकट ही एक तालाब से एक शिवलिंग प्राप्त हुआ है। नगहर के दूबे राजा वह शिवलिंग ले जाना चाहते थे किन्तु शिवलिंग निकालने में असफल रहे, तब उन्होंने वहीं मंदिर की स्थापना कर दी। वह मंदिर आज भी यहां श्रद्धा का केंद्र है।

सिदागर घाट, (सरयू जी),  
गाजीपुर (उ.प्र.)

सिदागर शब्द सिद्ध गण का अपभ्रंश माना जाता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार सरयू नदी के किनारे ऋषि मंडल रहते थे। संभवत: यह वही स्थान है, यहां प्राचीन रामघाट है। लोक मान्यता  के अनुसार विश्वामित्र मुनि इसी मार्ग से गए थे।

रामघाट मऊ (सरयू जी),
मऊ (उ.प्र.)

मऊ के निकट पुरानी सरयू के किनारे रामघाट है। माना जाता है कि यहां श्री राम ने सरयू में स्नान किया था तथा वे विश्वामित्र मुनि के साथ इसी मार्ग से सिद्धाश्रम गए थे। आज भी दूर-दूर से जनता यहां स्नान करने व मनौती मांगने आती है।

 

 

Niyati Bhandari

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