पूजा-पाठ में क्या महत्व रखती है ये एक चीज़ ?

Thursday, May 23, 2019 - 05:47 PM (IST)

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पूजा-पाठ में प्रयोग होने वाली साम्रगी के बारे में तो सब जानते ही हैं। लेकिन क्या किसी के पता है हर चीज़ का प्रयोग करने के लिए इनकी अलग-अलग वजह भी हैं। तो आज हम आपको पूजा में प्रयोग किए जाने वाले सिंदूर के बारे में बताएंगे। जहां कुमकुम का महत्व धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी बताया जाता है। भगवान को लगाए जाने वाले सिंदूर का प्रयोग हम लोग अपने माथे पर तिलक लगाने के लिए भी करते हैं। हम भगवान को जो भी चीज़ें अर्पित करते हैं उनके पीछे हमारा भाव यही होता है कि उसका फल हमें सही मिले। तो चलिए जानते हैं कुमकुम से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में-

सिंदूर का प्रयोग पूजा-पाठ के साथ-साथ मांगलिक कर्मों में भी इसका उपयोग होता है। घर हो या मंदिर हर जगह पूजा की थाली में कुमकुम रखा जाता है। कुमकुम का लाल रंग प्रेम, उत्साह, उमंग, साहस और शौर्य का प्रतीक है। इससे प्रसन्नता का संचार होता है। ग्रंथों में भी इसे दिव्यता का प्रतीक माना गया है। नवदुर्गा पूजा विधान में लिखा है कि-

कुंकुम कान्तिदम दिव्यम् कामिनीकामसंभवम्।
इसका अर्थ यह है कि कुमकुम अनंत कांति प्रदान करने वाला पवित्र पदार्थ है, जो स्त्रियों की संपूर्ण कामनाओं को पूरा करने वाला है।

पूजा में तो कुमकुम का प्रयोग किया जाता ही है, इसके साथ पुरूष और महिलाएं अपने माथे पर तिलक करने के लिए भी इसका उपयोग करते हैं। कहते हैं कि पुराने समय में जब योद्धा युद्ध के लिए जाते थे तो अपने महल से निकलने से पहले अपने माथे पर तिलक करते थे। क्योंकि ऐसा माना जाता था कि तिलक लगाने से उनकी विजय निश्चित होती थी। कुमकुम का तिलक सम्मान का प्रतीक है। ये तिलक हमें जिम्मेदारी का अहसास करता है। 

जहां कुमकुम का महत्व धार्मिक तौर पर होता है, वहीं दूसरी ओर इसका वैज्ञानिक महत्व भी बताया गया है। जैसे कि आयुर्वेद में कुमकुम को औषधि माना गया है। इसे हल्दी व नींबू के रस में हल्दी को मिलाकर बनाया जाता है। क्योंकि हल्दी खून को साफ करती है और शरीर व त्वचा का सौंदर्य बढ़ाती है। माथे के कुमकुम लगाने का एक कारण ये भी है कि इससे मन की एकाग्रता बढ़ती है और मन व्यर्थ की बातों में नहीं भटकता है।

Lata

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