करुणा और चाहत में क्या है अंतर ?

Friday, Aug 09, 2019 - 04:47 PM (IST)

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चाहत एक ऐसा शब्द है, जो इस दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में होता है। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसकी अपने जीवन में कोई चाहत नहीं रही होगी। ये चाहत किसी की प्रकार की हो सकती है, किसी को पाने की, लाइफ में अच्छा मुकाम हासिल करने की, रोज़ नए लोगों से मिलने की, नई-नई जगहों पर घूमने-फिरने की। समय-समय पर ये चाहतें बदलती भी रहती है। ये तो हुई चाहत की बात। अब बात करते हैं करुणा की। कुछ मान्यताओं के अनुसार करुणा मन में उत्पन्न वह भाव होता जो दूसरों का कष्ट देखकर उसे दूर करने के लिए उत्पन्न होता है। तो वहीं कभी-कभी करुणा को नकारात्मक शब्द मान लिया जाता है, यह इस बात को दर्शाता है कि किसी न किसी चीज़ की कमी है। तो वहीं करुणा शब्द इस बात का भी सूचक है कि वह किसी और पर निर्भर है या दूसरों से कमज़ोर हैं, जबकि यह करुणा एक प्रज्वलित चाहत है। ये उन चाहतों से अलग होती है जो हम अकसर महसूस करते रहते हैं।

जैसे कि हमने ऊपर भी आपको बताया चाहतों का बदलना और रोज़ाना नई चाहत का पैदा होना कोई  बड़ी बात नहीं है ये बहुत ही सामान्य होती हैं।

मगर करुणा हमेशा के लिए हमारे भीतर रहती है। हालांकि कई बार हमारी चाहतें करुणा का हिस्सा होती हैं। उदाहरण के लिए अगर आपकी चाहत यह है कि आप ज्यादा से ज्यादा लोगों को दोस्त बनाएं या लोगों के साथ ज्यादा प्रेम संबंध स्थापित करें। तो असल में इसका संबंध आपके भीतर मौज़ूद प्रेम की तलाश से है।

मगर सच यही है कि हम अपने भीतर मौज़ूद इस चाहत को समझ नहीं पाते। इसी के चलते आज कल कुछ लोग सोशल मीडिया पर नए-नए दोस्त बनाते रहते हैं या प्रेम संबंधों की खोज में लगे रहते हैं। उनकी खुद को साबित की यही कोशिश के चलते उनका खालीपन और बढ़ता रहता है और प्रेम गहरा होता जाता है।

कहने का मतलब है कि हमारे आसपास तो लोगों की भीड़ होती है मगर फिर भीतरी तौर पर हम हमेशा अकेले ही रहते हैं। हम अपनी चाहतों को पूरा करने में तो लग जाते हैं लेकिन इस बीच हम अपनी असल चाहत को ही भूल ही जाते हैं। कहा जाता है इसी वजह से हमारी वो चाहत कभी पूरी हो ही नहीं पाती।

हम में से अधिकतर लोग अपनी प्रबल इच्छाओं को ये सोचकर नजरंदाज कर देते हैं या दबा देते हैं कि ऐसा करने से वे मज़बूत होंगे। परंतु असल में उनका ऐसा करना उनको जीवन के मधुर संगीत से दूर ले जाता है। इतना ही नहीं बल्कि इससे वो अपने और अपने आसपास के हालातों को लेकर असंवेदनशील और उदासीन हो जाते हैं।

इंसान की यही गहरी चाहत उसके जीवन का सार होती है। उसकी सामान्य चाहत बाहरी हालातों के अनुसार बदलती रहती है लेकिन उसके अंदर की करुणा यानि गहरी चाहत हमेशा हमारे भीतर रहती है।

जब हम खुद को अंदर से समझने लगते हैं तब हम इस गहरी चाहत के और नज़दीक हो जाते हैं। हम जानते हैं इस पर आपका एक सवाल होगा कि आख़िर इंसान अपने अंदर की इस गहरी चाहत को जानने के लिए भीतर झांके कैसे?

इसके लिए आपको कुछ ज्यादा करने की ज़रूरत नहीं है, बस शांत वातावरण में अकेले बैठकर रोज़ ध्यान करें, इससे आप अपने भीतरी चाहत को समझ सकते हैं।

 

Jyoti

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