शनि देव और भद्रा का क्या है रिश्ता, क्यों कहलाती है अशुभ?

Monday, Aug 08, 2022 - 05:08 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ 
हिंदू धर्म से संबंध रखने वाले लगभग लोग इस बात से रूबरू हैं कि इसमें हर प्रकार के शुभ, मांगलिक व धार्मिक कार्य को करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी होता है उसे संपन्न करना का सही समय। जी हां, आप सही समझ रहे हैं हमारा मतलब शुभ मुहूर्त से है। कहा जाता है कि हर कार्य को करने से पहले उस काम को करने का सबसे शुभ मुहूर्त जान लेना चाहिए, क्योंकि अगर किसी शुभ काम को भद्रा के साये में किया जाए तो उसका फायदा नहीं नुकसान होने लगता है। कहा जाता है कहा जाता है भद्रा योग में किसी भी मंगल उत्सव की शुरुआत व समाप्ति शुभ नहीं होती। यही कारण है इसकी अशुभता के बारे में विचार करके कोई भीआस्थावान व्यक्ति इस समय अवधि में कोई शुभ कार्य नहीं करता। ज्योतिष शास्त्रियों की मानें तो भद्रा जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होती तभी वह पृथ्वी पर असर करती है अन्यथा नहीं। धार्मिक मत के अनुसार भद्रा जिस लोक में रहती है, वहीं प्रभावी रहती है। 11 अगस्त दिन गुरुवार को 2022 वर्ष का राखी का पर्व मनाया जाएगा। जिसके दौरान भद्रा के साया का खास ध्यान रखा जाता है। बता दें ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस वर्ष भी राखी पर भद्रा का साया है, लेकिन चूंकि इस बार रक्षा बंधन का पर्व गुरुवार को पड़ रहा है, अंतः इसे शुभ माना जाता है। कहा जाता है गुरुवार के दिन भद्रा शुभ एव पुण्यदाई होती है तथा इस इस प्रकार रक्षाबंधन के दिन यानि 11 अगस्त को भद्रा भद्रा पाताल लोक में रहेगी, जो कि शुभ फलदायी होगी। तो आइए जानते हैं इससे जुड़ी अन्य जानकारी- 

कहा जाता है ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मुहूर्त गणना के लिए पंचांग का होना आवश्यक है। तिथि, वार, नक्षत्र, योग व करण इन 5 अंगों को मिलाकर पंचांग बनता है। करण पंचांग का पांचवां अंग होता है। बता दें तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं। तिथि के पहले आधे भाग को प्रथम करण तथा दूसरे आधे भाग को द्वितीय करण कहा जाता है। इस प्रकार 1 तिथि में दो करण होते हैं। इसके अलावा ज्योतिष शास्त्र में ये भी बताया गया है कि करण कुल 11 प्रकार के होते हैं इनमें से 7 चर व 4 स्थिर होते हैं।  


चर- 1. बव 2. बालव 3. कौलव 4. तैतिल 5. गर 6. वणिज 7. विष्टि (भद्रा)।

स्थिर करण- 8. शकुनि 9. चतुष्पद 10. नाग 11. किंस्तुघ्न।
 

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ज्योतिष विशेषज्ञों के अनुसार इनमें से विष्टि करण को भद्रा कहा जाता है। तमाम करणों में से सबसे अधिक महत्व भद्रा का ही होता है। शुक्ल पक्ष अष्टमी (8) पूर्णिमा (15) तिथि के पूर्वाद्ध में, चतुर्थी (4) व एकदशी (11) तिथि के उत्तरार्द्ध में, एवं कृष्ण पक्ष की तृतीया (3) व दशमी (10) तिथि के उत्तरार्द्ध में, सप्तमी (7) व चतुर्दशी (14) तिथि के पूर्वाद्ध में भद्रा रहती है अर्थात् विष्टि करण रहता है।

पूर्वार्द्ध की भद्रा दिन में व उत्तरार्द्ध की भद्रा रात्रि में त्याज्य है। यहां विशेष बात यह है कि भद्रा का मुख भाग ही त्याज्य है जबकि पुच्छ भाग सब कार्यों में शुभ फलप्रद है। भद्रा के मुख भाग की 5 घटियां अर्थात 2 घंटे त्याज्य है। इसमें किसी भी प्रकार का शुभ कार्य करना वर्जित है। पुच्छ भाग की 3 घटियां अर्थात् 1 घंटा 12 मिनट शुभ हैं। सोमवार व शुक्रवार की भद्रा को कल्याणी, शनिवार की भद्रा को वृश्चिकी, गुरुवार की भद्रा को पुण्यवती तथा रविवार, बुधवार, मंगलवार की भद्रा को भद्रिका कहते हैं। इसमें शनिवार की भद्रा विशेष अशुभ होती है।


यहां जानिए भद्रा कहलाती है अशुभ- 
धर्म ग्रंथों के अनुसार भद्रा को सूर्य देव की पुत्री व शनि देव की बहन बताया जाता है। कहा जाता है स्वभाव में भद्रा भी अपने भाई शनि देव जैसी सख्त व क्रोधी थी। धार्मिक मत के अनुसार ब्रह्मा जी ने इनके स्वभाव केो नियंत्रित करने के लिए ही इन्हें कालगणना या पंचांग के प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया था। 
 

Jyoti

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