संसार से जाने से पहले करेंगे ये काम तो मृत्यु भी कहेगी Welcome जनाब
punjabkesari.in Wednesday, Jun 07, 2023 - 08:57 AM (IST)

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Religious Katha: आध्यत्मिक, भौतिकता व चेतनता के संतुलन पर ही जीवन की सार्थकता टिकी होती है। भविष्य से अनभिज्ञ जीव इस जीवन यात्रा पर आखिरी सांस तक चलायमान रहता है। इस यात्रा में उसे अनेक रिश्तों, संबंधों, सफलता, असफलता, आशा, निराशा, स्वार्थ तथा नि:स्वार्थ के खट्टे-मीठे अनुभव होते हैं। ऐसे में यह कहना अनुचित नहीं होगा कि जीवन जीना एक कला है। जो कलात्मक ढंग से सकारात्मकता से इसे जीते हैं, वे सुख व आनंद का अनुभव करते हैं।
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इसके विपरीत जो जीवन जीने की कला नहीं जानते और नकारात्मकतापूर्ण जीवन जीते हैं, वे सदा कष्ट और दुख भोगते रहते हैं। अंतत: जीवन का अंतिम हश्र यह होता है कि उनका लोक और परलोक दोनों अर्थहीन रह जाते हैं। यह सत्य झूठलाया नहीं जा सकता कि मनुष्य के अतिरिक्त अन्य सभी योनियां अपनी जन्म प्रवृत्ति और स्वभाव के अनुरूप जीवन जीती हैं, परन्तु मनुष्य को जीवन में सभी कुछ स्वयं सीखना तथा विवेक, बुद्धि और विचारों को विकसित करके श्रम करना व ज्ञान अर्जित करना होता है। उचित प्रयासरत लोगों का जीवन दूसरों के लिए शक्ति, प्रेरणा का स्रोत बनता है, इसीलिए जीवन को सदैव रचनात्मक और सरस बनाने का प्रयास करना चाहिए।
जीवन अमूल्य है। यह जीव द्वारा अपना कल्याण करने और जीवन में सही दृष्टिकोण रखते हुए अपना लोक-परलोक अपने अनुरूप निर्धारित करने का साधन है। एक प्रसंग के माध्यम से इसे समझने का प्रयत्न करते हैं :
एक छोटा-सा राज्य का नियम था कि वे प्रति वर्ष अपना राजा बदल देते थे और पुराने को घने वनों में छोड़ देते थे जहां जंगली जानवर उसे मारकर खा जाते। एक दिन उस राज्य में एक साधु स्वभाव का व्यक्ति आया। राज्य के लोगों ने उस व्यक्ति को अपना राजा बनने का आग्रह किया। वह मान गया। उसका राज्याभिषेक किया गया। राजा सिंहासन पर बैठा और महामंत्री से बोला कि मुझसे पहले जितने भी राजा हुए हैं मैं उनसे मिल कर उनसे राज कार्य का अनुभव ग्रहण करना चाहता हूं।
मंत्री ने बताया कि इस राज्य का नियम है कि वर्ष के अंत में राजा को घने जंगलों में छोड़ दिया जाता है, जहां हिंसक जीव उसे मारकर खा लेते हैं। यह सुनकर राजा ने कहा, मुझे वह स्थान दिखाओ जहां तुम उन सभी राजाओं को छोड़ कर आते हो।
राजा मंत्रिमंडल के साथ उस भयानक जंगल में पहुंच गए और वहां बहुत सारे कंकाल देखे जो उन राजाओं के थे जो जंगलों में छोड़े गए थे। राजा इस भयानक दृश्य को देख करके वापस महल में लौट आए और सारी रात विचार करते रहे। प्रात:काल महामंत्री को बुलाया और कहा कि महल से उस जंगल तक सुंदर सड़क बनवाओ, नहर खुदवाओ और बाग उपवन तथा चारों ओर फसलें उगवाओ। राज्य में विद्यालय और चिकित्सालयों की व्यवस्था हो। न्याय प्रणाली सुदृढ़ हो।
राजा इस सत्य से अवगत थे कि परहित के लिए किए गए परोपकार कर्मों व सुपात्र को दिए गए दान तथा असहायों की मदद व सेवा द्वारा ही लोक-परलोक को सहज व सुरक्षित किया जा सकता है इसीलिए राजा ने सर्वप्रथम भयानक वनों का स्वरूप बदल कर सुखद कर दिया और वनों के प्रति भय का नाश कर दिया। राजा की आज्ञा का पालन हुआ और सुनिश्चित समय पर ही ये सब कार्य पूर्ण कर दिए गए।
वर्ष भर में ही भयानक वनों का दृश्य स्वर्ग के समान सुख देने वाला हो गया। राज्य में सभी नागरिक धर्मपरायणता से रहते थे। राजा की सुंदर नीतियों से राज्य प्रगति पथ पर अग्रसर था। लोग खुशहाल थे और राज्य की ख्याति चारों ओर बढ़ रही थी। वर्ष के अंत में राजा ने एक बड़ा यज्ञ रचाया जिसमें सारे राज्य वासियों को आमंत्रित किया गया।
यज्ञ संपन्न होने पर राजा ने प्रजा से कहा कि आप सभी ने मुझे एक वर्ष के लिए राजा बनाया था। मैंने अपनी बुद्धि और संस्कारों से इस एक वर्ष को अवसर जानकर जितना अच्छा कर सकता था वह किया। अब अपनी प्रथा के अनुसार आप राज्य के लिए नए राजा का चयन करें और मुझे जंगलों में छोड़कर अपनी प्रथा को पूर्ण करें।
यह सुनकर महामंत्री ने राज्यवासियों की मंशा जानकर राजा से कहा, ‘‘हे महाराज, आज से हमने अपनी प्रथा बदल दी है क्योंकि अब हमें नव ऊर्जावान, कर्मठ सोच-विचार वाला तथा सही मार्गदर्शन करने वाला राजा मिल गया है। वनों में तो हम उन मूर्खों को छोड़कर आने पर विवश होते थे जो एक वर्ष की सत्ता के मद में भविष्य का विचार किए बिना अनंत भोगों में लिप्त रहकर अमूल्य समय व जीवन का नाश कर लेते थे परन्तु आप हम राज्यवासियों के लिए सुंदर प्रेरणा बने हैं। अब राज्य सुरक्षित हाथों में है। अत: आप ही हमारे राजा रहेंगे।’’
इस प्रसंग से शिक्षा मिलती है कि यह संसार भी एक राज्य के समान ही है। जीव राजा की भांति होता है और शरीर महल है। सुख-सुविधाएं सत्ता हैं। जीवन उस एक वर्ष की भांति है और वर्ष उपरांत भयानक वन मृत्यु समान है। नया राजा अर्थात जीव जिसे महल रूपी राज्य सत्ता भोगने को मिलता है परन्तु सत्ता के मद में डूबकर केवल भोग-विलासों को ही जीवन समझ कर जीने वाले ऐसे जीव उन्हीं राजाओं की भांति अंतत: दुख और कष्टों को भोगते हुए मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।
जीवन अमूल्य है जीवन को सार्थक करने का एक अवसर जान कर इसे व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। सदैव स्मरण रखने योग्य बात यह है कि जीवन की सार्थकता आत्मबल, अच्छे संग, अच्छे कर्मों, योजनाओं, उद्देश्यों, सहयोग, क्षमता, विवेक, ज्ञान, साधनों और असफलता के बाद भी प्रयासरत रहने जैसे गुणों पर आधारित होती है। ऐसे गुणों को जीवन में अवश्य धारण करना चाहिए।
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