सत्य का स्वरूप जानने की इच्छी है तो आगे बढ़ें

Tuesday, May 02, 2017 - 12:01 PM (IST)

सम्राट बिम्बिसार को सत्य का स्वरूप जानने की इच्छी हुई। उन्होंने भगवान महावीर से कहा, ‘‘भगवन, मनुष्य को दुख से मुक्ति दिलाने वाले सत्य को मैं जानता हूं। सत्य को मैं प्राप्त करना चाहता हूं। उसे प्राप्त करने के लिए मेरे पास जो कुछ भी है, वे सब देने के लिए मैं तत्पर हूं। कृपया आप मुझे उचित मार्ग दिखाएं।’’


सम्राट की बात सुनकर भगवान महावीर को लगा कि दुनिया को जीतने वाला सम्राट सत्य को भी उसी भांति जीतना चाहता है। अहंकार के वशीभूत वह सत्य को भी क्रय की वस्तु मान रहा है और उसे खरीदना चाहता है। उन्होंने बिम्बिसार से कहा, ‘‘सम्राट, सत्य को प्राप्त करने के लिए पहले आपको सामयिक का फल प्राप्त करना होगा। अपने राज्य के पुण्य श्रावक से आप सामयिक का फल प्राप्त कीजिए। उसके सहारे सत्य और मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर आप आगे बढ़ सकते हैं।’’


बिम्बिसार सामयिक फल का अर्थ नहीं जानते थे। वे पुण्य श्रावक के पास गए और उन्होंने उनसे कहा, ‘‘श्रावक श्रेष्ठ, मैं याचक बनकर आपके पास आया हूं। मैं सत्य को जानता हूं। मुझे सामयिक फल दीजिए। उसके लिए आप जो मूल्य मांगोगे मैं दूंगा।’’


श्रावक ने कहा, ‘‘महाराज! सामयिक फल कोई किसी को नहीं दे सकता। उसे तो खुद ही प्राप्त करना पड़ता है। अपने मन से राग-द्वेष हटाने का ही दूसरा नाम है सामयिक फल। उसे तो आपको खुद ही प्राप्त करना होगा। उसे मैं दान भी नहीं कर सकता। सत्य को न खरीदा जा सकता है, न उसे दान या भिक्षा के द्वारा पाया जा सकता है और न ही उस पर आक्रमण करके विजय प्राप्त की जा सकती है।’’

श्रावक ने उन्हें बताया, ‘‘राजन! शून्य के द्वार से ही सत्य का आगमन होता है और अहंकार जब शून्य होगा तभी सत्य का आगमन होगा।’’ सम्राट बिम्बिसार को अपनी गलती का अहसास हो गया।

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