समाज को सुधारने की चाह है, ऐसे दें अपना योगदान

Sunday, Oct 29, 2017 - 11:45 AM (IST)

चीन में एक विचारक की ख्याति सुनकर वहां के राजा ने उसे अपने राज्य का न्यायाधीश बना दिया। न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठकर विचारक ने सदा सही फैसले दिए। उस राज्य की राजधानी में एक सेठ जी रहते थे। उनके पास अपार धन-सम्पत्ति थी जो गरीबों का शोषण कर कमाई गई थी। अपनी अकूत संपदा की रक्षार्थ सेठ जी ने एक चाक-चौबंद सेना भी रखी थी मगर एक दिन उनके घर में चोरी हो गई। चारों ओर हड़कम्प मच गया। अंतत: चोर पकड़ लिया गया।


चोर को जब न्यायाधीश के समक्ष पेश किया गया तो उसने अपनी चोरी कबूल कर ली। यही नहीं, उसने पहले की गई चोरियां भी स्वीकार कर लीं। अंत में न्यायाधीश ने उसे एक साल की सजा सुनाई। चोर को सजा सुनाने के बाद न्यायाधीश ने सेठ जी को बुलाया। न्यायाधीश जानते थे कि सेठ जी की सम्पत्ति उनकी आय के ज्ञात स्रोत से अधिक थी और वह निर्धन व मजबूर लोगों का शोषण कर कमाई गई थी मगर वह ये सब सेठ जी के मुंह से सुनना चाहते थे। वह बार-बार आय का स्रोत पूछ रहे थे 
लेकिन सेठ जी का हर बार एक ही जवाब रहता, ‘‘यह आय मेरे उद्योग-व्यापार से ही प्राप्त हुई है।’’


सेठ जी ने शोषण के आरोप अंत तक स्वीकार नहीं किया। तब न्यायाधीश ने उन्हें 2 साल कैद की सजा सुनाई। सेठ जी बोले, ‘‘यह कैसा न्याय है कि चोर को एक वर्ष और मुझे 2 साल की सजा दी गई?’’ 


न्यायाधीश ने जवाब दिया, ‘‘चोर ने तो चोरी कबूल कर ली इसलिए उसके हृदय परिवर्तन की संभावना है मगर आपने तो अपनी गंभीर भूल से ही इंकार कर दिया है। आपने तो अपने सुधार के सभी मार्ग बंद कर लिए हैं। आप नहीं सुधरेंगे तो समाज की प्रगति भी रुक जाएगी।’’ 


अब सेठ जी समझ चुके थे कि वास्तव में समाज की प्रगति में हर व्यक्ति का अपना अहम योगदान होता है।

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