अपने जीवन में बदलाव चाहते हैं, इस सूक्ति को बनाएं आदर्श

Friday, Jan 19, 2018 - 12:34 PM (IST)

दो लोग किसी विवाद के कारण एक-दूसरे के खिलाफ आग उगल रहे थे। उनके आरोप-प्रत्यारोप की भाषा बहुत कड़वी थी। वैसे भी जब आदमी गुस्से में होता है तो अच्छे की पहचान भूल जाता है और बुरे के परिणाम की उसे चिंता नहीं रह जाती। बाद में पता लगाने पर दोनों चुगलखोरों के शिकार निकले।


अमूमन ऐसा ही होता है कि हम किसी से सुनकर किसी के बारे में तुरंत कोई राय बना लेते हैं और बिना छानबीन के उस पर सच की मुहर भी लगा देते हैं। आगे-पीछे के संभावित परिणामों का ख्याल ही नहीं कर पाते। दरअसल ‘आंखों देखी, कानों सुनी’ उक्ति ‘आंखों सुनी, कानों देखी’ में बदल गई है जो टकराव का माहौल बना रही है। अगर हम अपने विवेक से खुद को देखना और खुद को सुनना सीख जाएं तो हमें कोई बरगला ही नहीं सकता है। खुद पर विश्वास कायम करना दुनिया को जीतने से बड़ा काम है। ‘कौआ कान ले गया’ एक प्रचलित कहावत है, जिसका सीधा मतलब है कि आप किसी के कहने पर कौए को देखने लगे हैं, अपना कान नहीं। इलैक्ट्रॉनिक मीडिया और इंटरनैट ने इसे और भी गति दे दी है। तथ्यपरक वैचारिक बहस की जगह अफवाहपरक शैली का कब्जा हो गया है। जो अपनी बात ऊंची आवाज में रखता है, वह पहलवान मान लिया जाता है।


वैचारिक बहस एक स्वस्थ लोकतांत्रिक और व्यावहारिक मूल्य है। यह न केवल खुद को मांजती है, बल्कि नई दृष्टि भी देती है। लेकिन विचार जब आग्रह और दुराग्रह के जाल में फंस कर एक-दूसरे पर आक्रमण करता है, तब न सिर्फ भाषा की गरिमा हीन हो जाती है, उसका लक्ष्य भी बदल जाता है। प्रतिशोध जाग जाता है। जहां प्रतिशोध है, वहां नफरत और ईर्ष्या है। जहां सहयोग है, वहां प्रेम, कृतज्ञता और सद्भाव है। अगर इसी सूक्ति को हम अपने जीवन का आदर्श वाक्य बना लें तो पहले दिन से ही बदलाव महसूस करने लगेंगे।

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