हिंसा केवल शरीर से नहीं, हमारी वाणी से भी होती है

Saturday, Mar 31, 2018 - 10:02 AM (IST)

व्यक्ति का आचरण एक दर्पण के समान होता है। उसमें हर व्यक्ति अपना प्रतिबिम्ब दिखाता है। जर्मन कवि गेटे की यह उक्ति नेताओं के संदर्भ में सटीक है। यदि नेता की सोच परिपक्व नहीं है, विवेक दृष्टि धूमिल है तो वह अपने पीछे चलने वाले लोगों को गुमराह ही करेगा। प्रजातंत्र में किसी तरह यदि वह पद पा भी जाता है तो आचरण की कसौटी पर कुछ ही दिन में उसकी पात्रता अपात्रता सिद्ध हो जाती है। मनुष्य का आचरण ही यह बताता है कि वह कुलीन या अकुलीन है, वीर है या कायर, पवित्र है या अपवित्र। यदि वह नकारात्मक प्रवृत्ति वाला होता है तो उस देश के नागरिकों का चरित्र खतरे में पड़ जाता है। वह जो भी आदर्श स्थापित करेगा, दूसरे लोग भी वैसा ही व्यवहार करेंगे। जनता द्वारा चुने गए सांसद यदि एक-दूसरे से असंसदीय भाषा में बात करेंगे, संसद की मर्यादा भंग करके हिंसा पर उतर आएंगे तो देश की जनता को कैसा संदेश जाएगा।


दरअसल वाणी मनुष्य के व्यक्तित्व का पुर्जा-पुर्जा खोलकर दिखा देती है। कबीर ने सावधान किया है-


बोलत ही पहचानिए साधु चोर को घाट।
अंतर की करनी सबै निकसे मुख की बाट।


हिंसा केवल शरीर से नहीं होती, वाणी से भी होती है। इस वाचिक हिंसा से नेताओं को बचने की आवश्यकता है। विवेकहीन मनुष्य पर जब सत्ता का मद सवार हो जाता है तो वह मदोंमत हाथी की तरह जो भी सामने पड़ता है उसे रौंदता चला जाता है। प्रखर अहंकार के चलते सार्वजनिक स्थानों पर ऐसे लोगों को अपने कदमों में गिरे देखना चाहता है जो निर्बल हैं, मुकाबला नहीं कर सकते। कभी-कभी तो सुरक्षा कर्मियों को ही अपना गुलाम समझ आदेशों का पालन करवाता है। साधारण जनता की गुहार की सुनवाई नहीं होती और वह उच्छुंखल होकर अगला शिकार खोजने चल देता है।


अंग्रेजी कवि आस्टिन एल्फ्रेड के मुताबिक ऐसे राजनेता पारे के समान होते हैं। उन पर उंगली रखने की कोशिश करो तो उसके नीचे कुछ नहीं मिलता। अधिकारियों के लिए एक आचार संहिता जरूरी है। निर्वाचन आयोग किसी भी प्रत्याशी के नामांकन से पहले उसकी मानसिकता, दृढ़ता, सार्वजनिक कल्याण की भावना आदि विशेषताओं की दृष्टि से एक मनोवैज्ञानिक परीक्षण अनिवार्य करें। राजनेता बनने का हकदार वही हैं जिसके व्यक्तित्व में विवेक, सहनशीलता, निष्ठा, समदर्शिता और सम्यक वाणी हो।


रामराज्य की स्थापना ऐसे नेता ही कर सकते हैं जो निष्कलंक हों। तुलदीदास ने कहा, ‘‘सब ते कठिन राजपद भाई।’’ क्योंकि अधिकार पाते ही सहस बाहु, सुरनाथ, त्रिशंकू। केहिन राजमद दीन्ह कलंकू। ये सब शासक होने के मद से बच नहीं पाए और कलंकित हुए इसलिए नसीहत है कि नीति व तजिय राज पद पाए। गांधी जी का सपना ऐसे रामराज्य का था जहां पूर्ण प्रजातंत्र हो। जहां अधिकार वर्ग, वर्ण, धर्म, लिंग पर आश्रित समस्याएं तिरोहित हो जाती हैं।
 

Jyoti

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