अंधविश्वासों की बेड़ियों में जकड़ा है ये गांव, उनके जीवन का अमह अंग हैं टोने-टोटके

Thursday, Feb 02, 2017 - 12:51 PM (IST)

मध्य प्रदेश की आदिवासी जनजातियों में अंधविश्वास और टोने-टोटके का विशेष महत्व है। चिकित्सा हो या कोई शुभ कार्य टोने-टोटके बिना सम्पन्न ही नहीं होता। इन टोटकों का प्रयोग ये जन्म से मृत्यु तक करते हैं। एक प्रसिद्ध टोटका है- रोगटा। इसका प्रयोग वे पशुओं को होने वाली बीमारी की रोकथाम के लिए करते हैं। टोना-टोटका के कारण भील समुदाय में ‘बड़बे’(ओझा) की बड़ी इज्जत होती है। वह प्रेतात्माएं भगाने के लिए झाड़ फूंक करता है। भूत-प्रेत से मुक्ति दिलाने के लिए ये डाकिनी के टोटके का प्रयोग करते हैं। किसी गांव में कोई प्राकृतिक आपदा आने या रोग फैलने पर भील आदिवासी थोड़ी ज्वार घर की औरतों पर से उतारकर बड़बे के पास ले जाते हैं। वह ज्वार को देख कर मंत्र पड़ता है और नक्शा बना देता है। उसके निर्देशानुसार भील लोग डाकिन का पता लगाते हैं। जिस महिला पर उन्हें शक होता है उसे डाकिन मानकर गांव से निकाल देते हैं। डोबन माता की चलावनी टोटके का प्रयोग भी भील अधिक करते हैं। यह तब किया जाता है जब फसल को खतरा होता है। मान्यता है कि इससे गांव में प्राकृतिक आपदा नहीं आती। 


यह टोटका प्रक्रिया आरंभ करने से पूर्व गांव का प्रधान चंदा जमा करता है। टोटका करने का दिन रविवार या मंगलवार तय किया जाता है लेकिन चलायनी की कार्रवाई एक दिन पूर्व शुरू हो जाती है। तंत्र-मंत्र से पूर्व खिलौना बैलगाड़ी तैयार करके उसमें भूसे के पुतले रखे जाते हैं। चलायनी के दिन भील घर की सफाई नहीं करते। यहां महिलाओं का प्रवेश मना होता है। गांव का प्रधान बड़बे द्वारा कराई पूजन सामग्री लेकर बैठ जाता है। बड़बा तंत्र-मंत्र प्रक्रिया शुरू करता है। यह साधना दूसरे दिन सम्पन्न होती है। फसलों, कम फल देने वाले पेड़ के लिए भील टोटका करते हैं। जिस पेड़ पर कम फल लगते हैं उसके लिए भील रविवार-मंगलवार या वीरवार को पेड़ के कच्चे फल अगरबत्ती, सिंदूर के साथ राख की गोली बनाकर रास्ते में रख देते हैं। इससे पेड़ पर अधिक फल लगने लगते हैं।


प्रसव प्रक्रिया के दौरान भी भील जनजाति टोने-टोटके का प्रयोग करते हैं। यह टोटका होने वाले बच्चे एवं मां को प्रेत आत्मा से बचाने के लिए किया जाता है। प्रसूति के समय में ही बाहर आग जला दी जाती है। यह आग 5 दिन तक जलती रहती है। पहली दीपावली पर नवजात शिशु को मक्का के ढेर पर लिटाया जाता है। पूजा-अर्चना के बाद उसे भूमि पुत्र मान लिया जाता है। अल्पायु भील बालक की भुजा और कलाई पर गर्म तीरों से दागा जाता है। तीरों से दागने के पीछे मान्यता है कि बालक दौडऩे में बहादुर होता है।    

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