आप में भी हैं ये गुण तो आप हैं Gentleman No. 1

Tuesday, Sep 08, 2020 - 04:50 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
जिस तरह आचार्य चाणक्य की नीतियां आज के समय में भी मानव जीवन के लिए उपयोगी साबित होती हैं, ठीक वैसे ही महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक महात्मा विदुर ने भी महाभारत काल में अपने ज्ञान के माध्यम से धृतराष्ट्र को जीवन के ऐसे सूत्रों से अवगत करवाया था, जिसके बारे में कहा जाता है कि यदि आज के समय मेंभी कोई व्यक्ति इनकी इन बातों पर अमल करता है तो उसका जीवन तो बेहतर होता ही है साथ साथ ही व्यक्ति को हर तरह की परिस्थिति से बाहर निकलने की हिम्मत व समझ आती है। आज हम आपको बताने वाले हैं जिसमें उन बातों के बारे में बताया है जो पुरुषों की शोभा में चार चांद लगाती हैं। कहा जाता है जिस व्यक्ति व पुरुष में ये गुण होते हैं, उसे समाज में हर किसी से सम्मान प्राप्त होता है। तो चलिए जानते हैं इनसे कौन से हैं वो गुण- 

विदुर नीति श्लोक-
अष्टौ गुणाः पुरुषं दीपयन्ति प्रज्ञा च कौल्यं च दसं श्रुतं च। 
पराक्रमश्रावबहुभाषिता दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च।। 


विदुर बताते हैं किसी भी पुरुष का सबसे पहला गुण होता है उसकी बुद्धि। महात्मा बताते हैं प्रत्येक पुरुष में बुद्धि होनी चाहिए, जिसमें कोशल बुद्धि होती है, वो हर काम को ठीक से करने के योग्य होता है। 

इसके बाद आती है कुलीनता। महात्मा विदुर बताते हैं किसी भी पुरुष का दूसरा गुण कुलीनता होता है, प्रत्येक व्यक्ति में इस गुण का होना अति आवश्यक होता है। जिसमें कुलीनता होती है ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में आगे बढ़ पाने में सक्षम होती है। 

फिर बारी आती है दम की, विदुर जी कहते हैं कि हर किसी पुरुष में दम होने ही चाहिए। जिसमें दम नहीं होता, वे कभी अपने आप को साबित नहीं कर पाता।  


चौथे नंबर पर आता है ज्ञान। महात्मा विदुर बताते हैं जिस व्यक्ति के पास ज्ञान होता है। वह हमेशा अपने कुल का नाम रोशन करता है। ऐसा लोगों को दुनिया मका हर कोई व्यक्ति सम्मान भरी नज़रों से देखता है। 

पांचवा गुण है पराक्रम है। विदुर जी कहते हैं कि पराक्रम के बिना व्यक्ति कभी अपने जीवन में वो मुकाम हासिल नहीं कर पाता, जो करना चाहते है। क्योंकि जिस व्यक्ति में पराक्रम की कमी होती है वो कभी अपने हाथ में कोई बड़ा काम नहीं लेता। 

पुरुष का सातवां गुण है अपनी यथाशक्ति से दान देना। विदुर बताते हैं जो पुरुष अपनी ईमानदारी की कमाई का कुछ अंश दान देता है, उसे ही एक गुणवान पुरुष माना जाता है। 

आठवें और अंतिम गुण की बात करते हुए विदुर जी कहते हैं कि अगर किसी पुरुष को गुणवान पुरुष की उपाधि चाहिए हो तो इसके लिए व्यक्ति का कृतज्ञ होना बहुत ज़रूरी होता है।

Jyoti

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