प्रमुख स्वामी जी महाराज की स्मृति में हो रहा है मंदिर का निर्माण

Wednesday, Aug 12, 2020 - 05:26 PM (IST)

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31 वर्ष पूर्व, जब श्री राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए श्री राम शिला पूजा का राष्ट्रीय आंदोलन शुरू किया गया तब 16 अगस्त को, रक्षाबंधन के दिन गुजरात में पहली रामशिला पूजा हिन्दू संस्कृति के प्रवर्तक प्रमुख स्वामी महाराज द्वारा की गई थी। स्वामी जी जीवन भर मंदिर निर्माण के लिए प्रार्थना करते रहे, लाखों भक्तों को इससे जुडऩे के लिए प्रेरित किया और विश्वास व्यक्त किया कि श्री राम जन्मभूमि में श्री राम मंदिर का निर्माण किया जाएगा।     
 
हिन्दू संस्कार, हिन्दू विचारधारा, हिन्दू संस्कृति के प्रवर्तन में जिन संतों का विशेष योगदान रहा उनमें प्रमुख स्वामी महाराज विशेष रूप से अग्रसर थे। उनके दिव्य व्यक्तित्व व जीवन कार्य से समग्र विश्व लाभान्वित हुआ। अमेरिका में तृतीय गगनचुम्बी भव्य पंचशिखरीय मंदिर का निर्माण करके स्वामी श्री ने भारतीय संस्कृति और अक्षर पुरुषोत्तम उपासना का दुंदुभीनाद कर दिया।

कैलिफोर्निया की सिलीकोन वैली के उपनगर मिलपिटास में स्वामीनारायण मंदिर में मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा करते हुए स्वामी श्री ने कहा था कि कुछ लोग सवाल करते हैं कि मंदिरों की क्या आवश्यकता है ? समाज को तो अस्पताल, महाविद्यालय, पाठशालाएं चाहिएं क्योंकि इनसे लोग शिक्षित होते हैं। लेकिन मंदिर भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं, इनमें संतों के सत्संग से ज्ञान प्राप्त होता है, दुख दूर होते हैं। प्रार्थना करने से शांति प्राप्त होती है। पारिवारिक एवं सामाजिक परेशानियों का निराकरण होता है। आत्मा का ज्ञान प्राप्त होता है, शंकाएं दूर होती हैं। आत्मा का ज्ञान प्राप्त होने से चिन्तन शांति प्राप्त होती है। शहर में सिनेमाघर, कैसीनो और शराब की दुकानों से क्या फायदा होता है? मंदिर तो ये सारी बुराइयां दूर करते हैं। भारतीय संस्कृति में सदियों से मंदिर परम्परा चली आ रही है। इनके दर्शन मात्र से शांति की अनुभूति होती स्वामी श्री का कहना था कि विज्ञान का विकास होने पर भी मनुष्य सुखी नहीं है। उसे शान्ति नहीं मिलती क्योंकि भौतिकवाद बढ़ रहा है। भौतिक सुख के लिए आपस में कलह और अशांति होती है। हमारे आंतरिक दोष, एक-दूसरे के प्रति अहंमत्व और रागद्वेष के कारण समाज में बुरे कार्य भी होते हैं। दुनिया का बाहृा विकास हुआ, किंतु आंतरिक विकास के लिए संतों का अनुसरण और सभी के लिए सभी के लिए कल्याण की भावना रखना ही हमारा धर्म है। हमारा जीवन निर्व्यसनी एवं सदाचारी होना चाहिए।

भगवान स्वामीनारायण के पांचवें आध्यात्मिक उत्तराधिकारी प्रमुख स्वामी जी महाराज का जन्म 1921 में चाणसद गांव में हुआ। इन्होंने मात्र 8 वर्ष विद्याभ्यास किया और 7 नवंबर 1939 को गृह त्याग करके अहमदाबाद में शास्त्री जी महाराज के वरदहस्त से पार्षदी दीक्षा और 10 जनवरी 1940 को अक्षरदेहरी, गोंडल में भगवती दीक्षा प्राप्त की। उन्हें 23 जनवरी 1971 को संस्था का प्रमुख घोषित करते हुए ‘‘प्रमुख स्वामी’’ जी महाराज का नाम दिया गया। 

दूसरों की भलाई में अपना भला है। इस जीवन सूत्र के साथ लाखों लोगों को आत्मीय स्नेह से अध्यात्म पथ दिखाने वाले प्रमुख स्वामी जी महाराज एक विरल संत विभूति थे। आप वात्सल्यमूर्ति संत थे, आप के सान्निध्य में शंकाओं का निवारण होता था, दुविधाएं दूर होती थीं। आघात अदृश्य होते थे और मन शांति की अनुभूति में सराबोर हो जाता था। 

परोपकारी एवं लोकहित के रक्षक करूणामूर्ति संत ने हजारों गांवों-शहरों को अपनी चरण रज से पावन किया। विश्व भर में 1000 से अधिक मंदिरों और विराट सांस्कृतिक परिसरों का सृजन आपके दिव्य जीवन की मूर्तिमंत गवाही है। आपकी सिद्धियों का रहस्य है: परब्रह्मा का साक्षात्कार। आपकी परम कारूणिक अध्यात्म ब्राह्मी स्थिति के कारण बौद्ध धर्माध्यक्ष दलाई लामा से लेकर आम आदमी तक लाखों लोगों ने आपको हृदय से चाहा। विश्व के सबसे विशाल संगमरमरी हिन्दू मंदिर का नीसडेन लन्दन में निर्माण करने के अलावा गांधी नगर, दिल्ली व अमरीका के न्यूजर्सी क्षेत्र में अक्षरधाम की अनुपम सौगात देने वाले प्रमुख स्वामी जी महाराज ने अपनी कर्मभूमि सारंगपुर में 13 अगस्त 2016 को अन्तिम सांस ली। उनकी अंत्येष्टि के समय विश्व के सभी कोनों से लाखों हरि भक्तों व राजसी नेताओं की उपस्थिति उनके प्रति अटूट श्रद्धा का प्रतीक थी। सारंगपुर में अब प्रमुखस्वामीजी महाराज की स्मृति में मंदिर का निर्माण किया जा रहा है
 

Jyoti

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