वट सावित्री व्रत: क्या है इस बार की पूजा का शुभ मुहूर्त, जानिए यहां

Sunday, May 29, 2022 - 11:35 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को वट सावित्री व्रत का पर्व मनाया जाता है। बता दें कि इस साल ये व्रत 30 मई को रखा जाएगा। इस दिन सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके पति की लंबी उम्र के लिए वट सावित्री का व्रत रखती है और बरगद पेड़ की विधिपूर्वक पूजा करती है। बता दें कि इस साल वट सावित्री व्रत के दिन काफी शुभ संयोग बन रहा है। जी हां दोस्तो, इस साल वट के दिन ही सोमवती अमावस्या साथ ही शनि जयंती पड़ रही है। इस दिन किया गया व्रत व पूजा का फल अक्षय होता है। तो आज हम आपको इस वीडियो में वट सावित्री व्रत के शुभ मुहूर्त, पूजा सामग्री, पूजन विधि व महत्व के बारे में पूरी जानकारी देंगे, तो आगे दी गई जानकारी को ज़रूर पढ़ें-

सबसे पहले आपको वट सावित्री व्रत पूजा के शुभ मुहूर्त के बारे में बताते हैं-

अमावस्या तिथि का आरंभ 29 मई को दोपहर 02 बजकर 54 मिनट पर होगा और इसका समापन 30 मई को शाम 04 बजकर 59 मिनट तक रहेगा। तो वट सावित्री व्रत 30 मई, दिन सोमवार को रखा जाएगा।



अब आपको बताते हैं व्रत के दौरान पूजा की थाली में क्या क्या रखें-
बता दें कि इस दिन पूजा की थाली का विशेष महत्व होता है। तो ऐसे में व्रत पूजन के लिए सावित्री और सत्यवान की मूर्ति, बांस का पंखा, कच्चा सूत या धागा, लाल रंग का कलावा, बरगद का फल, धूप, मिट्टी का दीपक, फल, फूल, बतासा, रोली, सवा मीटर का कपड़ा, इत्र, पान, सुपारी, नारियल, सिंदूर, अक्षत, सुहाग का सामान, घर की बनी पुड़िया, भीगा हुआ चना, मिठाई, घर में बने हुए पकवान, जल से भरा हुआ कलश, मूंगफली के दाने, मखाने और व्रत कथा के लिए पुस्तक आदि थाली में रख लें।



आगे जानते हैं इसकी पूजन विधि-
वट सावित्री का व्रत करने वाली महिलाएं इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करके लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करें और श्रृंगार करके तैयार हो जाए।
फिर पूजन सामग्री को एक स्थान पर एकत्रित कर लें थाली सजा लें।
पूजा का सामान तैयार करने के बाद शुभ मुहूर्त में बरगद के पेड़ के नीचे सावित्री और सत्यवान की प्रतिमा स्थापित करें। फिर बरगद के पेड़ की पूजा  करते समय मिट्टी का शिवलिंग बनाएं। पूजा की सुपारी को गौरी और गणेश मानकर पूजा करें। इसके साथ ही सावित्री और सत्यवान की भी पूजा करें।
उसके बाद बरगद की जड़ में जल अर्पित करें और पुष्प, अक्षत, फूल, भीगा चना, गुड़ व मिठाई चढ़ाएं।
फिर कच्चे सूत का धागा वृक्ष के साथ लपेटते हुए सात बार परिक्रमा करें और अंत में प्रणाम करके परिक्रमा पूर्ण करें।
परिक्रमा करने के बाद बरगद के पेड़ में चावल के आटे का पीठा या छाप लगाने की परंपरा होती है। फिर उस पर सिंदूर का टीका लगाएं।
अब हाथ में चने लेकर वट सावित्री की कथा पढ़ें या सुनें। फिर घर के बने हुए पकवानों का ही भोग  लगाएं।
इसके बाद पूजा संपन्न होने पर ब्राह्मणों को फल और वस्त्रों का दान करें।
 
आइए अब जानते हैं इसका महत्व- 
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वट यानि कि बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को दोबारा जीवित कर लिया था। मान्यता है कि वट वृक्ष की पूजा करने से लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य का फल प्राप्त होता है। तभी महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए ये व्रत रखती है। यही नहीं अगर दांपत्य जीवन में कोई परेशानी चल रही हो तो वह भी इस व्रत के प्रताप से दूर हो जाते हैं। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करते हुए इस दिन वट यानी कि बरगद के पेड़ के नीचे पूजा-अर्चना करती हैं। इस दिन सावित्री और सत्यवान की कथा सुनने का विधान है। मान्यता है कि इस कथा को सुनने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

Jyoti

Advertising