यहां जानें, वट पूर्णिमा व्रत की कथा के बारे में

Sunday, Jun 16, 2019 - 05:10 PM (IST)

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हिंदू धर्म में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के बहुत ही खास माना जाता है। शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन स्त्रियां वट वृक्ष की पूजा अपने पति की लम्बी उम्र के लिए करती हैं। जिसे वट सवित्री व्रत कहते हैं। यह व्रत सौभाग्य और संतान प्राप्ति के लिए महिलाओं द्वारा किया जाता है। इसी दिन यानि ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा पर गंगा स्नान करके पूजा-अर्चना करने से मनोकामना पूरी होती है। तो चलिए आगे जानते हैं इस व्रत की कथा के बारे में। 

पौराणिक कथा के अनुसार मद्र देश के राजा अश्वपति की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ किया और मंत्रोच्चार के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियां दीं और यह यज्ञ अठारह सालों तक यह चलता रहा। इसके बाद सावित्री देवी ने प्रकट होकर वर दिया कि हे राजन तम्हें शीघ्र ही एक तेजस्वी कन्या प्राप्त होगी। सावित्री देवी की कृपा से जन्म लेने की वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया।

बड़ी होने पर कन्या सावित्री बेहद सुंदरता से पूर्ण हुईं। योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा। सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहां साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे, क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया। कहते हैं कि साल्व देश पूर्वी राजस्थान या अलवर अंचल के इर्द-गिर्द था। सत्यवान अल्पायु थे। वे वेद ज्ञाता थे। नारद मुनि ने सावित्री से मिलकर सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी थी, परंतु सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह किया। पति की मृत्यु की तिथि में जब कुछ ही दिन शेष रह गए, तब सावित्री ने घोर तपस्या की थी, जिसका फल उन्हें बाद में मिला था।

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