COVID 19- कोरोना के बाद घर की बनावट में ध्यान देने वाली बातें

Friday, Jun 25, 2021 - 06:10 AM (IST)

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Vastu Tips to cleanse negativity in times of coronavirus: पिछले कुछ वर्षों से बनने वाले घरों की बाहरी और आंतरिक बनावट में बहुत परिवर्तन देखने में आ रहा है। आजकल आर्किटेक्ट बहुत ही खूबसूरत एवं स्टाइलिश घर बना रहे हैं। हर घर दूसरे घर से हटकर दिखे इसलिए आर्किटेक्ट घर की दीवारें आड़ी-तिरछी, घुमावदार, जिसमें घर का कोई कोना बाहर निकाल देते है तो कोई कोना दबा देते हैं। इसी प्रकार घर के अन्दर भी फ्लोर लेवल कहीं ऊंचा तो कहीं नीचा बनाते हैं। इसके बाद घर को और अधिक स्टाइलिश बनाने में इंटीरियर डिजाइनर भी नये-नये और एक से एक महंगे सजावट के सामान लगवाते हैं। जिसे देखकर आंखें चौधियां जाती हैं और हर किसी के मुंह से वाह! निकल पड़ता है। घर मालिक भी बस इसी वाह! वाह! को सुनने के लिए और समाज में अपना रूतबा दिखाने के लिए आर्किटेक्ट और इंटीरियर की बातों से प्रभावित होकर घर बनाने पर खूब पैसा खर्च करता है किन्तु ज्यादातर इस तरह के दिखने में सुन्दर और स्टाइलिश घर न तो सुख-सुविधा और सुरक्षा के मापदण्ड पर खरे हैं अपितु ऐसे घर में महत्वपूर्ण वास्तुदोष भी हो जाते हैं और रहने वालों को वास्तुदोषों के अनुसार अपने जीवन में कई तरह के कष्ट उठाने पड़ते हैं। वर्तमान में बढ़ रही आर्थिक तंगी, बीमारियां, विवाद, कलह, शादियों में परेशानी, तलाक, निःसन्तान, आत्महत्या जैसी समस्याओं में घर के वास्तुदोषों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।


Vastu Tips: मुझे वास्तु परामर्श के दौरान जो कुछ व्यवहारिक अनुभव हुए हैं उनमें से कुछ आपके साथ बांटना चाहता हूं। मुझे लगता है कि, कोरोना माहमारी के बाद इन पर जरूर ध्यान देना चाहिए। यदि आपको उचित लगे तो अपना घर बनाते समय इन पर भी ध्यान दें -

मैं पिछले कई वर्षों से टी.व्ही. सीरियल के सेट का वास्तु करता हूं। केवल कुछ महीनों ही चलने वाले टी.व्ही. शो के सेट्स को आर्ट डायरेक्टर इस प्रकार बनाते हैं कि सेट देखकर ही पता चल जाता है कि, यह सेट होटल, ऑफिस, स्कूल, हॉस्पिटल, कोर्ट, जेल इत्यादि में किसका है। जबकि आजकल आर्किटेक्ट भवनों के डिजाइन इस प्रकार बना रहे हैं कि पता ही नहीं चलता कि, यह भवन किस उद्देश्य के लिए बना है। वहां लगे साईन बोर्ड से ही पता चलता है कि इस भवन का क्या उपयोग होगा जबकि भवन की बनावट इस प्रकार होनी चाहिए कि बाहर से ही पता चल जाए और अन्दर जाते ही उस स्थान का एहसास भी होने लगें। इसी प्रकार घर भी घर दिखना चाहिए होटल नहीं, घर चाहे छोटा हो या बहुत बड़ा बंगला पर घर होने का एहसास जरूर होना चाहिए।

आजकल घरों के बाहर (कांच, लेमिनेट, चमकदार पेंट) या ऐसी रिफलेक्टिव सरफेस लगाते हैं जो सूर्य की किरणें या किसी प्रकार की रोशनी, साउण्ड जैसी ऊर्जाओं को वापस फैंक देती है। इस कारण (फेंगशुई के अनुसार) कई सकारात्मक ऊर्जाएं घर में प्रवेश न करके इनसे टकराकर वापस लौट जाती हैं। जिसका यहां रहने वाले लोगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हमारे देश में यूरोप की तरह ठंड नहीं है। घर के बाहर रिफलेक्टिव सरफेस के कारण बाहर की ताजा हवा और धूप अन्दर नहीं आ पाती और घर के अन्दर की ऊर्जा का निकास न हो पाने के कारण यह भवन के अंदर अधिक गर्मी बढ़ाने का कारण कई प्रकार की बीमारियों का कारण बनते हैं। घर के अन्दर धूप न आने के कारण वहां रहने वालों के शरीर में विटामिन डी की कमी होने से कई तरह की बीमारियां हो रही हैं।

आजकल बड़े और महंगे हॉस्पिटल भी पूर्णतः वातानुकूलित बनाए जाते हैं। वहां बिजली का बिल ज्यादा न आए इसलिए ऐसे रिफलेक्टिव सरफेस लगाई जाती हैं ताकि अंदर का तापमान बाहर के तापमान के कारण परिवर्तित न हो। रिफलेक्टिव सरफेस से ताजी धूप और हवा न आने के कारण कीटाणु ज्यादा पनपते हैं और लोग जल्दी स्वस्थ नहीं होते है। एक रिसर्च के अनुसार हॉस्पिटल के जिन कमरों में सुबह की धूप आती है, उन कमरों के मरीज जल्दी ठीक होते हैं।


मेट्रो सिटी में स्कूल भी इस प्रकार बनाऐ जा रहे हैं जैसे महल हों। कई मेट्रो सिटी में पूर्णतः वातानुकूलित स्कूल बन गए है। जहां क्लासरूम में धूप और ताजी हवा बिलकुल भी नहीं आ पाती जो कि बच्चों के पढ़ाई में ध्यान देने और अच्छे स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। बुनियादी चीजों पर ध्यान न देते हुए पैरेंट्स को आकर्षित करने के लिए स्कूल बिल्डिंग को ही भव्य बनाने पर जोर दिया जाता है। पैरेंट्स भी रूतबा दिखाने के लिए बच्चों को ऐसे स्कूल में एडमीशन दिलवाते हैं। ज्यादातर ऐसे ही स्कूलों के बच्चे डिप्रेशन के शिकार होते हुए देखे गए है।

आर्किटेक्ट घर को सुन्दर दिखाने के लिए घर के बाहर की ओर एल्यूमीनियम कम्पोजिक पैनल का एलिवेशन बनाते हैं। लोहे के स्ट्रक्चर पर बनी यह एल्यूमीनियम शीट की दीवार बिल्डिंग की दीवार से 6-8 इंच बाहर रहती है। जिसके कारण दीवार और पैनल के बीच में गंदगी जमा होती है जिससे कीटाणु पनपते है जो कि नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। खुदा-न-खास्ता जब ऐसी बिल्डिंग में आग लगती है तो धुआं इन खाली जगहों से बाहर न निकलकर ऊपर की मंजिलों पर फैल जाता है जो कि ज्यादा जानलेवा साबित होता है।

देश के मैदानी इलाकों के शहरों में आर्किटेक्ट घर की बाहरी सुन्दरता बढ़ाने के लिए यूरोपियन पेटर्न जैसे ढ़लवां छतों के घर बनवा रहे हैं। जिसके कारण कमरों को एक जैसी ऊंचाई नहीं मिल पाती। ऐसी बनावट में पैसा भी बहुत खर्च होता है और छत का उपयोग भी नहीं हो पाता। यूरोप या भारत के वो हिल स्टेशन जहां लगभग वर्ष भर बर्फ और पानी गिरता है वहां भवनों की ऐसी ढ़लवां छतें बनाना मजबूरी होता है, जबकि देश के मैदानी इलाकों में गर्मी ज्यादा होती है। हमारे लिए तो ऊंची छत वाले घर ज्यादा अनुकूल और उपयोगी हैं।

कई लोग आवश्यकता न होते हुए भी केवल रूतबा दिखाने के लिए दो-तीन मंजिल के घरों में भी लिफ्ट लगावा रहे हैं। घर में लिफ्ट होने से बच्चे सीढ़ियों का उपयोग न करते हुए लिफ्ट का उपयोग करने लगते हैं।  सीढ़ियों का उपयोग करने से जाने-अनजाने में परिवार के सदस्यों का खासकर के बच्चों का शारीरिक व्यायाम हो जाता है। दौड़ने भागने की उम्र में बच्चों द्वारा लिफ्ट का उपयोग करने से शरीर अनावश्यक ही मोटा हो जाता है। व्यायाम की कमी से ऐसे घरों के सदस्य छोटी उम्र में ही शुगर, हार्ट, बी.पी. इत्यादि बीमारियां के असमय शिकार हो रहे हैं।

कई छोटे घरों में जमीन पर या टेरेस पर छोटे स्वीमिंग पूल बने हुए देखें है। ज्यादातर देखने में आया है कि यह शौक परिवार के सदस्यों को कुछ समय तक ही रहा, बाद में स्वीमिंग पूल बिना पानी के खाली ही देखे। मेंटेनेंस प्रॉब्लम, पानी की समस्या, साफ-सफाई के लिए पूल के खाली करने और भरनें में लगने वाला समय इत्यादि कारणों से पूल का निरंतर उपयोग नहीं कर पाते। कई घरों में खाली स्वीमिंग पूल में परिवार के सदस्य गिर कर चोटग्रस्त भी हुए हैं। सार्वजनिक स्वीमिंग पूल का एक तो आकार बड़ा होता है दूसरा वहां हम कई लोगों के संपर्क में आते हैं, जिससे हमारे कई मित्र बन जाते हैं। जिनके साथ प्रतियोगिता की भावना के साथ-साथ एक-दूसरे को प्रोत्साहन देने के कारण स्वीमिंग करने की निरंतरता बनी रहती है। घर में बने छोटे स्वीमिंग पूल में सही एक्सरसाइज नहीं हो पाती है और परिवार भी एकाकी होने के कारण बहुत जल्दी ऊब जाता है।


जितने घरों में मैंने बाथटब लगे हुए देखे उनमें लगभग सभी घरों में इसमें धोने के कपड़े ही पड़े हुए दिखे। पूछने पर सभी जगह एक सा जवाब मिला कि शुरू-शुरू में थोड़े दिन तो उपयोग किया परन्तु अब इसका कोई उपयोग ही नहीं रहा। बाथटब लगाने में पैसा भी लगा और बाथरूम में अनावश्यक जगह की भी बर्बादी हो गई। वर्तमान में बढ़ती पानी की समस्या और समय के अभाव को देखते हुए बाथटब अनुपयोगी ही है इसलिए बाथरूम में बाथटब नहीं लगाना ही समझदारी है।

मैंने कई घरों में जिम और जकुजी देखें, जिनमें लोगों ने आधुनिक एवं मंहगी एक्सरसाइज की मशीनें लगा रखी थी। लगभग मैंने सभी घरों में मशीनों पर धूल ही देखी है क्योंकि घर वाले कुछ समय तक ही एक्सरसाइज करते रहे और बाद में बन्द कर दी। जकुजी में भी पानी के खार के कारण या लगातार मेनटेनेंस न होने से उसका उपयोग होते हुए नहीं देखा। मैंने जिस घर में भी ट्रेड मिल और एक्सरसाइज की साईकिल देखी है उन पर चढ्डी-बनियान और टॉवेल सूखते हुए ही देखें। स्वीमिंग पूल की तरह ही यहां भी किसी भी व्यक्ति की एक्सरसाइज तब ही सतत् रह पाती है जब वह कोई जिम ज्वाइन करता है जहां उसके कई मित्र बन जाते है, जो एक दूसरे को सलाह और प्रोत्साहन देते हैं। जिम में ट्रेनर होते हैं जो आपके शरीर के आकार, क्षमता और आवश्यकता को देखकर सही एक्सरसाइज की सलाह देते है इसलिए जिम ज्वाइन करना ही बेहतर होता है।

कई घरों में मल्टीप्लेक्स की तरह रिकलाईनर सीट लगे हुए होम थियेटर देखें, वहां भी परिवार को फिल्में देखने का शौक कुछ दिनों का ही रहा। बच्चों को ही ज्यादातर इसका उपयोग करते देखा। इस कारण उन घरों के बच्चों का ध्यान पढ़ाई और कैरियर से भटका पाया गया।

आजकल टेरेस गार्डन का भी चलन बढ़ता जा रहा है। ज्यादातर घरों में टेरेस गार्डन वास्तु की दृष्टि से सही नहीं बन पाते। इसी के साथ कई घरों में टेरेस गार्डन के नीचे की छत में पानी रिसता हुआ देखा है, जो कि घर की दीवारों को खराब करने के साथ-साथ नकारात्मक ऊर्जा पैदा करता है।

आर्किटेक्ट और इंटीरियर डिजाइनर घर का सुन्दर एलिवेशन दिखाकर ही दूसरे क्लाईंट से काम मांग सकते हैं इसलिए वह घरों में सुन्दरता बढ़ाने के लिए महंगी, अनुपयोगी होने के साथ-साथ कई ऐसी चीजें भी लगवा देते हैं जिनकी साफ-सफाई, मैनटेनेंस करना ही बहुत मुश्किल एवं खर्चीला होता है। जैसे घर के फ्रंट में बड़े आकार के ऊंचे कांच, घर में डबल हाइट देकर छत पर मंहगे झूमर इत्यादि। कई घरों के बाहरी डिजाइन में कंगूरे या छज्जे ऐसे स्थान पर बनाते है जहां सफाई करना मुमकिन नहीं होता।


इंटीरियर डिजाइनर कमीशन के लालच में घर में इतना फर्नीचर बनवा देते हैं कि खाली स्थान बहुत कम रह पाता है। जिस कारण बच्चों को घर में खेलने-कूदने की जगह बहुत कम बचती है और उन्हें दौड़ते-भागते समय चोट लगती रहती है। इसलिए जितनी आवश्यकता हो उतना ही फर्नीचर बनवाना चाहिए।

आर्किटेक्ट घर में टॉयलेट-बाथरूम, पैसेज इत्यादि जगह पर लगभग 7 फीट हाइट पर स्लैब डालकर स्टोरेज के लिए जगह बनवा देते हैं। घर वाले इस बात से खुश होते हैं कि आर्किटेक्ट ने स्टोरेज के लिए कितनी जगह निकाल दी परन्तु वास्तु की दृष्टि से यह सही नहीं है। इस स्लैब के कारण घर में हवा का प्रवाह सुचारू रूप से नहीं हो पाता। जिससे नकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है साथ ही घर का यह भाग दबा-दबा सा लगता है। सामान्यतः इस स्लैब और छत के बीच में दो-ढ़ाई फीट की ही ऊंचाई होती है, जबकि गहराई ज्यादा रहती है। इस कारण इसमें सामान रखना और निकालना भी मुश्किल होता है। अतः ऐसे स्टोरेज नहीं बनाना चाहिए।

देखने में आ रहा है कि बढ़ती आबादी के कारण गरीब बस्तियों में पानी को लेकर और अमीर बस्तियों में पार्किंग को लेकर लड़ाइयां होती हैं। यहां तक की हत्या तक हो जाती है। बढ़ते वाहनों की संख्या को देखते हुए इन घटनाओं में वृद्धि होना तय है। सम्भव हो तो सुखद एवं तनाव रहित जीवन के लिए बेहतर होगा कि घर थोड़ा छोटा बना ले और वाहन पार्किंग की व्यवस्था घर के अन्दर ही रखें सड़क पर नहीं।

घर बनाते समय ध्यान रहे कि अच्छी आर्थिक स्थिति होने पर भी हमें अपनी आवश्यकता, सुख-सुविधा और कम से कम रख-रखाव वाला घर ही बनाना चाहिए क्योंकि समय हमेशा एक जैसा ही रहेगा यह जरूरी नहीं है। आर्थिक स्थिति बिगड़ने पर आलीशान बने घरों का रख-रखाव भी अपने आप में एक मुसीबत बन जाता है।

मेरी सलाह है कि, घर का आकार परिवार के सदस्यों की संख्या के आधार पर केवल इतना बड़ा ही रखना चाहिए जिससे परिवार के सदस्यों की प्रायवेसी डिस्टर्ब न हो। घर के प्रत्येक कमरे का उपयोग हो, घर की साफ-सफाई और मैनटेनेंस सरलता से और कम समय में हो सके ताकि जीवन में दूसरे कार्यां के लिए और अपने शौक पूरा करने के लिए समय मिल सके। घर ऐसा बनाना चाहिए जो सुन्दर और सुविधापूर्ण हो उसे कलाकृति बनाने की कोशिश न करें। यदि बनने के बाद स्वतः ही ऐसी डिजाइन बन जाए जो कलाकृति जैसी लगने लगे तो वह अलग बात है।

वास्तुगुरू कुलदीप सलूजा
thenebula2001@gmail.com

Niyati Bhandari

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