स्वामी प्रभुपाद : सच्चा योग क्या है ? जब इंद्रियां मौन हों और मन कृष्ण में स्थिर हो जाए
punjabkesari.in Wednesday, Dec 31, 2025 - 03:07 PM (IST)
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सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च।
मूध्न्र्याधायात्मन: प्राणमास्थितो योगधारणाम्॥8.12॥
अनुवाद : समस्त ऐन्द्रिय क्रियाओं से विरक्ति को योग की स्थिति (योगधारणा) कहा जाता है। इंद्रियों के समस्त द्वारों को बंद करना मन को हृदय में और प्राणवायु को सिर पर केंद्रित करके मनुष्य अपने को योग में स्थापित करता है।
तात्पर्य : इस श्लोक में बताई गई विधि से योगाभ्यास के लिए सबसे पहले इंद्रियभोग के सारे द्वार बंद करने होते हैं। यह प्रत्याहार अथवा इंद्रियविषयों से इंद्रियों को हटाना कहलाता है। इसमें ज्ञानेन्द्रियों-नेत्र, कान, नाक, जीभ तथा स्पर्श को पूर्णतया वश में करके उन्हें इंद्रियतृप्ति में लिप्त होने नहीं दिया जाता।
इस प्रकार मन हृदय में स्थित परमात्मा पर केंद्रित होता है और प्राणवायु को सिर के ऊपर तक चढ़ाया जाता है।
इसका विस्तृत वर्णन छठे अध्याय में हो चुका है किंतु जैसा कि पहले कहा जा चुका है, अब यह विधि व्यावहारिक नहीं है। सबसे उत्तम विधि तो कृष्णभावनामृत है। यदि कोई भक्ति में अपने मन को कृष्ण में स्थिर करने में समर्थ होता है, तो उसके लिए अविचलित दिव्य समाधि में बने रहना सुगम हो जाता है।
