आज तक वास्तु के कारण विभाजित हुए और होते रहेंगे देश-प्रदेश

Tuesday, Aug 06, 2019 - 02:54 PM (IST)

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भारत सदियों से छोटे-छोटे राज्यों में ही विभाजित रहा है। यदि किसी सम्राट ने अपनी ताकत के जोर पर इसे एक कर भी लिया तो एकीकरण के कुछ समय पश्चात ही पुनः विभाजन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई। जो वर्तमान में भी निरन्तर जारी है और आगे भी जारी रहेगी। यह तय है क्योंकि भारत की भौगोलिक स्थिति ही कुछ ऐसी है कि विभाजन की प्रक्रिया निरंतर चलती रहेगी। जब किसी देश का विभाजन होता है तो उस देश के नागरिक भी विभाजित हो जाते हैं। सामान्यतः विभाजन दो तरह के होते हैं। हम इसको इस प्रकार समझ सकते हैं जैसे दो भाइयों के संयुक्त परिवार में आपसी तालमेल की कमी के कारण विभाजन हुआ। विभाजन के दौरान आपस में तय हुआ कि कारोबार तो संयुक्त ही रहेगा, किन्तु घर के दो हिस्से कर खाना और रहना अलग-अलग होगा। मकान के हिस्से हो गए। 

दूसरा विभाजन इस प्रकार होता है कि मकान के साथ-साथ कारोबार का भी विभाजन हो जाता है। उसी प्रकार देश के विभाजन दो प्रकार के होते हैं। एक दोनों देश की अपनी-अपनी सीमाएं तय हो जाती हैं और अलग-अलग होकर दोनों देशों को स्वतंत्र रूप से चलाया जाता है जैसे भारत और पाकिस्तान। जो पहले वाला विभाजन है वह इस प्रकार है कि देश के अन्दर ही राज्य कई भागों में विभाजित होते जाते हैं परन्तु केंद्र में शासन एक ही होता है जैसे मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश-उत्तरांचल इत्यादि। जिस तरह घर के विभाजन में आपसी मतभेद कारण बनते हैं, उसी प्रकार देश के विभाजन में उनकी भौगोलिक स्थिति मुख्य कारण होती है।

विश्व में जिन-जिन देशों में विभाजन हुए उन देशों की सीमाओं के मध्य उत्तर से ईशान कोण होते हुए मध्य पूर्व वाले भाग में ऊंचाई है और देश की बाकी अन्य दिशाएं निचाई लिए हुए हैं क्योंकि वास्तु सिद्धान्त है कि अगर उत्तर ईशान और पूर्व ऊंचे हों, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम और वायव्य निचले हो तो धन और संतान के साथ-साथ पारिवार का नाश होगा अर्थात देश के मामले में धन हानि के साथ-साथ देश के टुकड़े होंगे और विभाजन के दौरान जनसंहार भी होगा जैसे कि भारत के विभाजन के दौरान हुआ।

विभाजन के पूर्व भी भारत की उत्तर दिशा में हिमालय, ईशान के साथ मिलकर पूर्व दिशा में भी पहाड़ी थी (जहां असम, मिजोरम इत्यादि थे जो अभी भी है) और वायव्य कोण में हिन्द कुश पर्वत था।

वास्तु सिद्धान्त के अनुसार आग्नेय, दक्षिण और नैऋत्य निचले होकर पश्चिम और वायव्य उत्तर ईशान और पूर्व से ऊंचे हो तो भूमि का स्वामी तरह-तरह की व्यथाओं, कष्टों, धन के नष्ट तथा पारिवारिक क्षति से पीड़ित होगा।

अगर आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य और पश्चिम निचले होकर वायव्य उत्तर, ईशान और पूर्व ऊंचे हो तो उस भूमि के स्वामी की पत्नि का निधन हो जाएगा, संतान और सम्पत्ति का नाश होगा, ऋणों एवं रूग्णता के कारण होने वाले कष्टों से पीड़ित होगा।

विभाजन के पूर्व भारत की इन्हीं भौगोलिक स्थिति के कारण ही भारत और पाकिस्तान के निवासियों को उपरोक्त कठिनाईयों से विभाजन के वक्त गुजरना पड़ा।

विभाजन के पूर्व एक तरफ पूर्व आग्नेय मिलकर दक्षिण बढ़ा हुआ था, जबकि दूसरी ओर पश्चिम नैऋत्य से मिलकर दक्षिण घटा हुआ था। नेपाल और भूटान के कारण उत्तर दिशा का भाग कटा हुआ था।

वास्तु सिद्धान्त के अनुसार आग्नेय के कोने मात्र में बढ़ाव होता तो आर्थिक लाभ तो होगा लेकिन दोबारा खर्च का संकेत भी मिलता है। बीमारियों और अदालती व्यवहारों की पीड़ा भी मिलेगी।

नैऋत्य में अगर बहुत बड़ा बढ़ाव होता तो भूमि का स्वामी अक्सर बीमारियों से, शत्रुओं के द्वारा मिलने वाले कष्टों और धन नष्ट से पीड़ित होगा।

दक्षिण के साथ मिलकर अगर नैऋत्य में बढ़ाव होता तो मालिक रोगों, प्राण-भय और अकाल मृत्यु के भय से पीड़ित होगा।

पश्चिम के साथ मिलकर नैऋत्य में बढ़ाव होता तो धन का भारी नाश होगा। इसके अतिरिक्त भूमि का मालिक दुस्संगति में पड़कर कुकर्मों के लिये बहुत पैसा खर्च करेगा, व्यसनों का दास बनेगा, जिद्दी बनेगा और समय-स्फूर्ति के अभाव में अधिक धन व्यर्थ करेगा।

अगर वायव्य में अधिक बढ़ाव होता तो प्लॉट का स्वामी अनेक बाधाओं, कष्टों, अधिक खर्च दुःख, अशान्ति, निर्धनता तथा पुत्रों के निधन आदि का सामना करेगा।

उपरोक्त भौगोलिक स्थिति के कारण ही देश का विभाजन हुआ है, सदियों तक देश पराधीन रहा, गरीबी रही। जिन भौगोलिक स्थिति से निर्मित वास्तुदोषों के कारण यह विभाजन हुआ वह वास्तुदोष विभाजन के लिए भारत और पाकिस्तान में आज भी विद्यमान है, क्योंकि पाकिस्तान में ईशान कोण की तरफ हिन्दू कुश पर्वत नार्थ वेस्ट फ्रंट्रियर की पहाड़ियों की ऊंचाईयां सबसे ज्यादा हैं और पूरे पाकिस्तान की भूमि का झुकाव दक्षिण दिशा की ओर है।

पाकिस्तान की इन्हीं भौगोलिक स्थितियों के कारण इसका एक विभाजन हुआ, जिससे बंगलादेश बना और यही भौगोलिक स्थिति आगे भी विभाजन कराती रहेगी, यह तय है।

इसी प्रकार भारत की भी वास्तु स्थिति अच्छी नहीं है। भारत की उत्तर दिशा एवं ईशान कोण (जहां अरुणाचल प्रदेश वाला भाग ऊंचाई लिए हुए है) के साथ ही पूर्व दिशा में ऊंची-ऊंची पहाड़ियां हैं। जहां इम्फाल, मिजोरम, नागालैण्ड, मेघालय है। यही ऊंचाई देश के विभाजन का कारण बनी। देश के वर्तमान वास्तुदोषों के कारण देश में और भी विभाजन होंगे और गंभीरता से सोचा जाए तो आजादी के बाद देश के कई प्रदेशों का विभाजन हुआ। विशेषतौर पर देश का ईशान कोण वाला भाग सात भागों में बंट गया। मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश से उत्तरांचल, पंजाब से हरियाणा, बिहार से झारखंड। मौका आने पर यह आपस में दुश्मनों की तरह व्यवहार करते है, जिसका ज्वलंत उदाहरण कावेरी जल विवाद, मराठी-गैरमराठी आदि हैं।

1947 में भारत के विभाजन के साथ-साथ दो राष्ट्र और स्वतंत्र हुए थे म्यांमार और श्रीलंका। म्यांमार की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भविष्य में कभी भी इसमें विभाजन के आसार है क्योंकि इसकी उत्तर दिशा, ईशान कोण एवं पूर्व दिशा ऊंची एवं मध्य पश्चिम से लेकर नैऋत्य कोण तक निचाई है। आग्नेय कोण का भाग पूंछ की तरह लम्बा हो गया है। भूमि का ढलान भी दक्षिण दिशा की ओर है। इस कारण यहां हमेशा विवाद रहेंगे और आर्थिक रूप से यह देश कभी भी विकसित नहीं हो पाएगा।

श्रीलंका के चारों ओर पानी है। इस देश के मध्य भाग से दक्षिण दिशा की तरफ ऊंचाई है और भूमि का ढलान पश्चिम वायव्य, पूर्व दिशा एवं आग्नेय कोण की तरफ है। पूर्व के साथ मिलकर ईशान कोण इतना दब गया है कि उत्तरी सीमा लगभग लुप्त-सी हो गई है और पूर्व आग्नेय बढ़ गया है। पूर्व आग्नेय के बढ़ाव के कारण हमेशा यहां अशांति रहेगी किन्तु विभाजन नहीं हो सकता क्योंकि इसके मध्य उत्तर, ईशान कोण एवं मध्य पूर्व में ऊंचाई नहीं है। इसी कारण लिट्टे का इतना लम्बा गृहयुद्ध असफल हुआ।

ऐसी ही भौगोलिक स्थिति के कारण ही कोरिया का विभाजन हुआ और वह दक्षिण और उत्तर कोरिया में बंट गया। आज दोनों एक-दूसरे के (भारत-पाकिस्तान की तरह) कट्टर दुश्मन बने हुए हैं, क्योंकि कोरिया में भी मध्य उत्तर से लेकर ईशान कोण एवं मध्य पूर्व तक ऊंची-ऊंची पहाड़ियां हैं। जबकि इसके मुकाबले दक्षिण-पश्चिम दिशा में निचाई है। यह भाग अब उत्तर कोरिया का हिस्सा है।

रिपब्लिक ऑफ युगोस्लाविया के पश्चिम दिशा से लेकर नैऋत्य तक समुद्र है और बाकी भू-भाग पर पहाड़ियां हैं। देश की भूमि का पश्चिम और दक्षिण दिशा का भाग समतल है और पूरे देश का ढलान भी इन्हीं दिशाओं की तरफ है। जहां एडरिएटीक सागर है। इसी भौगोलिक स्थिति के कारण यह देश आज सात भागों में बंट चुका है।

इसी प्रकार रशिया का भी विभाजन हुआ क्योंकि रशिया की भी भौगोलिक स्थिति इसी प्रकार है। इसके ईशान कोण और पूर्व में पहाड़ियां हैं।

यमन भी दो हिस्सों में आजाद हुआ एक दक्षिणी यमन और दूसरा उत्तरी यमन। आज यह दोनों संयुक्त होकर रिपब्लिक ऑफ यमन कहलाते हैं क्योंकि इसके उत्तर दिशा एवं ईशान कोण में निचाई है। देश के मध्य से पश्चिम की ओर ऊंचाई बढ़ती गई है और उत्तर वायव्य में सबसे ज्यादा ऊंचाई है। बाकी पश्चिम एवं दक्षिण दिशा का भाग नीचा है जिसके आगे समुद्र है।

सोशलिस्ट रिपब्लिक ऑफ वियतनाम में उत्तरी वियतनाम एवं दक्षिण वियतनाम है। जो कि आज संयुक्त है क्यांकि इनके पूर्व एवं ईशान कोण की जमीन में निचाई है। देश के उत्तरी भाग एवं पश्चिम भाग में थोड़ी ऊंचाई है।

इसी प्रकार यूएई (यूनाइटेड अरब अमीरात) की पूर्व दिशा के थोड़े-से भाग में छोटी पहाड़ियों की ऊंचाई है। पूर्व दिशा के बड़े भाग में गल्फ ऑफ ओमान है और पूरी उत्तर दिशा में परशीयन गल्फ है। इसलिए इन देशों के बीच तालमेल बना हुआ है और यूनाइटेड है।

एक विभाजन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी में भी हुआ। किन्तु जर्मनी की भौगोलिक स्थिति वास्तुनुकूल थी। इसके दक्षिण भाग में पहाड़ियों के कारण ऊंचाई है। इसी कारण यह देश पुनः एक हो गया।

यह तय है कि विश्व में जितने भी देशों के आपस में विभाजन हुए हैं या होंगे इसका कारण उन देशों की भौगोलिक वास्तु स्थिति ही है।  

वास्तु गुरू कुलदीप सलूजा
thenebula2001@gmail.com

 

Niyati Bhandari

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