Vasant Panchami 2020: उपनिषदों में बताई गई विद्या और अविद्या से जुड़ी ये खास बातें

Wednesday, Jan 29, 2020 - 03:50 PM (IST)

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एक तरफ़ जहां उत्तर भारत में पतंगे उड़ाकर लोग बसंत पंचमी का पर्व मना रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ़ अन्य लोग मां सरस्वती को रिझाने में लगे हैं। क्योंकि हिंदू धर्म में इस त्यौहार का संबंध मां सरस्वती से बताय गया है। इसके अनुसार देवी सरस्वती का जन्म हुआ था जिसके साथ ही वसंत ऋतु शुरू हो जाती है। आज इस खास मौके पर हम आपको उपनिषदों में विद्या के देवी से जुड़े तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं। जो आपके लिए नीति के रूप में काम कर सकती हैं। क्योंकि इसमें न केवल विद्या के बारे में नहीं बल्कि अविद्या के महत्व के बारे में भी वर्णन किया गया है। 

प्राचीन ज्ञान के अनुसार जीवन शिक्षा दो प्रकार की होती है- विद्या और अविद्या। तो चलिए करते हैं दोनों का अन्वेषण।
विद्या और अविद्या अन्यदेवाहुर्विद्यया अन्यदाहुरविद्यया । 
इति शुश्रुम धीराणां येनस्तद्विचचक्षिरे ॥

अर्थात- विद्या का फल अन्य है तथा अविद्या का फल अन्य है। ऐसा हमने उन धीर पुरुषों से सुना है, जिन्होंने हमें समझाया था॥

बहुत से लोगों को लगता है कि विज्ञान, कला, राजनीति, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र आदि के ज्ञान को, विश्वविद्यालय के सभी विषयों विद्या है। जब हम दुनिया की ओर देखते हैं, इंद्रियों और मन का उपयोग करके जानकारी इकट्ठा करते हैं, और ज्ञान का निर्माण करते हैं, वह है विद्या। परंतु ये सब अविद्या है। संसार के अंतर्गत किसी भी विषय का ज्ञान अविद्या है। इसी अविद्या को अपराविद्या, सांसारिक ज्ञान व निम्नविद्या कहा जाता है। 

विद्या वो है जब हम स्वयं को देखते हैं तो मन और अहंता की संपूर्ण-संरचना की, और व्यक्तित्व की पूरी व्यवस्था की झलक पाते हैं। यह आत्म-अहंता ही दुनिया की दृष्टा और पर्यवेक्षक है। अपने प्रति इस ज्ञान को, स्वयं की इस धारणा के जानने को, विद्या कहते हैं। विद्या को पराविद्या या उच्चविद्या भी कहा जाता है। विद्या मनोविज्ञान से कैसे अलग है? विद्या केवल मन के अध्ययन का क्षेत्र नहीं है।

बल्कि आध्यात्मिक मुक्ति के लिए मन की रहस्यमय लालसा से निकटता, और समाधान भी है। हमारी शिक्षाप्रणाली में विद्या चाहिए ताकि युवाओं और छात्रों को मन और जीवन के बारे में अंतर्दृष्टि मिले। मैं कौन हूं और मेरा दुनिया से क्या रिश्ता है? उन्हें इस मौलिक प्रश्न से रचनात्मक तरीके से परिचित कराया जाना चाहिए। उन्हें पता होना चाहिए कि वे दुनिया की ओर क्यों भागते हैं, दुनिया से किस तरह का संबंध रखते हैं, और जीवन में क्या हासिल करने योग्य है।

अविद्या सामान्य सांसारिक जीवनयापन के लिए निस्संदेह ज़रूरी है। वह मन को संसार के बारे में ज्ञान से भर देती है, और तब ऐसा प्रतीत होता है जैसे संसार ही सबकुछ है। इसका एक दुष्परिणाम यह है कि व्यक्ति केवल भौतिक संसार के साथ अपनी पहचान बनाने लगता है, और अपने तथा दूसरों के लिए दुःख का निर्माण करता है। 

यही कारण है कि आज दुनिया भर में हम विद्या की कीमत पर अविद्या की अधिकता के विषाक्त परिणाम देख रहे हैं। मनुष्य आज भौतिक ब्रह्मांड के बारे में बहुत कुछ जानता है, लेकिन अपने बारे में बहुत कम। इन परिस्थितियों में विद्या, जो भीतरी जगत की शिक्षा है, हमारी शिक्षा के बाकी हिस्सों की तुलना में हज़ार गुना अधिक मूल्यवान है।

Jyoti

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