'आई झूम के बसंत, झूमों संग-संग'

Thursday, Jan 30, 2020 - 10:39 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
ऋतुराज 'बसंत पंचमी' पर पाएं मां सरस्वती से वरदान

जालंधर (शीतल जोशी) : 'आई झूम के बसंत, झूमों संग-संग में' फिल्म 'उपकार' के गीत के बोल आज भी बसंत पंचमी पर याद आ जाते हैं। आसमान में रंग-बिरंगी पंतगें, खेतों में चारों ओर पीली-पीली सरसों, तितलियों का फूलों पर इतराना, कोयल की कू-कू की कूक व भंवरे की गूंज वातावरण में अजब ही खुशी की लहर लेकर आती है। भारत में समय परिवर्तन के साथ ऋतु परिवर्तन भी होता रहता है। कभी गर्मी होती है तो कभी सर्दी, कभी पतझड़ होती है तो कभी बहार, ऐसे ही कभी बरसात का मौसम होता है। यहां लोग हर अवसर को धूमधाम से मना कर अपनी खुशी का इजहार करते हैं। त्यौहारों के देश भारत में लोग ऋतु परिवर्तन के पर्व यानी 'बसंत पंचमी' को भी विशेष रूप से मनाते हैं, इसे ऋतुराज बसंत भी कहते हैं, क्योंकि इसके बाद जहां सर्दी के मौसम का अंत होता है, वहीं खिली-खिली धूप चेहरों पर मुस्कान लेकर आती है। माघ महीने के पांचवें दिन यानी पंचमी को 'बसंत पंचमी' और 'श्री पंचमी' के रूप में मनाया जाता है। पेड़-पौधों पर नई कोंपलें खिलने लगती हैं।

धार्मिक महत्व
महामायी देवी सरस्वती विद्या और वाणी की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनकी आराधना, अर्चना, पूजा करने से मां सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है जिससे बुद्धि, विद्या व ज्ञान बढ़ता है। ज्ञान, संगीत और कला की देवी मां सरस्वती को पीला रंग अति प्रिय है। हिंदू रीति रिवाज के अनुसार बच्चों को शिक्षा देने की शुरूआत भी इसी दिन से करना शुभता का प्रतीक माना जाता है। इस दिन पीले रंग (बसंती) का सर्वाधिक महत्व है। इस दिन भगवान श्री विष्णु, मां सरस्वती व श्री राधा कृष्ण जी की पूजा पीले पुष्पों से की जाती है। प्रसाद रूप में पीले रंग के मीठे चावल, पीला हलवा, लड्डू व अन्य पीले रंग की वस्तुओं का ही भोग लगाया जाता है। इस दिन पीली वस्तुओं को दान करने का भी विशेष महत्व है।

कैसे मनाते हैं पंचमी उत्सव?
माघ माह में गायत्री महायज्ञ किए जाते हैं। माघ माह की पंचमी को यह उत्सव होने की वजह से हवन यज्ञ करने का विशेष महत्व है। लोग पीले वस्त्र पहन कर एक-दूसरे को बधाई देते हैं। देश के कई हिस्सों में 'बंसत पंचमी' पर विशेष मेले लगते हैं। विभिन्न शिक्षण संस्थानों में भी बच्चों की परीक्षाओं से पूर्व हवन यज्ञ करवा कर उनके उज्जवल भविष्य की कामना की जाती है।

तंग उत्सव

पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह जी ने 'पंतगबाजी' की विभिन्न प्रतियोगिताओं की शुरूआत की थी। अभी भी कई स्थानों पर युवाओं के लिए 'पंतगबाजी' की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। जीतने वाले युवाओं को पुरस्कार देकर प्रोत्साहित किया जाता है। पतंग उत्सव में हिस्सा लेने के लिए युवा अपनी पतंग और डोर की पहले से ही तैयारी कर लेते हैं।

Jyoti

Advertising