Varuthini ekadashi 2021: क्या है इस दिन का महत्व, इन मंत्रों से करें श्री हरि की पूजा

Thursday, May 06, 2021 - 02:08 PM (IST)

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इससे पहले हमने आपको वरुथिनी एकादशी व्रत के शुभ मुहूर्त के साथ-साथ इस दिन अपनाए जाने वाले कुछ खास नियमों आदि के बारे में बताया। धार्मिक ग्रंथों में प्रत्येक एकादशी तिथि को खास माना जाता है। इस दिन व्रत आदि रखने को परंपरा कहा जाता है प्राचीन समय से प्रचलित हैं। धार्मिक शास्त्रों में एक तरफ़ इस दिन का महत्व बताया गया है तो वहीं दूसरी ओर प्रत्येक एकादशी व्रत को करने से प्राप्त होने वाले फल के बारे में भी बताया गया है। आइए जानते हैं वरुथिनी एकादशी व्रत करने से क्या पुण्य प्राप्त होता है। साथ ही जानेंगे इस दिन कौन से मंत्रों का जप करना चाहिए। 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को अपने सब पापों से छुटकारा तो मिलता ही है, साथ ही साथ सौभाग्य की प्राप्ति होती है। 
कुछ किंवदंतियों ये भी हैं कि इस दिन व्रत करने वाले को 10 हज़ार वर्ष तक तप के समान फल प्राप्त होता हैै। कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र में सूर्य ग्रहण के समय एक मन स्वर्गदान करने से जो फल प्राप्त होता है, वहीं फल वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है। 

तो वहीं व्यक्ति इस व्रत के प्रभाव से इस लोक का सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।  धार्मिक ग्रंथों में अन्नदान और कन्यादान को सबसे बड़ा दान माना गया है। जो व्यक्ति वरुथिनी एकादशी का व्रत करता है उसे अन्नदान तथा कन्यादान दोनों के बराबर फल मिलता है। जो लोग इस व्रत के महात्म्य को पढ़ते व सुनत हैं, उन्हें 1,000 गोदान का फल मिलता है। बल्कि कुछ मान्यताएं तो ये हैं कि इसका फल गंगा स्नान के फल से भी अधिक होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन खरबूजा का दान करना बहुत लाभदायक होता है।

इन मंत्रों से करें भगवान विष्णु की आराधना-

विष्णु जी के मुख्य मंत्र
विष्णु रूपं पूजन मंत्र-शांता कारम भुजङ्ग शयनम पद्म नाभं सुरेशम। 
विश्वाधारं गगनसद्र्श्यं मेघवर्णम शुभांगम। 
लक्ष्मी कान्तं कमल नयनम योगिभिर्ध्यान नग्म्य्म।
ॐ नमोः नारायणाय. ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय।

विष्णु गायत्री महामंत्र- 
ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।। वन्दे विष्णुम भवभयहरं सर्व लोकेकनाथम।

विष्णु कृष्ण अवतार मंत्र- श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।

Jyoti

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