वरुथिनी एकादशी रखने से कष्टों से मिलती है मुक्ति, आप भी ऐसे करें पूजा

punjabkesari.in Monday, Apr 25, 2022 - 05:55 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत महत्व है। कहते हैं कि एकादशी व्रत करने वालों को जन्म-मरण के बंधन से छुटकारा मिलता है। बता दें कि इस बार वैशाख माह में जो एकादशी पड़ रही है। उसे वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन श्री हरि के वराह अवतार की पूजा की जाती है। मान्यता है कि ये एकादशी भक्तों को कष्टों से मुक्ति दिलाने और मोक्ष प्रदान करने वाली है। तो आज हम आपको इस वीडियो में वरुथिनी एकादशी की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजन विधि व महत्व के बारे में पूरी जानकारी देंगे।
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जानें वरुथिनी एकादशी पूजा के शुभ मुहूर्त के बारे में- 
एकादशी तिथि का आरंभ 26 अप्रैल को प्रातः काल 01 बजकर 37 मिनट पर होगा और इसका समापन 27 अप्रैल को प्रातः 12 बजकर 47 मिनट पर होगा। तो ऐसे में वरुथिनी एकादशी का व्रत 26 अप्रैल, दिन मंगलवार को रखा जाएगा। तो वही पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 53 मिनट से दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक रहेगा। व्रत पारण का समय 27 अप्रैल को प्रातः 06 बजकर 41 मिनट से सुबह 08 बजकर 22 मिनट तक रहेगा।
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वरुथिनी एकादशी पर भगवान विष्णु के वराह अवतार की पूजा की जाती है। मान्यता है कि जितना पुण्य कन्यादान और वर्षों तक तप करने पर मिलता है, उतना ही पुण्य वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से मिलता है। यह एकादशी सौभाग्य देने वाली, सब पापों को नष्ट करने वाली और अंत में मोक्ष देने वाली है। इस दिन व्रत करने से घर में सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार वरुथिनी एकादशी का फल दस हजार वर्ष तक तप करने के बराबर होता है। वरुथिनी एकादशी के व्रत से व्यक्ति को अन्न दान और कन्यादान दोनों के बराबर फल मिलता है।
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पूजन विधि- 
इस दिन सबसे पहले प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान करें। स्नान करने के बाद घर के मंदिर में घी का दीपक जलाएं। इसके बाद भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें और साथ ही यथाशक्ति श्री विष्णु के मंत्र 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जाप करते रहें। फिर रोली, मोली, पीले चन्दन, अक्षत, पीले पुष्प, ऋतुफल, मिष्ठान आदि अर्पित कर धूप-दीप से श्री हरि की आरती उतारकर दीप दान करना चाहिए। इसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और वरुथिनी एकादशी व्रत कथा पढ़े। फिर दिनभर फलाहार रहने के बाद अगले दिन यानि द्वादशी पर ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद व्रत का पारण करें। एकादशी की रात में जागरण करना अनिवार्य माना जाता है। कहते हैं कि रात में किया गया जागरण अधिक फल देने वाला होता है। भक्तों को परनिंदा, छल-कपट, लालच की भावनाओं से दूर रहकर श्री नारायण को ध्यान में रखते हुए भक्ति भाव से उनका भजन करना चाहिए।


 


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Content Writer

Jyoti

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