बनारस के गौरैया बाबा घर में पाल रहे हैं हजारों चिड़ियां
punjabkesari.in Sunday, Apr 07, 2024 - 09:09 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Varanasi: सुबह-सुबह आंगन में अपनी चहचहाहट के साथ जगाने वाली गौरैया अब धीरे-धीरे गायब होने लगी है। कंक्रीट के जंगलों ने गौरैया से उसका ठिकाना छीन लिया, लेकिन धर्मनगरी काशी के सबसे पॉश सिगरा इलाके में हजारों गौरैया देखने को मिल जाएंगी। इनका संरक्षण करने वाले बनारस के ‘गौरैया बाबा’ हैं।
लगभग 20 साल पहले उन्होंने इस मुहिम की शुरुआत की थी। आज उनका पूरा घर घोंसलों से पटा हुआ है। उन्होंने अपने घर के साथ ही लगभग 10 किलोमीटर के इलाके में अलग-अलग घरों में जाकर गौरैया के लिए घौंसला बनाने की मुहिम शुरू कर रखी है। मौजूदा समय में उनकी कालोनी में लगभग 3000 से अधिक गौरैया रहती हैं। इनके लिए भोजन की भी अच्छी व्यवस्था की जाती है।
गौरैया के संरक्षण का याल कैसे आया
‘गौरैया बाबा’ के नाम से प्रसिद्ध इंद्रपाल बत्रा अक्सर अपने घर की छत पर नजर आते हैं। छत पर हरी घास, घौंसले ये साफ गवाही देते हैं कि यही वह जगह है, जहां विलुप्त हो रही गौरैया को बचाने की कोशिश की जा रही है।
अपनी इस मुहिम पर चर्चा करते हुए वह कहते हैं, ‘‘एक समय ऐसा था जब लगा कि अपने क्षेत्र में सिर्फ 5-6 चिडिय़ां ही दिख रही हैं। साल 2005- 2006 की बात है। उस समय मैंने इनके खाने, दाना-पानी का इंतजाम किया। चिड़ियां आतीं और चली जाती थीं, फिर मैंने इनके रहने के इंतजाम के बारे में सोचा। इसके बाद मैंने गमले लिए और दीवार पर लगाकर उनमें छेद कर दिया। शुरू में मैंने ऐसा करते हुए 6-7 घोंसले लगाए।’’
‘‘मैंने धीरे-धीरे कर के 100 घोंसले लगवा दिए। इसका नतीजा यह हुआ कि एक साल में चिडिय़ों के दो बार 300 से 400 बच्चे पैदा हुए। चिडिय़ां एक बार में 3 से 4 अंडे देती हैं, जिनमें से 2 से 3 चूजे निकलते हैं। ऐसे में हजारों चिड़ियां आपको हमारे घर के एक किलोमीटर के दायरे में दिखाई देंगी।
दिन भर डालते रहते हैं दाने
वह बताते हैं, ‘‘2007 के आखिर से मैंने इस पर पूरा काम शुरू कर दिया था। सुबह पौने 4 बजे जब नींद खुलती है, तब मैं चिड़ियों के लिए दाना डाल देता हूं। फिर सुबह 7 बजे, दोपहर 12 बजे और शाम के 5 बजे दाना डालता हूं। इसके बाद थोड़ा-सा और दाना डालता हूं जो रात के समय चिड़ियाँ खाकर अपने घोंसले में चली जाती हैं।’’
दाने पर कितना आता है खर्च
इंद्रपाल बताते हैं कि शुरुआत में चिडिय़ों के दाने-पानी के लिए 15 से 20 रुपए का खर्च आता था। आज के समय में इतनी चिडिय़ां हो गई हैं कि लगभग 200 रुपए रोज खर्च आता है, जो बहुत अधिक नहीं है।