वामन द्वादशी: भगवान को बांध कर बनाया था द्वार पाल

Tuesday, Apr 16, 2019 - 11:28 AM (IST)

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आज मंगलवार दिनांक 16 अप्रैल, 2019 को चैत्र शुक्ल द्वादशी के दिन वामन द्वादशी का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु ने वामन रुप में अवतार लिया था। महाराज बलि का जन्म विरोचन की पत्नी सुरोचना के गर्भ से हुआ था। विरोचन के पश्चात यही दैत्यों के अधिपति हुए। देवासुर संग्राम में इंद्र के वज्र द्वारा इनकी मृत्यु हो गई थी। दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने अपनी संजीवनी विद्या के द्वारा इन्हें नवजीवन प्रदान किया और इनके द्वारा विश्वजित यज्ञ का अनुष्ठान करवाया। उस यज्ञ में अग्नि देव ने स्वयं प्रकट होकर बलि को दिव्य रथ के साथ धनुष, बाणों से भरा तरकश एवं अभेद्य कवच  प्रदान किया। उस रथ पर सवार होकर बलि ने देवताओं को जीत लिया और स्वर्ग के अधिपति हुए। उन्हें नियमित इंद्र बनाने के लिए दैत्य गुरु शुक्राचार्य उनसे सौवां अश्वमेध यज्ञ करा रहे थे।

अपने पुत्रों को निर्वासित जीवन व्यतीत करते हुए देख कर देव माता अदिति को अत्यंत कष्ट हुआ। उन्होंने अपने पति महर्षि कश्यप की सलाह से पयोव्रत के द्वारा भगवान की आराधना की। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान ने उनके गर्भ से अवतार लेकर देवताओं का दुख दूर करने का उन्हें आश्वासन दिया। समय आने पर वामन रूप में अदिति के यहां भगवान का प्राकट्य हुआ। महर्षि कश्यप ने ऋषियों के द्वारा उनका यज्ञोपवीत संस्कार करवाया। वहां से भगवान वामन बलि की यज्ञशाला की ओर चले। उनके तेज से प्रभावित होकर महाराज बलि के सभी पुराहित उनके स्वागत में खड़े हो गए। महाराज बलि ने सिंहासन पर बैठाकर भगवान वामन का पाद प्रक्षालन किया और चरणोदक लिया।

बलि ने कहा, ‘‘भगवान! आपके आगमन से आज मैं कृतार्थ हो गया और मेरा कुल धन्य हो गया। आप जो भी चाहें, मुझसे नि:संकोच मांग लें।’’

भगवान वामन ने बलि के कुल एवं दान शीलता की प्रशंसा करते हुए उनसे मात्र तीन पद भूमि की याचना की। बलि के बार-बार और मांगने के आग्रह के बाद भी उन्होंने कुछ भी मांगना स्वीकार नहीं किया। बलि जब भूमि दान का संकल्प देने चले, तब शुक्राचार्य ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘ये वामन रूप में साक्षात भगवान विष्णु हैं। तीन पद के बहाने तुम्हारा सर्वस्व ले लेंगे। तुम इन्हें दान देने का संकल्प मत करो।’’

इस पर बलि बोले, ‘‘गुरुदेव! सम्पूर्ण यज्ञ तो भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए ही होते हैं। यदि वे स्वयं दान लेने के लिए मेरे यज्ञ में उपस्थित हैं तो यह परम सौभाग्य और प्रसन्नता का विषय है। प्रह्लाद का पौत्र बलि ब्राह्मण को दान देने का वचन देकर कदापि नहीं फिर सकता।’’

इस पर शुक्राचार्य ने उन्हें श्री भ्रष्ट होने का शाप दे दिया।

आचार्य के शाप से भयभीत हुए बिना बलि ने भगवान को भूमि का दान दिया। संकल्प लेते ही भगवान वामन से विराट हो गए। उन्होंने एक पद से पृथ्वी और दूसरे से स्वर्ग लोक को नाप लिया। तीसरे पद के लिए उन्होंने बलि को वरुण पाश में बांध लिया।  बलि ने नम्रता से कहा, ‘‘प्रभो! सम्पत्ति का स्वामी सम्पत्ति से बड़ा होता है। आपने दो पद से मेरा राज्य ले लिया। अब शेष एक पद से आप मेरा शरीर नाप लें। तीसरा पद आप मेरे मस्तक पर स्थापित करें।’’

धन्य हो गए महाराज बलि! आज भक्त ने अपने अपूर्व त्याग से भगवान को बांध लिया। भक्त के वश में होकर भगवान को पाताल में बलि का द्वार पाल बनना पड़ा और सार्विण मन्वंतर में इंद्र पद महाराज बलि को भक्ति का उपहार मिला।

Niyati Bhandari

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