Bank Balance बढ़ाना है तो वास्तु के साथ करें ज्योतिष प्रयोग

Thursday, Sep 08, 2022 - 09:04 AM (IST)

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Vastu and Astrology: वास्तु का ज्योतिष से गहरा रिश्ता है। ज्योतिष शास्त्र का मानना है कि मनुष्य के जीवन पर नवग्रहों का पूरा प्रभाव होता है। वास्तु शास्त्र में इन ग्रहों की स्थितियों का पूरा ध्यान रखा जाता है। वास्तु के सिद्धांतों के अनुसार भवन का निर्माण कराकर आप उत्तरी ध्रुव से चलने वाली चुंबकीय ऊर्जा, सूर्य के प्रकाश में मौजूद अल्ट्रा वायलेट रेज और इन्फ्रारेड रेज, गुरुत्वाकर्षण शक्ति तथा अनेक अदृश्य ब्रह्मांडीय तत्व जो मनुष्य को प्रभावित करते हैं के शुभ परिणाम प्राप्त कर सकते हैं और अनिष्टकारी प्रभावों से अपनी रक्षा भी कर सकते हैं। वास्तु शास्त्र में दिशाओं का सबसे अधिक महत्व है। सम्पूर्ण वास्तु शास्त्र दिशाओं पर ही निर्भर होता है क्योंकि वास्तु की दृष्टि में हर दिशा का अपना एक अलग ही महत्व है।

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आज किसी भी भवन निर्माण में वास्तुशास्त्री की पहली भूमिका होती है क्योंकि लोगों में अपने घर या कार्यालय को वास्तु के अनुसार बनाने की सोच बढ़ रही है। यही वजह है कि पिछले करीब एक दशक से वास्तुशास्त्रियों की मांग में तेजी से इजाफा हुआ है। आज के जमाने में वास्तु शास्त्र के आधार पर स्वयं भवन का निर्माण करना बेशक आसान व सरल लगता हो लेकिन पूर्व निर्मित भवन में बिना किसी तोड़-फोड़ किए वास्तु सिद्धांतों को लागू करना जहां बेहद मुश्किल है, वहां वह व्यावहारिक भी नहीं लगता। अब व्यक्ति सोचता है कि अगर भवन में किसी प्रकार का वास्तु दोष है लेकिन उस निर्माण को तोड़ना आर्थिक अथवा अन्य किसी दृष्टिकोण से संभव भी नहीं है तो उस समय कौन-से उपाय किए जाएं कि उसे वास्तुदोष जनित कष्टों से मुक्ति मिल सके।

भारत भूमि के प्राचीन ऋषि तत्वज्ञानी थे और उनके द्वारा इस कला को तत्व ज्ञान से ही प्रतिपादित किया गया था। आज के युग में विज्ञान ने भी स्वीकार किया है कि सूर्य महत्ता का विशेष प्रतिपादन सत्य है क्योंकि यह सिद्ध हो चुका है कि सूर्य महाप्राण जब शरीर क्षेत्र में अवतीर्ण होता है तो आरोग्य, आयुष्य, तेज, ओज, बल, उत्साह,स्फूर्ति, पुरुषार्थ और विभिन्न महानताएं मानव में आने लगती हैं।

आज भी वैज्ञानिक मानते हैं कि सूर्य की अल्ट्रावॉयलेट रश्मियों में विटामिन डी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जिनके प्रभाव से मानव जीवों तथा पेड़-पौधों में ऊर्जा का विकास होता है। इसके मानव के शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से अनेक लाभ हैं। मध्यान्ह एवं सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणों में रेडियोधर्मिता अधिक होती है जो मानव शरीर, उसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।

अत: आज भी वास्तु विज्ञान में भवन निर्माण के तहत, पूर्व दिशा को सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है जिससे सूर्य की प्रात:कालीन किरणें भवन के अंदर अधिक से अधिक मात्रा में प्रवेश कर सकें और उसमें रहने वाला स्वास्थ्य तथा मानसिक दृष्टिकोण से उन्नत रहे। वास्तु दोषों के निराकरण हेतु तोड़-फोड़ से भवन के स्वामी को आर्थिक हानि तो होती ही है, साथ ही कीमती समय भी नष्ट होता है। इस तरह का निराकरण गृह स्वामी को कष्ट देने वाला होता है।



वास्तु और ज्योतिष में अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। एक तरह से दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों के बीच के इस संबंध को समझने के लिए वास्तु चक्र और ज्योतिष को जानना आवश्यक है। किसी जातक की जन्मकुंडली के विश्लेषण में उसके भवन या घर का वास्तु सहायक हो सकता है। उसी प्रकार किसी व्यक्ति के घर के वास्तु के विश्लेषण में उसकी जन्मकुंडली सहायक हो सकती है।

वास्तु शास्त्र एक विलक्षण शास्त्र है। इसके 81 पदों में 45 देवताओं का समावेश है और विदिशा समेत आठ दिशाओं को जोड़ कर 53 देवता होते हैं। इसी प्रकार, जन्मकुंडली में 12 भाव और 9 ग्रह होते हैं।

बिना ज्योतिष ज्ञान के वास्तु का प्रयोग अधूरा होता है इसलिए वास्तु शास्त्र का उपयोग करने से पूर्व ज्योतिष को भी ध्यान रखना अत्यंत आवश्य है। वास्तु में ज्योतिष का विशेष स्थान इसलिए है क्योंकि ज्योतिष के अभाव में ग्रहों के प्रकोप से हम बच नहीं सकते। हमारे ग्रहों की स्थिति क्या है, हमें उनके प्रकोप से बचने के लिए क्या उपाय करने चाहिएं, हमारा पहनावा, आभूषण, घर की दीवारों, वाहन, दरवाजे आदि का आकार और रंग कैसा होना चाहिए इसका ज्ञान हमें ज्योतिष तथा वास्तु के द्वारा ही हो सकता है।

वास्तु से मतलब सिर्फ घर से ही नहीं बल्कि मनुष्य की सम्पूर्ण जीवनशैली से है-हमें कैसे रहना चाहिए, किस दिशा में सिर करके सोना चाहिए, किस दिशा में बैठ कर खाना खाना चाहिए आदि-आदि बहुत से प्रश्रों का ज्ञान होता है। यदि कोई परेशानी है तो उस समस्या का समाधान भी हम वास्तु और ज्योतिष के संयोग से जान सकते हैं।

भवन में प्रकाश की स्थिति प्रथम भाव अर्थात लग्र से समझना चाहिए। यदि आपके घर में प्रकाश की स्थिति खराब है तो समझें कि मंगल की स्थिति शुभ नहीं है इसके लिए आप मंगल का उपाय करें प्रत्येक मंगलवार श्री हनुमान जी की प्रतिमा को भोग लगाकर सभी को प्रसाद दें और श्री हनुमान चालीसा का पाठ करने से ही प्रथम भाव के समस्त दोष समाप्त हो जाते हैं।



आपके घर या भवन में हवा की स्थिति संतोषजनक नहीं है या आपका घर यदि हवादार नहीं है तो समझना चाहिए कि हमारा शुक्र ग्रह पीड़ित है और इसका विचार दूसरे भाव से होता है। उपाय के लिए आप चावल और कपूर किसी योग्य ब्राह्मण को दान दें और शुक्र ग्रह की शांति विद्वान ज्योतिषी की सलाह के अनुसार करें तो आपको लाभ होगा और आपके बैंक के कोष की भी वृद्धि होने लगेगी।

Niyati Bhandari

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