रज्जड़ समाज के लोग खुद को मानते हैं पांडवों का वंशज, कांटों की सेज पर लोटकर निभाते हैं अजीब परंपरा

Saturday, Dec 26, 2020 - 02:21 PM (IST)

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बैतूल- अगर शरीर मे एक कांटा चुभ जाए तो वो भी बेहद तकलीफ देता है, मगर क्या आप सोचते हैं कि कोई एक नहीं बल्कि कांटों के बिस्तर पर लोटता हो। जी हां, सुनने में बेहद हैरान करने वाला ये तथ्य सच है। जी हां, खबरों की मानें तो  लेकिन बैतूल में एक ऐसा समुदाय है जो कांटों के बिस्तर पर लोटता है। यह उनकी मजबूरी नहीं, बल्कि परंपरा है। इस परंपरा को  समुदाय के लोग कई वर्षों से खुशी-खुशी निभा रहे हैं। अपने इस उत्सव को वो भोंडाई कहते हैं और यह समुदाय खुद को पांडवों का वंशज बताता है।

बैतूल ज़िले में रज्जड़ समाज रहता है। खुद को पांडवों का वंशज बताने वाले इस समाज के रीति-रिवाज और पंरपराएं अजब-गज़ब हैं। कांटे के मायने ही हैं मुसीबत और तकलीफ लेकिन यह समुदाय कांटों को खुशी-खुशी गले लगाता है। वह कांटों का बिस्तर बिछाता है और फिर उस पर लेटता है

दरअसल रज्जड़ समुदाय के ये लोग  बैतूल के सेहरा गांव में रहते हैं. कांटों की सेज पर लेटकर वे अपनी परंपरा को निभाते हैं। इस पर्व का नाम भोंडाई है। समाज के लोग खुद को पांडवों का वंशज बताते हैं।

इस आयोजन के पीछे एक किवदंति है। ये मानते हैं कि भोंडाई पांडवों की मुंहबोली बहन थीं, उनकी विदाई के वक्त पांडवों को कांटों पर लेटकर खुद को सही साबित करना पड़ा था। क्योंकि किसी समय पांडव इस जगह पर आए थे और प्यास लगने के बाद जब वे पानी की तलाश में एक झोपड़ी में पहुंचे तो वहां मौजूद महाल लोगो ने पांडवों के सामने उनकी बहन भोंडवी का विवाह उनसे रचाने की शर्त रख दी तभी अगहन मास में इस परंपरा को निभाया जा रहा हैं।

पंजाब केसरी के रिपोर्टर राजेश चौरसिया इस भोंडाई पर्व के लिए समुदाय के लोग कई दिन पहले से बेर के कंटीले पेड़ और डालियां इकट्ठा करने लगते हैं। वो इन्हें सुखाते हैं, फिर 5 दिनों तक चलने वाले मुख्य आयोजन वाले दिन गाजे बाजे के साथ झाड़ियों को लेकर अपने पूजन स्थल तक लाते हैं. फिर कंटीली झाड़ियों से कांटों की सेज बनाकर उस पर बारी बारी से लोटते हैं।

हैरत की बात ये है कि रज्जड़ समुदाय के लोगों को कांटों पर इस तरह लोटने के बावजूद कोई तकलीफ नहीं होती, कुछ ही देर में वो सामान्य भी हो जाते हैं। इस आयोजन में हर उम्र के लोग शामिल होते हैं। भोंडाई को लेकर और भी कई किवंदतियां कही-सुनीं जाती हैं, लेकिन कोई एकमत नहीं है।

Jyoti

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