आज मनाया जाएगा चहुंओर ज्ञान फैलाने वाले उदासीनाचार्य भगवान श्रीचंद्र जी का प्रकाशोत्सव

Sunday, Sep 24, 2023 - 10:18 AM (IST)

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Udasin acharya baba shri chandra ji: 15वीं शताब्दी के अंतिम दशक में जब दानवता का तांडव जोरों पर था, धार्मिक संकीर्णता, जातिगत कट्टरता एवं सामाजिक शोषण चरमोत्कर्ष पर थे, तो पंजाब की धर्मधरा पर कपूरथला जिले में बसे नगर सुल्तानपुर को उदासीनाचार्य भगवान श्रीचंद्र जी के जन्मस्थल होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आचार्यश्री का प्रादुर्भाव भाद्रपद शुदी नवमी विक्रमी संवत 1551 (सन् 1494 ई.) को श्री गुरु नानकदेव जी के गृह में हुआ।

योग्य पिता ने बड़ा सोच-विचार कर पुत्र का पवित्र नाम ‘श्रीचंद्र’ रखा। श्रीचंद्र का अर्थ है- आनंद देने वाली शोभा। नाम की शोभा के अनुरूप उन्होंने मानवोचित धर्माचरण करने के लिए अपनी पवित्र ‘मात्रा वाणी’ में धैर्य, दया, शालीनता, क्षमा, संयम आदि गुणों को धारण करने का उपदेश दिया। उदासीनाचार्य भगवान श्री चंद्र जी ने ‘धर्म का चोला’ पहन ‘सत्य की सेली’ धारण कर ‘ज्ञान की गोदड़ी’ ओढ़ अपने जीवन के मिशन ‘चेतहुं नगरी तार हूं गांव, अलख पुरख का सुमिरहु नांव’ की पूर्ति के लिए जन-जन का कल्याण करने के लिए यात्रा के मार्ग को ही उपयुक्त साधन के रूप में अपनाया।

आपकी यात्राओं का उद्देश्य जनमानस के अंतर्गत आत्मविश्वास उत्पन्न करना एवं नवचेतना का संचार करना था। उस समय साधनों के अभाव में भी उदासीनाचार्य श्री ने संपूर्ण राष्ट्र का पैदल भ्रमण किया। उस समय के शासकों को अपने चमत्कारों एवं उपदेशों से सन्मार्ग पर लाते हुए धर्म पर प्रतिबंध लगाने से हटाया। आपने अपनी पवित्र वाणी ‘मात्रा वाणी’ के माध्यम से मानव मात्र को मन से द्वेष-भावना को मिटाकर ‘वाद-विवाद मिटावो आपा’ का ही संदेश दिया।

अकबर से हार चुके महाराणा प्रताप में राष्ट्रीयता की भावना फिर से उत्पन्न करते हुए आचार्य श्री ने कहा- ‘इस जीवन के संग्राम में न हर बार कोई जीता है, न हर बार कोई हारा है।’

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए संदेश- ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ की स्मृति करवाते हुए महाराणा को फिर से युद्ध के लिए तैयार हो जाने की प्रेरणा दी। समर्थ गुरू रामदास जी को शिष्यत्व प्रदान कर उनके माध्यम से शिवाजी महाराज को हिदुत्व का उपदेश देना आचार्य श्री की राष्ट्र प्रेम की उदात्त भावना का उदाहरण है।

संपूर्ण जीवन जनमानस के कल्याण तथा राष्ट्रोद्धार के लिए समर्पित करते हुए अंत में सं. 1700 वि. को आप चंबा में रावी नदी के किनारे पहुंच मल्लाह से नदी पार करवाने के लिए कहने लगे। मल्लाह ने मुस्कुराते हुए कहा- आप तो सारे जीवों को संसार से पार कराने वाले हो, इस छोटी-सी नदी से पार होना आपके लिए कौन-सी बड़ी बात है?

मल्लाह की शंका को दूर करने के लिए जिस शिला पर विराजमान थे, उसी को नदी पार कराने की आज्ञा दी। शिला पर नदी पार कर सदेह लुप्त हो गए। चंबा में आपके चरण चिन्हों से युक्त वह शिला आज भी विद्यमान है। 24 सितंबर, 2023 रविवार को उदासीनाचार्य भगवान श्रीचंद्र जी के 529वें प्रकाशोत्सव की संपूर्ण उदासीन जगत, वेदी वंश एवं संपूर्ण राष्ट्र को हार्दिक बधाई। 

Niyati Bhandari

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