अपने घर बैठे संपन्न कर सकते हैं तुलसी विवाह, जानें यहां इसकी सबसे सरल विधि

Tuesday, Nov 24, 2020 - 03:44 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
26 नवंबर, 2020 दिन गुरुवार को देवउत्थानी एकादशी के अवसर पर भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ तुलसी विवाह संपन्न करना श्रेष्ठ रहेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक वर्ष देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु 4 माह की निद्रा लेने के लिए शयन अवस्था में चले जाते हैं। जिसके बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन अपने शयन काल के जागते हैं, जिसे देवशयनी एकादशी कहा जाता है। तो वहीं इस मास में तुलसी विवाह का भी अधिकतर महत्व होता है। साथ ही साथ इनके पूजन का भी अधिक महत्व होता है। तो आइए आपको बताते हैं कि इस दिन यानि तुलसी विवाह के दिन आप किस तरह घर में आसान विधि से तुलसी माता का विवाह कर सकते हैं। 

जिस तरह किसी विवाह समारोह में शामिल होने के लिए तैयार होते हैं, ठीक उसी तरह तुलसी विवाह के लिए तैयार हों। 

तुलसी का पौधा एक पटिए पर आंगन, छत या पूजन घर के बिल्कुल बीच में रख दें। 

गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाकर, देवी तुलसी पर समस्त प्रकार की सुहाग सामग्री व लाल चुनरी अर्पित करें। साथ ही गमले में शालिग्राम रख दें और उन पर तिल चढ़ाएं। ध्यान रहें इन पर कभी अक्षत अर्पित किए जाते। 

इसके बाद तुलसी माता और शालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं, गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी विधि वत पूजन करें। 

हिंदू धर्म में होने वाले विवाह के समय मंगलाष्टक बोला जाता है, अगर आता हो तो उसका पाठ कर लें। 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देव प्रबोधिनी एकादशी से कुछ वस्तुओं को खाना आरंभ किया जाता है। अत: भाजी, मूली़ बेर और आंवला जैसी सामग्री बाजार में पूजन में चढ़ाने के लिए मिलती है, जिसे पूजा में ज़रूर शामिल करें।  

कपूर से आरती करें। प्रसाद चढ़ाएं, 11 बार तुलसी माता और शालिग्राम की परिक्रमा करें। 

पूजा समाप्त कर लेने के बाद घर के सभी सदस्य चारों तरफ से पटिए को उठा कर “उठो देव सांवरा, भाजी, बोर आंवला, गन्ना की झोपड़ी में, शंकर जी की यात्रा।” भगवान विष्णु से जागने का आह्वान करें>

इसका भावार्थ है- हे! सांवले सलोने देव, भाजी, बोर, आंवला चढ़ाने के साथ हम चाहते हैं कि आप जाग्रत हों, सृष्टि का कार्यभार संभालें और शंकर जी को पुन: अपनी यात्रा की अनुमति दें।

इसके अलावा इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भी श्री हरि को जगा सकते हैं- 
'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥'
'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥'
'शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।'

आखिर में तुलसी नामाष्टक का जप करें- 
वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी। पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्रोतं नामर्थं संयुक्तम। य: पठेत तां च सम्पूज् सौऽश्रमेघ फललंमेता।।

Jyoti

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