हर कामयाब आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होता है, पढ़ें श्री राम उपासक की सत्य कथा

Saturday, Jun 03, 2023 - 08:45 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Tulsi das ji ki Katha: गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस की चौपाइयां और दोहे घर-घर में पढ़े जाते हैं। तुलसीदास को साहित्य का ‘शशि’ कहा गया है। जन्म के समय पंडितों ने बालक को माता-पिता के लिए अशुभ बताया। कहते हैं कि तुलसीदास के जन्म के समय मुंह में पूरे 32 दांत थे। उन्हें त्याग कर मां ने अपनी एक दासी को लालन-पालन के लिए सौंप दिया। तुलसीदास के साढ़े 5 वर्ष का होने पर वह दासी भी संसार से चल बसी। तुलसीदास अनाथ होकर भटकने लगे। कहते हैं कि तुलसीदास को मां अन्नपूर्णा भोजन कराती थीं।

1100  रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें

भगवान शंकर की प्ररेणा से बालक तुलसीदास अनन्तानन्द जी महाराज के शिष्य नरहर्यानन्द जी के पास रामशैल पर्वत पर गए। उन्हें अपना गुरु बनाया। गुरु नरहर्यानन्द जी महाराज ने तुलसी का नाम रखा ‘रामबोला’। बिना सिखाए ही तुलसीदास ने प्रथम बार में ही गायत्री मंत्र का शुद्ध उच्चारण कर लिया था। गुरु जी ने तुलसीदास को रामायण की कथा सुनाई।

गुरु के आदेश से तुलसीदास काशी चले गए। वहां उन्होंने 15 वर्ष तक अध्ययन किया। अध्ययनोपरांत तुलसीदास गुरु की आज्ञा लेकर पुन: अपने गांव चले गए। गांव में माता-पिता का श्राद्ध तर्पण करने के बाद विवाह करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया। बचपन से ही तिरस्कृत व एकाकी जीवन जीने के कारण वे अत्यधिक भावुक प्रेमी हो गए थे। एक दिन तुलसीदास घर पर नहीं थे तो उनका साला बहन को उनकी अनुपस्थिति में गांव ले गया।

तुलसीदास को पत्नी का बिछोह सताने लगा। वह ससुराल की ओर चल पड़े। वर्षा ऋतु में नदी उफान पर थी और रात्रि का समय लेकिन कुछ तुलसीदास को आगे बढ़ने से नहीं रोक सका। रात में नौका जैसी वस्तु तैरती दिखाई दी तो तुलसीदास उस पर बैठकर नदी पार कर गए। ससुराल पहुंचे तो द्वार बंद थे। एक रस्सी दीवार पर लटकती देखकर, उसे पकड़ कर दीवार फांदकर तुलसीदास घर में पहुंच गए।

पत्नी आश्चर्यचकित थी। उसने अपने पति के आने की सारी घटना सुनी। जब रस्सी को देखा तो वह एक काला भुजंग सांप निकला। नाव के बजाय एक शव था जिस पर बैठकर तुलसीदास ने नदी पार की थी। तुलसीदास की पत्नी ने कहा, ‘‘स्वामी! आप कितने विचित्र हैं, जितना प्रेम आप मेरे इस हाड़-मांस के शरीर से करते हैं यदि इतनी प्रीति भगवान से करते तो आपका कल्याण हो जाता।’’

तुलसीदास के कलेजे में पत्नी के बोल तीर की भांति चुभ गए और वह घर छोड़कर पुन: निकल पड़े। वह चित्रकूट पहुंचे जहां हनुमान जी के माध्यम से इन्हें भगवान श्रीराम के दर्शन हुए। फिर अयोध्या में रहते हुए तुलसीदास ने रामचरित मानस जैसे महान ग्रंथ का समापन किया। तुलसीदास जी का स्वर्गवास 126 वर्ष की आयु में काशी के असी घाट पर श्रावण कृष्ण तृतीया शनिवार विक्रम संवत् 1680 को हुआ था।

Niyati Bhandari

Advertising