हनुमान जी से जुड़ा ये रहस्य जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान!

Tuesday, May 12, 2020 - 06:43 PM (IST)

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रामायण में न केवल श्री राम के बारे में बल्कि हनुमान जी के बारे में भी बहुत सारे रहस्य बताए गए हैं। जिन्होंने प्राचीन समय में बड़े-बड़े कार्यों को बहुत ही सरलता से संपन्न किया था। बल्कि आज भी अपने भक्तों के हर कार्य को करने के लिए पृथ्वी पर  विचरते हैं। तो चलिए आज ज्येष्ठ के बड़े मंगलवार के शुभ अवसर पर जानते हैं हनुमानजी से जुड़ा है कैसा रहस्य जिसके बारे में शायद जानने के बाद आप की हैरानी की कोई सीमा नहीं रहेगी।

जैसे कि सभी लोग जानते हैं कि जब भी हनुमान जी का चित्र या उनकी तस्वीर वह प्रतिमा देखी जाती है उनमें उनका वर्णन स्वरूप दिखाई देता है। इसमें इनकी पूंछ और इनका वानर मुख सबसे ज्यादा दर्शनीय माना जाता है। इनके इस ग्रुप को देखकर हर किसी के मन में यह सवाल जरूर पैदा होता है कि क्या वास्तव में हनुमान जी वानर ही थे क्या वाकई में उनकी एक पूंछ थी। परंतु शायद ही इस बात का उत्तर आज तक किसी को मिला होगा। आर्टिकल के द्वारा आपके इस प्रश्न का उत्तर आपको जरूर देंगे। वाल्मीकि रामायण में स्पष्ट रूप से इस बारे में वर्णन मिलता है कि महावीर हनुमान आखिर हैं कौन। तो चलिए ना करते हुए आपको बताते हैं इस पूरे वाक्य के बारे में जिसमें आप अच्छे से जान पाएंगे हनुमान जी के स्वरूप को और उनके अस्तित्व को।

रामायण के किष्किंधा कांड में वर्णन किया गया है कि जब श्री रामचंद्र जी पहली बार ऋषि मुख पर्वत पर हनुमान से मिले थे तब दोनों में परस्पर बातचीत के पश्चात श्री रामचंद्र जी लक्ष्मण जी से कहा था-

रामायण में दिए गए इस श्लोक का अर्थात यह है कि ऋग्वेद के अध्ययन से अनभिज्ञ और यजुर्वेद का जिसको वह नहीं है तथा जिसने सामवेद का अध्ययन नहीं किया वह व्यक्ति इस प्रकार परिष्कृत बातें नहीं कर सकता। यकीनन इस महान विभूति ने संपूर्ण व्याकरण का एक बार नहीं बल्कि अनेक बार अभ्यास किया है। क्योंकि इतने समय तक बोलने में इन्होंने किसी भी शुद्ध शब्द का उच्चारण नहीं किया संस्कार संपन्न शास्त्रीय पद्धति से उच्चारण की गई इनकी वाणी दे को हासिल करने वाली है। रामायण के श्लोक से यह स्पष्ट होता है कि हनुमान कोई वानर नहीं थे।

तो वहीं हनुमान जी को समर्पित सुंदरकांड में भी वर्णन किया गया है- कि जब बजरंगबली जी अशोक वाटिका में राक्षसों के बीच में बैठी हुई देवी सीता को अपना परिचय देने से पहले सोचते हैं कि यदि मैं देवी सीता को ब्रह्मा क्षत्रिय वैश्य के समान परिमार्जित संस्कृत भाषा का प्रयोग करूंगा तो माता सीता मुझे रावण समझकर डर से संत्रस्त हो जाएंगी। इस बनवासी रूप को देखकर तथा नागरिक संस्कृत को सुनकर पहले ही डरी हुई माता सीता और व्यतीत हो जाएंगी। और मुझे काम रूपी रावण समझकर भया तूर विशालाक्षी सीता कोलाहल आरंभ कर देंगे। इसलिए मैं सामान्य नागरिक के समान परिमार्जित भाषा का प्रयोग करूंगा। इन सब बातों से ही प्रमाण मिलता है कि हनुमानजी चारों वेद व्याकरण और संस्कृत सहित अनेक भाषाओं के ज्ञाता भी थे। 

तुम ही वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी के अलावा बाली पुत्र अंगद को भी अष्टांग बुद्धि से संपन्न चार प्रकार के बल से युक्त और राजनीति के 14 गुणों से युक्त बताया गया है।  इन सभी बातों से यह सिद्ध होता है कि कोई अपने गुणों से सुशोभित होकर केवल एक सामान्य वर्णन नहीं हो सकता है। हनुमान जी से जुड़ा एक ऐसा रहस्य जिसके बारे में शायद तक बहुत से लोग अनजान थे।

Jyoti

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