ऋषि गौतम के पुण्य प्रताप से त्र्यंबकेश्वर बने भोलेनाथ, गंगा बनी गोदावरी

Saturday, Dec 03, 2016 - 03:23 PM (IST)

देश के अलग-अलग  भागों में भगवान शिव के बारह ज्योर्तिलिंग स्थित हैं। इन्हें द्वादश ज्योर्तिलिंग के नाम से जाना जाता है। इन ज्योर्तिलिंगों के दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं। वे भगवान शिव की कृपा के पात्र बनते हैं। इन्हीं ज्योर्तिलिंगों में श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योर्तिलिंग एक प्रमुख ज्योर्तिलिंग है। श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योर्तिलिंग महाराष्ट्र प्रांत में नासिक से 30 किलोमीटर दूर पश्चिम में स्थित है। इस ज्योर्तिलिंग की स्थापना के विषय में शिवपुराण में यह कथा 
वर्णित है-


एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मणों की पत्नियां किसी बात पर उनकी पत्नी अहिल्या से नाराज हो गईं। उन्होंने अपने पतियों को ऋषि गौतम का अपकार करने के लिए प्रेरित किया। उन ब्राह्मणों ने इसके निमित्त भगवान श्रीगणेश जी की आराधना की। उनकी आराधना से प्रसन्न हो गणेश जी ने प्रकट होकर उनसे वर मांगने को कहा। वे ब्राह्मण बोले, ‘‘प्रभो! यदि आप हम पर प्रसन्न हैं तो किसी प्रकार ऋषि गौतम को इस आश्रम से बाहर निकाल दें।’’


उनकी यह बात सुनकर गणेश जी ने उन्हें ऐसा वर न मांगने के लिए समझाया, किंतु वे अपने आग्रह पर अटल रहे। अंतत: गणेश जी को विवश होकर उनकी बात माननी पड़ी। अपने भक्तों का मन रखने के लिए वह एक दुर्बल गाय का रूप धारण करके ऋषि गौतम के खेत में जाकर रहने लगे। गाय को फसल चरते देख कर ऋषि बड़ी नरमी के साथ हाथ में तृण लेकर उसे हांकने के लिए लपके। उन तृणों का स्पर्श होते ही वह गाय वहीं गिरकर मर गई। अब तो बड़ा हाहाकार मचा। सारे ब्राह्मण एकत्र हो गौ-हत्यारा कहकर ऋषि गौतम की भर्त्सना करने लगे। ऋषि गौतम इस घटना से बहुत आश्चर्यचकित और दुखी थे। अब उन सारे ब्राह्मणों ने कहा कि तुम्हें यह आश्रम छोड़कर अन्यत्र कहीं दूर चले जाना चाहिए। गौ-हत्यारे के निकट रहने से हमें भी पाप लगेगा।


विवश होकर ऋषि गौतम अपनी पत्नी अहिल्या के साथ वहां से एक कोस दूर जाकर रहने लगे। किंतु उन ब्राह्मणों ने वहां भी उनका जीना दूभर कर दिया। वे कहने लगे, ‘‘गौ-हत्या के कारण तुम्हें अब वेद-पाठ और यज्ञादि के कार्य करने का कोई अधिकार नहीं रह गया।’’


अत्यंत अनुनय भाव से ऋषि गौतम ने उन ब्राह्मणों से प्रार्थना की कि आप लोग मेरे प्रायश्चित और उद्धार का कोई उपाय बताएं। तब उन्होंने कहा, ‘‘गौतम! तुम अपने पाप को सर्वत्र सबको बताते हुए तीन बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करो। फिर लौट कर यहां एक महीने तक व्रत करो। इसके बाद ‘ब्रह्मगिरी’ की 101 परिक्रमा करने के बाद तुम्हारी शुद्धि होगी अथवा यहां गंगा जी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों से शिवजी की आराधना करो। इसके बाद पुन: गंगाजी  में स्नान करके इस ब्रह्मगिरी की 11 बार परिक्रमा करो। फिर सौ घड़ों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंगों को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा।’’


ब्राह्मणों के कथनानुसार महर्षि गौतम वे सारे कार्य पूरे करके पत्नी के साथ पूर्णत: तल्लीन होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे। इससे प्रसन्न हो भगवान शिव ने प्रकट होकर उनसे वर मांगने को कहा। महर्षि गौतम ने उनसे कहा, ‘‘भगवान मैं यही चाहता हूं कि आप मुझे गौ-हत्या के पाप से मुक्त कर दें।’’


भगवान शिव ने कहा, ‘‘गौतम! तुम सर्वथा निष्पाप हो। गौ-हत्या का अपराध तुम पर छलपूर्वक लगाया गया था। छलपूर्वक ऐसा करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दंड देना चाहता हूं।’’


इस पर महर्षि गौतम ने कहा, ‘‘प्रभु! उन्हीं के निमित्त से तो मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है। अब उन्हें मेरा परमहित समझ कर उन पर आप क्रोध न करें।’’


बहुत से ऋषियों, मुनियों और देवगणों ने वहां एकत्र हो गौतम की बात का अनुमोदन करते हुए भगवान शिव से सदा वहां निवास करने की प्रार्थना की। वह उनकी बात मानकर वहां त्र्यंबकेश्वर ज्योर्तिलिंग के नाम से स्थित हो गए। गौतम जी द्वारा लाई गई गंगा जी भी वहां पास में गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगीं।

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