क्यों भक्त चढ़ाते हैं अपने बाल तिरुपति बालाजी को? जानें असली कारण

punjabkesari.in Tuesday, Nov 04, 2025 - 04:24 PM (IST)

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Tirupati Balaji stories: हमारे देश में अनेकों ऐसे प्राचिन और शक्तिशाली मंदिर है जो अपने चमत्कारों और अनोखी प्रथाओं के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इन मंदिरों से जुड़ी परंपराओं और चमत्कारों पर भक्तों का अटूट विश्वास है। आज हम बात करने वाले हैं ऐसे ही एक बेहद प्रसिद्ध मंदिर की अनोखी परंपरा के बारे में। हम बात करने वाले हैं तिरुपति बालाजी मंदिर की जो आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है। ये मंदिर भगवान विष्णु के रूप भगवान श्री वेंकटेश्वर को समर्पित है और हर साल यहां करोड़ों की संख्या में लोग दुनिया भर से दर्शन करने आते हैं। तिरुपति बालाजी मंदिर को देश के सबसे अमीर मंदिरों में जाना जाता है। इस मंदिर से कई रहस्यमय बातें जुड़ी हुई हैं। इस मंदिर की सबसे अनोखी बातों में से एक ये हैं कि यहां श्रद्धालु अपने सिर के बाल अर्पित करते हैं। इस मंदिर में हर साल लाखों की संख्या में भक्त अपने बाल दान करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों और इसके पीछे का कारण क्या है।

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तिरुपति बालाजी मंदिर में जो भक्त अपने बाल अर्पित करते हैं, भगवान उन्हें 10 गुना आशीर्वाद और समृद्धि प्रदान करते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि बाल दान करने वालों पर मां लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहती है। इसके अलावा इसके पीछे एक पौराणिक  कथा भी प्रचलित है।

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार समस्त लोकों के कल्याण के लिए एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया गया। जब यह प्रश्न उठा कि इस यज्ञ का फल किसे समर्पित किया जाए, तो इसका निर्णय ऋषि भृगु को करने के लिए कहा गया। ऋषि भृगु सबसे पहले सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे, फिर भगवान शिव से मिले, लेकिन उन्हें दोनों में से कोई भी इस यज्ञ का फल प्राप्त करने योग्य नहीं लगा। अंततः वे वैकुंठ धाम पहुंचे, जहां भगवान विष्णु विश्राम कर रहे थे।

जब ऋषि भृगु वैकुंठ पहुंचे, तब भगवान विष्णु योगनिद्रा में थे और उन्हें ऋषि के आगमन का आभास नहीं हुआ। इसे भृगु ऋषि ने अपना अपमान समझ लिया और क्रोधित होकर भगवान विष्णु के वक्षस्थल पर पैर से प्रहार कर दिया। तब भी भगवान विष्णु शांत रहे और विनम्र भाव से ऋषि का पैर पकड़ते हुए बोले- “हे मुनिवर, आपके चरण को कहीं चोट तो नहीं आई?” भगवान की इस विनम्रता और सहनशीलता को देखकर ऋषि भृगु को अपनी भूल का एहसास हुआ, और उन्होंने यज्ञ का फल भगवान विष्णु को समर्पित करने का निर्णय लिया।

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भगवान विष्णु के प्रति ऋषि भृगु द्वारा किए गए अपमान को देखकर माता लक्ष्मी अत्यंत दुखी हुईं। उन्हें यह उचित नहीं लगा कि भगवान ने इस अपमान का प्रतिकार नहीं किया। क्रोधवश लक्ष्मी जी बैकुंठ धाम छोड़कर पृथ्वी पर आ गईं और यहां निवास करने लगीं। भगवान विष्णु ने उन्हें ढूंढने के लिए अनेक प्रयास किए, पर सफल न हो सके। अंततः उन्होंने पृथ्वी पर श्रीनिवास के रूप में अवतार लिया। इस समय भगवान शिव और ब्रह्मा जी ने भी उनकी सहायता के लिए क्रमशः गाय और बछड़े का रूप धारण किया। बाद में माता लक्ष्मी ने पृथ्वी पर पद्मावती के रूप में जन्म लिया, और समय आने पर श्रीनिवास एवं पद्मावती का विवाह संपन्न हुआ।

विवाह की कुछ आवश्यक रस्में पूरी करने के लिए भगवान विष्णु ने कुबेर देव से धन उधार लिया था। उन्होंने वचन दिया कि कलियुग के अंत तक वह यह ऋण ब्याज सहित चुका देंगे। कहते हैं कि इसी कारण आज भी भक्त भगवान विष्णु का ऋण उतारने के प्रतीक के रूप में दान करते हैं। इसी परंपरा के अंतर्गत बालों का दान करने की प्रथा भी चली आ रही है। ऐसा विश्वास है कि जो व्यक्ति तिरुपति बालाजी मंदिर में अपने बाल अर्पित करता है, उसे भगवान कई गुना धन-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं और उस पर माता लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहती है।

वहीं एक और कथा के अनुसार बहुत समय पहले भगवान बालाजी की मूर्ति पर असंख्य चीटियां इकट्ठी होकर एक टीले के रूप में जमा हो गई थीं। हर दिन एक गाय वहां आकर उस टीले पर अपना दूध अर्पित करती थी और फिर लौट जाती थी। जब गाय के स्वामी को इस बात का पता चला, तो वह क्रोधित हो गया और गुस्से में आकर उसने गाय पर वार कर दिया। उस वार से न केवल गाय घायल हुई, बल्कि भगवान बालाजी की मूर्ति के सिर पर भी चोट लगी और उनके बाल झड़ गए।

तब माता नीला देवी ने भगवान की पीड़ा देखकर अपने बाल काटकर उनके सिर पर रख दिए। उनके इस त्याग से भगवान बालाजी का घाव भर गया। प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा कि बाल व्यक्ति की शोभा का प्रतीक हैं, और तुमने मेरे लिए उनका त्याग किया है। अब से जो भी भक्त सच्चे मन से अपने बालों का दान करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। तभी से तिरुपति बालाजी मंदिर में बाल दान करने की परंपरा आरंभ हुई। मंदिर के समीप स्थित नीलाद्रि पर्वत पर माता नीला देवी का मंदिर भी स्थित है।

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Content Editor

Sarita Thapa