गुरुवार को इस विधि से करें देव गुरु बृहस्पति का पूजन, बदल जाएगी किस्मत
Thursday, May 23, 2019 - 11:01 AM (IST)
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गुरुवार के बृहस्पति देव की पूजा का विधान है। जिस कारण हर कोई इस दिन इन्हें प्रसन्न करने में जुटा रहता है। इस दौरान कुछ लोग ज्योतिष उपाय करते हैं तो कुछ विभिन्न मंत्रों का जाप करते हैं। मगर फिर भी वे गुरु बृहस्पति को प्रसन्न करने में असफल होते हैं। अब सवाल ये उठता है आख़िर इसका असल कारण क्या है। हम जानते हैं आप ये जानने के इच्छुक हैं तो आपको बता दें कि इन सबकी मुख्य वजह है पूजन विधि आदि के बारे में कम जानकारी। जी हां, हम में से बहुत लोग ऐसे हैं जिन्हें भगवान के पूजन-अर्चन की सही विधी नहीं पता होती। जिस के चलते वो अपने द्वारा की गई पूजा से शुभ फल प्राप्त नहीं कर पाते।
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गुरुवार के दिन भी बहुत से लोग व्रत आदि तो करते हैं लेकिन उन्हें इच्छाएं फिर भी अधूरी रह जाती है। तो चलिए आपको बताते हैं कि आख़िर गुरुवार के व्रत-उपवास की सही विधि क्या है। ज्योतिष विद्वानों के मुताबिक गुरुवार का दिन गुरु पूजा के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन अपने सद्गुरु और देव गुरु बृहस्पति की विधि-विधान से पूजा और व्रत-उपवास भी ज़रूर रखना चाहिए। मान्यता है कि इस शुभ दिन गुरु भगवान का स्तुति पाठ करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं और समस्त इच्छाएं पूरी करते हैं। जानें कैसे करना है सदगुरु और देव गुरु बृहस्पति का पूजन। बता दें कि गुरु बृहस्पति देव का पूजन पीली वस्तुएं, पीले फूल, चने की दाल, मुनक्का, पीली मिठाई, पीले चावल और हल्दी आदि पदार्थों से करना चाहिए। व्रत रखकर विशेषकर केले के पेड़ की पूजा भी करनी चाहिए।
पूजन विधि-
शुद्ध जल में हल्दी डालकर केले के पेड़ पर चढ़ाएं। फिर इसमें चने की दाल और मुनक्का चढ़ाकर दीपक जलाएं और पेड़ की आरती उतारें। दिन में एक समय ही अस्वाद भोजन करें। भोजन में चने की दाल या पीली चीज़ों का सेवन करें। व्रती इस दिन भूलकर भी नमक का प्रयोग न करें। पूजा में पीले वस्त्र ही पहनें। पीले फलों का भोग लगाकर स्वयं भी ग्रहण करें। पूजन के बाद भगवान बृहस्पति की कथा का पाठ व श्रवण ज़रूर करें।
गुरुवार की आरती-
ॐ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा।
छिन छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा॥
ॐ जय बृहस्पति देवा॥
तुम पूर्ण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ॐ जय बृहस्पति देवा॥
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय बृहस्पति देवा॥
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े॥
ॐ जय बृहस्पति देवा॥
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बन्धन हारी॥
ॐ जय बृहस्पति देवा॥
सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारो।
विषय विकार मिटाओ, सन्तन सुखकारी॥
ॐ जय बृहस्पति देवा॥
जो कोई आरती तेरी प्रेम सहित गावे।
जेष्टानन्द बन्द सो सो निश्चय पावे॥
ॐ जय बृहस्पति देवा॥