Kundli Tv- सावन: महिलाओं के श्रृंगार की ये चीज़ देवी लक्ष्मी को करती है नाराज़

Wednesday, Aug 08, 2018 - 10:57 AM (IST)

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हमने अक्सर अपने बड़े-बुर्जुगों को ये कहते सुना होगा कि महिलाओं को हर तीज-त्योहार पर 16 श्रृंगार करने चाहिए। लेकिन क्या आपको पता एेसा क्यों कहा जाता है क्योकि यहीं श्रृंगार घर-परिवार में सुख-समृद्धि लाते हैं। यह केवल स्त्री की खूबसूरती को ही नहीं बल्कि उसके भाग्य में भी चार चांद लगा देते हैं। अब सोच रहे होंगे कि आखिर एेसा कैसे हो सकता है। तो आपको बता दें कि महिलाओं के 16 श्रृगांर करने का संबंध बाबा भोलेनाथ से भी है। इतना ही नहीं श्रृगांर के जरिए कोई भी स्त्री शिव जी के साथ-साथ माता लक्ष्मी की कृपा भी पा सकती है। ज्योतिष के अनुसार सावन के माह में स्त्रियों के श्रृगांर का अपना ही एक अलग महत्व है, आईए जानते हैं इससे संबंधित कुछ बातें। 

तो अगर आप भी भगवान शिव के साथ-साथ माता लक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहती हैं तो सावन में अवश्य करें ये श्रृंगार, लेकिन ध्यान रखें कि इनमें से कुछ एेसी भी चीज़ें है जिनका श्रावण के महीने में भूलकर भी प्रयोग नहीं करना चाहिए। 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार किसी भी सुहागिन के श्रृंगार में सिंदूर और बिंदी बहुत मायने रखती है। इनके बिना स्त्री का श्रृंगार अधुरा माना जाता है। इसके साथ ही मांग भरने के लिए जो सिंदूर प्रयोग में लाया जाता है, कई स्त्रियां उसी को बिंदी के रुप में अपनी भौंहों के बीच में लगा लेती हैं। कहते हैं श्रावण माह में हर महिला को सुबह स्नान आदि के बाद ये श्रृगांर करती हैं, उनके घर में कभी भी सुख-समृद्धि की कमी नहीं होती।

हर शादीशुदा महिला को काजल और मेहंदी लगाना अच्छा नहीं लगता, किंतु काजल लगाने से आखों की खुबसुरती ओर बढ़ जाती है, साथ ही ये बुरी नज़र से भी बचाता है। वहीं मेहंदी का रंग पति के प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इसलिए शादीशुदा के साथ-साथ कुवांरी लड़कियों का भी सावन में मेहंदी का प्रचलन काफी ज्यादा है। 

पुराने जमाने के तुलना में आजकल गजरे और मांग टीके का रिवाज़ कम ही देखने को मिलता है लेकिन फिर भी कुछ स्त्रियां त्योहार और शादी ब्याह में इसका इस्तेमाल कर लेती हैं। मान्यता है कि नववधू को मांग टीका सिर के बीचों-बीच इसलिए पहनाया जाता है ताकि वह शादी के बाद हमेशा अपने जीवन में सही और सीधे रास्ते पर चले। 
 

पैरों के अंगूठे और छोटी अंगुली को छोड़कर बीच की तीन अंगुलियों में चांदी का बिछुआ पहना जाता है। साथ में चांदी की पायल भी पैरों में पहनने का रिवाज़ है। लेकिन पायलें पहननें से पहले इस बात का ध्यान रखें कि पायल चांदी की होनी चाहिए, सोने के नहीं क्योकि सोने को पवित्र माना जाता है। एेसी मान्यता है कि पैरों में सोने का कोई आभूषण पहनने से धन की देवी माता लक्ष्मी का अपमान होता हैं जिससे वह नाराज़ हो जाती हैं।
पुराने समय में नथ पहनना ज़रूरी माना जाता था परंतु आज के टाइम में केवल छोटी सी नोजपिन पहने का रिवाज़ चल पड़ा है, जिसे लौंग कहा जाता है। इसे पहनना एक अच्छा शकुन माना जाता है।

शादी के बाद हो या उससे पहले कान में पहने जाने वाले आभूषणों को महिलाएं बहुत पंसद करती हैं। एेसा कहा जाता है कि विवाह के बाद बहू  को इन्हें ज़रूर पहनना चाहिए ताकि वो पति और ससुराल वालों की बुराई करने और सुनने से बच सके।

मंगल सूत्र विवाहित स्त्री का सबसे खास और पवित्र गहना माना जाता है। यह एक सुहागन का पति के प्रति वचनवद्धता का प्रतीक माना जाता है। इसलिए जो शादीशुदा स्त्रियां मंगलसूत्र नहीं पहनती, उन्हें सावन में इसे ज़रूर पहना चाहिए।

बाजूबंद और चूड़ियां देखने में एक जैसी प्रतीत होती है। बाजू के उपरे हिस्से में बाजूबंद को पहना जाता है, जोकि आज के समय में कम ही किसी के पास देखने को मिलता है। चूड़ियां सुहागिन स्त्रियों का सबसे बड़ा गहना माना गया है। सावन में कुंवारी व विवाहित दोनों को लाल और हरे रंग की चूड़ियां जरुर पहननी चाहिए। इससे प्रसन्न होकर भगवान उन्हें अच्छा जीवनसाथी मिलने का वरदान देते हैँ।  

कमरबंद एक एेसा गहना है जो आज के समय में कम पहना जाता है लेकिन ये नववधू के लिए पहनना अभी भी बहुत जरुरी होता है। कमरबंद इस बात का प्रतीक है कि सुहागन अब अपने घर की स्वामिनी है। इसलिए सावन में इसे पहना अच्छा माना जाता है।
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