ये एक नियम बदल देगा आपकी किस्मत

Saturday, Mar 16, 2019 - 05:17 PM (IST)

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भगवान राम को हिंदू धर्म में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम भी कहा जाता है। क्योंकि उन्होंने अपने पूरे जीवन काल में मर्यादा और वचनों का पालन किया। उन्होंने अपने पिता को दिए गए वचन को पूरा करने के लिए 14 वर्षो का वनवास ले लिया था और एक बार भी अपने मुख से मुस्कुराहट को जाने नहीं दिया। उसी तरह अपने पत्नी धर्म को निभाने के लिए माता सीता भी राम जी के साथ वनवास जाने को तैयार हो गई थी। क्योंकि उन्होंने ने भी अपने पति का अजीवन साथ निभाने का वचन दिया था। आज के समय में भी इन दोनों को एकसाथ याद किया जाता है और कहा भी जाता है कि जोड़ी हो तो राम व सीता जैसी और आज हम आपको इनसे जुड़ी एक ऐसी कथा के बारे में बताएंगे जो शायद ही किसी ने सुनी होगी।

माता सीता का 12 वर्ष का नियम था कि वे एक कथा भगवान राम को सुनाती थी। लेकिन एक बार राम जी को किसी कारण बाहर जाना पड़ा, इस पर माता ने कहा अगर आप चले गए तो मैं कहानी किसे सुनाऊंगी। भगवान ने कहा कि आप कुएं की पाल पर जाकर बैठ जाना और वहां जो औरतें पानी भरने आएंगी उन्हें अपनी कहानी सुना देना। देवी सीता ने बिलकुल वैसा ही किया और कुएं के पास जाकर बैठ गई। तभी एक स्त्री आई उसने रेशम की साड़ी पहन रखी थी और सोने का घड़ा ले रखा था। सीता माता उसे देखकर कहती हैं कि बहन मेरा बारह वर्ष का नितनेम सुन लो। लेकिन उस स्त्री ने उनका नियम सुनने को मना कर दिया और बिना सुने वहां से चली गई। थोड़ी देर बाद उसकी रेशम जरी की साड़ी फट गई, सोने का घड़ा मिट्टी के घड़े में बदल गया। ये देख उसकी सास उस पर गुस्सा किया और कहा कि किस का दोष अपने सिर लेकर आ गई है?

सास की बात सुनकर बहु ने सारी बात अपनी सास को सुना दी। अगले दिन ही वहीं साड़ी और घड़ा लेकर सास उसी कुएं पर गई। माता सीता वहीं पर थी और औरत को देखर देवी ने कहा कि आप मेरी कहानी सुन लीजिए। सास ने कहा एक बार नहीं चार बार सुन लूंगी। माता सीता ने अपना नियम सुनाना शुरू किया।

राम आए लक्ष्मण आए देश के पुजारी आए नितनेम का नेम लाए आओ राम बैठो राम तपी रसोई जियो राम, माखन मिसरी खाओ राम दूध बताशा पियो राम,सूत के पलका मोठो राम शाल दुशाला पोठो राम, शाल दुशाला ओढ़ो राम जब बोलूं जब राम ही राम, राम संवारें सब के काम खाली घर भंडार भरेंगे सब का बेड़ा पार करेंगे श्री राम जय राम जय-जय राम

तब सास ने कहा कि बहन आपकी कहानी तो बहुत अच्छी है, ऐसा कहकर वे अपने घर की ओर चली गई। थोड़े समय बाद उसकी साड़ी रेशम जरी की बन गई और घड़ा सोने का बन गया। बहू के पूछने पर सास ने कहा कि बहू तू दोष लगा के आई थी और मैं अब दोष उतारकर आ रही हूं। सास ने कहा कि वे कोई साधारण स्त्री नहीं बल्कि सीता माता थीं। वे पुराने से नया कर देती हैं, खाली घर में भंडार भर देती हैं, वह लक्ष्मी जी का वास घर में कर देती हैं, आदमी की जो भी इच्छा हो उसे पूरा कर देती हैं। बहू के कहने पर सास ने वही कहानी उसे भी सुना दी और ऐसे ही पूरे मोहल्ले में नितनेम की कथा चल पड़ी। आज के समय में भी उत्तरप्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा के कुछ क्षेत्रों में यह कथा सीता जयंती पर सुनाई जाती है।

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