यह भारतीय रातों-रात बने रूस के हीरो

Saturday, Apr 14, 2018 - 01:00 PM (IST)

वह 30 भाषाएं जानते थे लेकिन बात तो प्रेम की ही भाषा में करते थे। इसी भाषा ने उन्हें पूरी दुनिया के लिए इतना सुपरिचित बना दिया, जैसे वह आजमगढ़ के अपने गांव पंदहा में जाने जाते थे। रूसी क्रांति के बाद राहुल सांकृत्यायन ने तय किया कि रूस तो एक बार जाना ही है तो 1937 में वह पहले सिंगापुर पहुंचे, फिर वहां से जापान, कोरिया, मंचूरिया, मंगोलिया, मध्य एशिया होते हुए रूस गए। 


रूस में राहुल को अपनी ही तरह के एक भाषाविद मिले जो उस वक्त रूसी और संस्कृत के शब्दों के आपसी रिश्तों पर काम कर रहे थे। वहां राहुल सांकृत्यायन ने पालि और संस्कृत भाषा पर कई व्याख्यान दिए जिसने रातों-रात उन्हें रूस का हीरो बना दिया। इसी बीच उनकी मुलाकात वहीं की एक लाइब्रेरी में काम करने वाली लोला येलेना से हुई और दोनों ने शादी कर ली। 


भारत लौटने पर उन भाषाविद से उनकी चिट्ठी पत्री जारी रही। उन्हीं चिट्ठियों में एक दिन राहुल को पता चला कि रूस में उनका एक पुत्र भी है। यह जानते ही वह फिर रूस जाने को बैचेन हो उठे लेकिन इस बीच दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो चुका था। पिता अगर पुत्र के पास होता तो प्रेम के अलावा किसी भाषा की जरूरत न होती। मगर वहां तो बीच में दुनिया के सबसे भीषण युद्ध की दीवार खड़ी थी। पुत्र से करने वाली बातें वह कागजों से करने लगे। 


युद्ध के बाद राहुल जब रूस पहुंचे तो देखा कि पुत्र कागज के उन बंडलों से कहीं ज्यादा बड़ा हो चुका है जिनमें पिता-पुत्र की बात भरी है और शक्ल भी बिल्कुल राहुल जैसी। अपने अंश को गले लगाकर वह कई दिनों तक रोते रहे। पिता-पुत्र का यह मिलन देख वहां मौजूद सभी रूसियों की आंखें भर आईं। जिस वक्त सारी दुनिया एक-दूसरे को खत्म करने में लगी थी, यह राहुल सांकृत्यायन ही थे जिन्होंने संस्कृतियों का ऐसा प्रेमिल मिलन करवाया था।

Niyati Bhandari

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