यहां है देश का सबसे ऊंचा ‘शिवलिंग’, क्या आप ने देखा है?

Tuesday, Jun 14, 2022 - 03:26 PM (IST)

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इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने केरल के तिरुवनंतपुरम जिले के चेंकल में स्थित महेश्वरम श्री शिव पार्वती मंदिर के 111.2 फुट ऊंचे शिवलिंग को दुनिया का सबसे ऊंचा शिवलिंग माना है। बेलनाकार संरचना वाले आठ मंजिला इस शिवलिंग की 6 मंजिलें मानव शरीर के चक्रों या ऊर्जा केंद्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं। इससे पहले, सबसे ऊंचे शिवलिंग का रिकॉर्ड कर्नाटक के कोलार जिले में श्री कोटिलिंगेश्वर स्वामी मंदिर के पास था, जो 108 फुट ऊंचा है।

मंदिर ध्यान साधना को भी बढ़ावा देता है क्योंकि यहां 6 ध्यान कक्ष हैं। इसके अतिरिक्त, शिवलिंग के 108 विभिन्न प्रकार और भगवान शिव के 64 रूप भी हैं। साल 2012 में इस शिवलिंग का निर्माण शुरू हुआ जिसे पूरा होने में लगभग 6 साल लगे। इसे बनाने के लिए गंगोत्री, रामेश्वरम, ऋषिकेश, काशी, बद्रीनाथ, गोमुख और कैलाश जैसे पवित्र स्थानों से पानी, रेत और मिट्टी लाई गई जो इसकी एक और विशेषता है। यहां आने वाले भक्त साथ ही शिवलिंग के ऊपर से ‘कैलाशम’ को भी देख सकते हैं जो भगवान शिव का आवास माने जाने वाले हिमालय की प्रतिकृति है। इसके साथ ही यहां से शिव जी और माता पार्वती की मूर्तियां भी नजर आती हैं। यह पूरी संरचना एक 10- मंजिला इमारत के बराबर है और शिवलिंग की ओर जाने वाले पूरे मार्ग को 108 शिवलिंग के साथ भित्ति चित्रों तथा मूर्तियों से सजाया गया है यहां भक्त ‘अभिषेक’ कर सकते हैं।

कुल्लू का ‘महादेवी तीर्थ’
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में वैष्णो देवी मंदिर ब्यास नदी के तट पर स्थित है।  इसे महादेवी तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है। इस भव्य मंदिर का निर्माण वर्ष 1966 में स्वामी सेवक दास जी महाराज द्वारा किया गया था। मंदिर मनाली को जाते हुए रास्ते में कुल्लू शहर से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हिमाचल प्रदेश के इस तरफ यात्रा करने वाले भक्तों का मन रास्ते में मौजूद जंगलों, सेब के बागों और खूबसूरत पहाड़ियां भी मोह लेती हैं। मंदिर के परिसर में भगवान शिव का एक मंदिर भी है।

‘भैरव बाबा’ का निवास
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के ऐतिहासिक बूढ़ा तालाब के समीप स्थित 200 साल पुराने बूढ़ेश्वर मंदिर में खुले आसमान तले भैरवनाथ विराजे हैं। चाहे भीषण बारिश हो या गर्मी या ठंड, हर मौसम में खुले प्रांगण में ही भैरवनाथ का श्रृंगार, पूजा आरती होती है। भैरवनाथ की मनमोहक प्रतिमा के ऊपर छत इसलिए नहीं डाली गई है क्योंकि राजस्थान के कोडंमसर गांव के मूल मंदिर में भी छत नहीं है। भैरव बाबा को भगवान शंकर के पांचवें रुद्रावतार के रूप में पूजा जाता है। मंदिर की परम्परा के अनुसार भैरवनाथ का प्रसाद मंदिर में ही खाया जा सकता है। उसे मंदिर परिसर से बाहर नहीं ले जाया जाता।

Jyoti

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