क्या कलियुग के पहले दिन की गई थी इस रहस्यमयी मंदिर का निर्माण?

Tuesday, May 17, 2022 - 01:02 PM (IST)

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कहा जाता है भारत में हर कोने पर मंदिर मौजूद है, जिनमें कुछ मंदिर प्राचीन समय से है तो कुछ कई वर्ष ही पुराने माने जाते हैं। आज हम आपको इन्हीं में से एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो बेहद प्राचीन है। बल्कि इस मंदिर के बारे में मान्यता प्रचलित है, कि ये मंदिर कलियुग के पहले बनाया गया था। बता दें जिस मंदिर की हम बात कर रहे हैं वह भारत के दक्षिण में स्थित है। तो वहीं ये भी बताया जाता है कि इस मंदिर के समीप आकूत संपत्ति का खजाना भी है। ऐसा लोक मत है इस मंदिर में 2 लाख करोड़ रुपए की दौलत है। बताया जाता है मंदिर से सरकार की निगरानी में करीब एक लाख करोड़ रुपए मूल्य का खजाना निकाला जा चुका है। आपकी जानकारी के लिए बता दें ये मंदिर केरल की राजधानी में स्थित है, जो तिरुवनंतपुरम के पद्मनाभ स्वामी मंदिर के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है 2011 में सरकार की निगरानी के अंतर्गत निकाले गए खजाने के बावजूद इस मंदिर का अभी भी एक तहखाना खुलना और बाकी है। इसके खजाने के चलते ही इस मंदिर को भारत का सर्वाधिक अमीर मंदिर कहा जाता है। इसके अलावा बता दें पूर्व में सरकार द्वारा मंदिर के छठे तहखाने को नहीं खोला गया था। हैरानी की बात तो ये है मंदिर के तहखानों में केवल धन-दौलत ही नहीं बल्कि कोबरा जैसे जहरीले सांप मौजूद हैं, जो इस खजाने की रक्षा करते हैं। 

पद्मनाभ स्वामी मंदिर का ये दरवाज़ा आज तक है 1 राज़- 
कहा जाता है कि पद्मनाभ स्वामी मंदिर के चारों ओर रहस्य ही रहस्य ही छिपे हुए हैं। लोक मत है कि इस सुप्रसिद्ध मंदिर का सातवां दरवाज़ा आज भी एक पहेली है। इसका कारण आज तक किसी के द्वारा इसे खोला न जाना। सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि लकड़ी के इस दरवाज़े को खोलने या बंद करने के लिए किसी भी प्रकार का कोई ताला,जंजीर या नट-बोल्ट नहीं लगा हुआ। जिसके बाद हर कोई इस विचार में पड़ जाता है कि आखिर ये दरवाज़ा बंद कैसे है?

कहा जाता है इस बात का राज आज तक कोई नहीं जान पाया, जिस कारण आज तक मंदिर का ये सांतवां दरवाजा हर किसी के लिए एक रहस्य बना हुआ है।

मंदिर का निर्माण- 
बताया जाता है मंदिर के मौजूद स्वरूप का निर्माम त्रावणकाेर राजाओं ने करवाया था। लोक मत है  त्रावणकाेर के महाराजा मार्तण्ड वर्मा ने 1750 में स्वयं को पद्मनाभ स्वामी का दास बताया था, जिसके पश्चात मंदिर की सेवा में पूरा शाही खानदान लग गया था। यहां की प्रचिलत मान्यता के अनुसार मंदिर में त्रावणकोर शाही खानदान की अकूत संपत्ति मौजूद है।

बताया जाता है त्रावणकोर राजघराने ने अपनी दौलत उस समय मंदिर में रख दी भारत सरकार जब 1947 में हैदराबाद के निजाम की संपत्ति अपने अधीन कर रही थी। जिसके पश्चात त्रावणकोर रियासत का भी भारत में विलय हो गया। इस दौरान रियासत की संपत्ति तो भारत सरकार के अधीन हो गई, परंतु मंदिर शाही खानदान के पास ही रहा। कुल मिलाकर राजघराने ने इस तरह अपनी संपत्ति को बचा लिया, हालांकि इस कहानी का कोई भी प्रमाण अब तक सामने नहीं आया। 

मंदिर से जुड़ी मान्यता- 
जैसे कि उपरोक्त जानकारी हमने आपको बताया है कि मंदिर हजारों वर्ष पुराना है। हालांकि मंदिर की स्थापना लेकर कोई एक राय नहीं है। कई जानकारों के अनुसार मंदिर करीब दो हजार साल पुराना है। जबकि त्रावणकोर के इतिहासकार दावा करते हैं कि कलियुग के पहले दिन इस मंदिर की स्थापना हुई थी। तो वहीं मंदिर में स्थित भगवान विष्णु की मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि इसकी स्थापना कलियुग के 950वें साल में की गई थी। 
 

Jyoti

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