लाइफ में गोल्डन टाइम लाते हैं ये पत्थर

Tuesday, May 08, 2018 - 10:40 AM (IST)

प्राचीन काल से ही रत्न अपने आकर्षक रंगों, प्रभाव, आभा तथा बहुमूल्यता के कारण मानव को प्रभावित करते आ रहे हैं। अग्नि पुराण, गरुड़ पुराण, देवी भागवत पुराण, महाभारत आदि अनेक ग्रंथों में रत्नों का विस्तृत वर्णन मिलता है। ऋग्वेद तथा अथर्ववेद में सात रत्नों का उल्लेख है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामायण के उत्तर कांड में अवध पुरी की शोभा का वर्णन करते हुए मूंगा, पन्ना, स्फटिक और हीरे आदि रत्नों का उल्लेख किया है। कौटिल्य ने भी अपने अर्थशास्त्र में रत्नों के गुण-दोषों का उल्लेख किया है। वराहमिहिर की वृहत्संहिता के रत्न परीक्षा अध्याय में नव रत्नों का विस्तार से वर्णन किया गया है। ईसाई, जैन, और बौद्ध धर्म की अनेक प्राचीन पुस्तकों में भी रत्नों के विषय में लिखा हुआ मिलता है।

रत्नों की उत्पत्ति के विषय में अनेक पौराणिक मान्यताएं हैं। अग्नि पुराण के अनुसार जब दधीचि ऋषि की अस्थियों से देवराज इंद्र का प्रसिद्ध अस्त्र वज्र बना था तो जो चूर्ण अवशेष पृथ्वी पर गिरा था उससे ही रत्नों की उत्पत्ति हुई थी। गरुड़ पुराण के अनुसार बल नाम के दैत्य के शरीर से रत्नों की खानें बनीं। समुद्र मंथन के समय प्राप्त अमृत की कुछ बूंदें छलक कर पृथ्वी पर गिरीं जिनसे रत्नों की उत्पत्ति हुई, ऐसी भी मान्यता है। रत्न केवल आभूषणों की शोभा में ही वृद्धि नहीं करते अपितु इनमें दैवी शक्ति भी निहित रहती है। ऐसी मान्यता विश्व भर में पुरातन काल से चली आ रही है। महाभारत में स्यमंतक मणि का वर्णन है जिसके प्रभाव से मणि के आसपास के क्षेत्र में सुख-समृद्धि, आरोग्यता तथा दैवी कृपा रहती थी।

पश्चिमी देशों में बच्चों को अम्बर की माला इस विश्वास से पहनाई जाती है कि इससे उनके दांत बिना कष्ट के निकल आएंगे। 

यहूदी लोग कटैला रत्न भयानक स्वप्नों से बचने के लिए धारण करते हैं। 

प्राचीन रोम निवासी बच्चों के पालने में मूंगे के दाने लटका देते थे ताकि उन्हें अनिष्टों से भय न रहें।

जैड रत्न को चीन में आरोग्यता देने वाला माना जाता है।

वैसे तो रत्नों की संख्या बहुत है, पर उनमें 84 रत्नों को ही महत्व दिया गया है। इनमें भी प्रतिष्ठित 9 को रत्न और शेष को उपरत्न की संज्ञा दी गई है।

नवरत्न-  
माणिक्य, नीलम, हीरा, पुखराज, पन्ना, मूंगा, मोती, गोमेद, लहसुनिया।

उपरत्न-
लालड़ी, फिरोजा, एमनी, जबरजद्द, ओपल, तुरमली, नरम, सुनैला, कटैला या सफेद बिल्लौर, गोदंती, तामड़ा, लुधिया, मरियम, मकनातीस, सिंदूरिया, नीली, धुनेला, बैरूंज, मरगज, पित्तोनिया, बांसी, दुरवेजफ, सुलेमानी, आलेमानी, जजे मानी, सिवार, तुरसावा, अहवा, आबरी, लाजवर्त, कुदरत, चिट्टी, संग सन, लारू, मारवार, दाने फिरंग, कसौटी,  दारचना, हकीक, हालन, सीजरी, मुबेनज्फ, कहरुवा, झना, संग बसरी, दांतला, मकड़ा, संगिया, गुदड़ी, कामला, सिफरी, हरीद, हवास, सींगली, डेढ़ी, हकीक, गौरी, सीया, सीमाक, मूसा, पनघन, अम्लीय, डूर, लिलियर, खारा, पारा जहर, सेलखड़ी, जहर मोहरा, रवात, सोना, माखी, हजरते ऊद, सुरमा, पारस।

उपरोक्त उपरत्नों में से कुछ ही उपरत्न आजकल प्रचलित हैं।

किस ग्रह का कौन-सा रत्न है, किस रोग में किस रत्न को धारण करने से लाभ होगा, उसे कब और किस प्रकार धारण करना चाहिए, रत्नों और उपरत्नों की और क्या विशेषताएं हैं, इस लेख में बताया गया है जो रत्नों से सम्बंधित आपकी सभी जिज्ञासाओं को शांत करेगा परंतु रत्नों और उपरत्नों को धारण करने से पहले किसी भी विशेषज्ञ से कुंडली का आकलन करवा कर ही कोई भी रत्न धारण करें।

Niyati Bhandari

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