अक्षय तृतीया पर अवतरित हुए श्री हरि के ये 3 अवतार

punjabkesari.in Thursday, May 02, 2019 - 03:27 PM (IST)

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अक्षय तृतीया के दिन खरीददारी करना शुभ होता है इसलिए इस दिन हर कोई बस शॉपिंग करने मे बिज़ी रहता है। मगर इस दिन को पौराणिक दृष्टि से भी  शुभ और मंगलकारी माना जाता है। कोई इससे जुड़ी मान्यताओं को जानने की कोशिश करता। वहीं कुछ लोग जानना चाहते हैं लेकिन कम समय होने के कारण हिंदू धर्म के पर्व त्यौहारों से जुड़ी मान्यताओं को जान नहीं पाते। इसके अलावा कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो आधी-अधूरी जानकारी साथ लिए चलते हैं और दूसरों को भी गलत जानकारी देते हैं। लेकिन आज हम आपको अक्षय तृतीया पर्व से संबंधित कुछ ऐसी पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनसे लगभग लोग अंजान ही हैं। पुराणों के किए वर्णन के अनुसार इसी दिन यानि अक्षय तृतीया को भगवान विष्‍णु के 3 अवतार हुए थे। जिस कारण इस तिथि को शुभ माना जाता है। इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि इस शुभ अवसर पर देवी मातंगी का भी प्राकट्य हुआ था।
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यहां जानें, इससे जुड़ी कथाएं विस्‍तारपूर्वक
नर-नारायण अवतार
इतना तो सब जानते ही होंगे कि श्री हरि विष्णु जी के कुल 24 अवतार है। इनमें नर-नारायण इनका चौथा अवतार है। पुराणों में मिले उल्लेख के मुताबिक धर्म की पत्‍नी मूर्ति के गर्भ से भगवान नर-नारायण की उत्‍पत्ति हुई। श्री हरि ने ये अवतार धर्म की स्‍थापना के लिए लिया था। भगवान विष्णु को समर्पित बदरीनाथ धाम दो पहाड़ियों के बीच स्थित है। मान्यता है कि एक पर भगवान नारायण ने तपस्या की थी जबकि दूसरे पर नर ने। नारायण ने द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने रूप में अवतार लिया जबकि नर अर्जुन रूप में अवतरित हुए थे। नारायण का तप भंग करने के लिए इंद्र ने अपनी सबसे सुंदर अप्सरा रंभा को भेजा था परंतु भगवान नारायण ने अपनी जंघा से रंभा से भी सुंदर अप्सरा उर्वशी को उत्पन्न करके इंद्र को भेंट कर दिया था।
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हयग्रीव अवतार
श्रीहरि के 24 अवतारों में से 16वां अवतार हयग्रीव अवतार। इससे जुड़ी प्राचीन कथा के अनुसार मधु-कैटभ नाम के दो दैत्‍य ब्रह्माजी से उनके वेदों को चुराकर रसातल में ले गए थे। जिससे परेशान होकर ब्रह्मा जी भगवान विष्‍णु की शरण में गए। धर्म की रक्षा के लिए उन्‍होंने हयग्रीव का अवतार लिया और दैत्‍यों का वध करके ब्रह्माजी को उनके वेद सकुशल लौटाए।
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परशुराम जी विष्‍णुजी के 18वें अवतार
भगवान विष्‍णु के प्रमुख अवतारों में से एक था उनका परशुराम अवतार। कुछ मान्यातओं के अनुसार इन्हें श्री हरि का 18वां अवतार कहा जाता है तो कुछ के अनुसार छठां अवतार। पुराणों में इनकी उ‍त्‍पत्ति को लेकर कथा के अनुसार प्राचीनकाल में महिष्‍मती नगरी में सहस्‍त्रबाहु नाम के क्षत्रिय शासक का राज़ था। उसे अपनी शक्तियों पर बहुत घमंड था। एक बार अग्निदेव ने उससे भोजन करवाने का आग्रह किया। तब सहस्‍त्रबाहु ने घमंड में चूर होकर कहा कि आप कहीं से भी भोजन कर लें चारों ओर मेरा ही राज़ है।

जिसके बाद अग्निदेव ने जंगलों को जलाना शुरू कर दिया। एक जंगल की एक कुटिया में ऋषि आपव तपस्‍या कर रहे थे। उस अग्नि से उनका आश्रम भी जल गया तो क्रोधित होकर उन्‍होंने सहस्‍त्रबाहु को श्राप दे दिया कि उसका सर्वनाश होगा। कहते हैं इसके बाद भगवान विष्‍णु ने महर्षि जमदग्नि के पांचवें पुत्र के रूप में जन्‍म लिया और परशुराम कहलाए और संपूर्ण क्षत्रिय कुल का नाश कर दिया।
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मातंगी देवी का प्राकट्य
पुराणों में वर्णित एक अन्य मान्यता के अनुसार मातंगी देवी का प्राकट्य भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। एक बार की बात है भगवान विष्णु अपनी अर्धांगिनी  लक्ष्मी जी के साथ भगवान शिव और देवी पार्वती से मिलने के लिए उनके निवास स्थान कैलाश पर्वत पर गए। भगवान विष्णु अपने साथ खाने की कुछ सामग्री ले गए और शिव जी को भेंट किया, लेकिन उसके कुछ अंश धरती पर गिर गए। कहते हैं उन गिरे हुए भोजन के भागों से एक श्याम वर्ण वाली देवी ने जन्म लिया, जो मातंगी नाम से विख्यात हुईं। माना जाता है कि देवी मातंगी की सर्वप्रथम आराधना भगवान विष्णु ने की थी।


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Jyoti

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